लेख
03-Feb-2023
...


मोदी सरकार के कानून मंत्री किरण रिजिजू ने संसद में एक उत्तर में कहा की न्यायिक पदो में 71% पद पर सवर्ण लोग नियुक्त हैं। आदिवासी और अनुसूसूचित जातियो का हिस्सा इन पदो में अत्यधिक कम हैं। सरकार चाहती है की आरक्षित वर्गो को इन पदो पर हिस्सेदारी व्रद्धि हो परंतु कालेजियम सिस्टम के कारण सरकार मजबूर हैं। अब यह उत्तर इतना भ्रामक है की आम देशवासी को पहली नजर में यह वंचितों और कमजोर वर्ग के खलनायक के रूप में पेश करता हैं। सरकार ने जानबूझ कर ऐसा उत्तर बनाया है जिससे उसकी कोशिश को बल मिले। अब मोदी सरकार सिधान्त रूप से स्वतंत्र न्यायपालिका को लेकर बहुत ही “असहज” हैं। क्यूंकी उनकी पार्टी और संगठन की विचारधारा के अनुसार “प्रशासन ही सर्वोपरि है”। अर्थात चुनाव जीत कर अथवा जोड़ – तोड़ से सरकार बना कर सत्ता अपने हाथ में लेने के बाद उनके फैसलो में रोक -टोक करने वाला कोई न हो ना कोई उनसे उस फैसले के कारण और उसकी प्रक्रिया के बारे में पूछताछ करे। नोटबंदी के मोदी सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के समय जब मंत्रिमंडल के तत्संबंधी प्रक्रिया की जानकारी मांगी तब सरकार की ओर से कहा गया की रिजर्व बैंक ने इस संबंध में सरकार के फैसले को सहमति दे दी उसके बाद यह प्रक्रिया सम्पूर्ण हैं। सुप्रीम कोर्ट सरकार के काम करने के तरीको पर प्रक्रिया सम्मत होने अथवा नहीं होने के बारे में सवाल नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट भी यह जानकारी प्रापत करने में असफल रहा की “किस नियम के अनुसार ऊर्जित पटेल को गवर्नर नियुक्त होने के पहले से नोटो पर उनके हस्ताक्षर ले लिए गए थे। अनतोतगतवा नोटबंदी करने के सरकार के अधिकार पर बात खतम हुई; और सुप्रीम कोर्ट ने भी तकनीकी तथ्यो को वास्तविक घटनाक्रम और उद्देश्यों को नकारते हुए सरकार को क्लीन चिट दे दी। ऋजुजु साहब साल भर से अधिक से कालेजियम सिस्टम में सरकार की भागीदारी की कोशिश कर रहे हैं। उनके दल और सरकार की कोशिश हैं की न्यायपालिका में उनका वर्चस्व होना चाइए जीससे की सरकार के कामो पर न्यायपालिका की “मुहर” लगती रहे उनके फैसलो की “नियत“ और क्रियानवन पर कनही भी और किसी के द्वारा सवाल न उठाए जा सके। विधायिका की सर्वोच्चता की हकीकत :- जैसा की सभी जानते हैं की विधायिका का बहुमत ही सरकार अथवा व्यस्थापिका बनता है। अब संविधान के दो अंग जब एकाकार हो जाये तब किसी ऐसे निकाय की सख्त जरूरत होती है जो आम नागरिक के अधिकारो की सरकार के फैसलो और नीतियो से रक्षा करे। नरेंद्र मोदी जी की सरकार के पूर्व न्यायपालिका के फैसलो को इज्ज़त से सरकार देखती थी। भले ही वह उसे मानने के बजाय संसद में कानून बनाए पर कभी भी अदालत को कमजोर करने या लांछित या कठघरे में खड़े करने का प्रयास नहीं हुआ। शहबानों केस में सरकार ने अदालत के फैसले को निस्प्र्भवी करने के लिए संसद का सहारा लिया। वह विधि सम्मत तरीका था। उन्होने अदालतों में नियुक्ति को अपने अर्थात सरकार के हाथो में लेने की कोशिश नहीं की। वह एक अवसर था परंतु आज जब बीजेपी शासित राज्यो में व्यक्ति की निजता और संपाती के अधिकार को ”बुलडोजर “संस्कृति द्ववारा बड़ावा दिया जा रहा है... तब सरकार के कोप से बचने के लिए नागरिकों के पास अदालत ही एक सहारा हैं । उत्तर प्रदेश में बलात्कार की गयी युवती की लश को को रात के अंधेरे में दाह संस्कार पुलिस कर देती हैं । सुप्रीम कोर्ट के जज जोसेफ ने अदालत में पेश उत्तर प्रदेश के अफसरो और अधिवक्ताओ से कहा था। “क्या आप की बेटी के साथ ऐसा होगा तो भी आप इस कारवाई का समर्थन करेंगे?” सरकार निर्लज्ज की भांति चुप रही। परंतु वह अन्याय सरकार की पुलिस द्वरा किया गया था और राजनीतिक कारणो से यह कारवाई हुई थी। उत्तर प्रदेश में बुलडोजर हिनशा की चपेट में आए लोगो में नब्बे प्रतिशत अलपसंखयक हैं । बाकी कुछ गैंगस्टर एकट के अपराधी है। न्यायपालिका में आरक्षण:- किरण रिजिजू जी हमेशा मीडिया मैं पिछड़े वर्ग के हितैषी के रूप में “दिखने” का रूप भरते हैं परंतु उनही के अनुसार पिछले 6 छह सालो में महिलाओ और अनुसूचित वर्गो के लोगो को भी प्रथिनिधित्व मिला हैं। विधि मंत्री जी आपको हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजो की नियुक्ति भी आई ए एस की भांति कोई अखिल भारतीय सेवा लगती हैं। जिसमें आरक्षण की व्यसथा हो। रिजिजू हुजूर जी ये संवैधानिक पद हैं! जिनमें कोई आरक्षण की व्यवस्था नहीं होती! क्या मंत्रिमंडल में आरक्षण की कोई विधिवत व्यवस्था है! क्या राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पद के लिए कोई आरक्षण हैं? नहीं हैं। रिजिजू जी इसरो और न्यूक्लियर मंत्रालय में आराकाशन की व्यवस्था हैं? नहीं हैं। सरकार की ओर से इन मंत्रालयों और निकायो को विशिसट बताते हुए आरक्षण की व्यवस्था को नामंज़ूर किया था। क्यूंकी इन स्थानो पर “योग्यता” ही परम आवश्यक हैं। उसी भांति न्याय देने की प्रक्रिया भी बहुत नाजुक व्यवस्था हैं जिसे आरक्षण नहीं किया जा सकता। फिर भी हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 554 जजो में अनुसूचित जाती और जनजाति के 52 लोगो को नियुक्त किया गया। इतना ही नहीं इस अंतराल में 84 महिलाओ को भी पदस्थ किया गया। अब कम से कम विधि मंत्री जी आप कालेजियम को खलनायक बनाना बंद करे। विजय कुमार तिवारी 03 फरवरी 2023 ईएमएस