लेख
05-Feb-2023
...


राजभवन से 1932 के खतियान पर आधारित विधेयक वापस होने के बावजूद सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस मुद्दे पर और मजबूती से आगे बढ़ने की रणनीति तैयार की है। स्थापना दिवस पर इसे लेकर सहमति बनी कि खतियान आधारित स्थानीयता नीति पर दबाव और बढ़ाया जाएगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी स्पष्ट चुके हैं कि विधेयक फिर से राजभवन को भेजा जाएगा। मोर्चा के शीर्ष रणनीतिकारों की स्थापना दिवस समारोह के मौके पर हुई बैठक में भी यही एजेंडा हावी रहा। एक मायने में 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में खतियान आधारित स्थानीयता नीति पर ही लकीर खींची जाएगी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल के रुख की आलोचना करते हुए भाजपा को कठघरे में खड़ा किया है। मोर्चा की रणनीति है कि इसे आगे बढ़ाते हुए भाजपा से राजनीति के मैदान में मुकाबला किया जाए। निचले स्तर तक यह संदेश भेजा जाए कि स्थानीयता नीति लागू करने में भाजपा बाधक है। स्थापना दिवस के मौके पर पेश प्रस्ताव में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति घोषित करने की मांग सर्वसम्मति से की गई। झामुमो के वरिष्ठ विधायक प्रो.स्टीफन मरांडी का दावा है कि केंद्र सरकार हेमंत सरकार का पांच खींच रही है। विकास का माहौल बनाने में अड़ंगा लगाया जा रहा है। कानूनी दांवपेंच में राज्य सरकार को फंसाया जा रहा है। सरकारी जांच एजेंसियों के जरिए डराया जा रहा है। झामुमो इससे घबराने वाला नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कोरोना काल के बाद 2 साल बाद को दुमका में अपना स्थापना दिवस मनाया। यह पार्टी की 44वीं स्थापना दिवस थी। इस दौरान उपराजधानी दुमका में दिशोम गुरु शिबू सोरेन, मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन,सुप्रियो भट्टाचार्य समेत पार्टी के अन्य नेता की मौजूदगी में पार्टी ने 47 सूत्री प्रस्ताव पारित कर सरकार की कार्यसूची में प्राथमिकता से शामिल करने की मांग की गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा पारित 47 सूत्री मांग में झारखंड में पूर्ण नशाबंदी लागू करने की मांग भी की गई है। जानकारी हो कि बिहार,गुजरात इन राज्यों में शराब पर पूर्ण तरीके से प्रतिबंध लगा है। अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा पारित की गई इस मांग पर सरकार ध्यान देती है तो बिहार के तर्ज पर झारखंड में भी शराब बंद हो जाएगी। झामुमो के एजेंडे में राज्य में पूर्ण नशाबंदी भी है। 1977 में जब पहली बार मोर्चा की स्थापना दुमका स्थित एसपी मेमोरियल कॉलेज मनाया गया था तब से नशाबंदी एजेंडे में है। राजभवन से 1932 के खतियान पर आधारित विधेयक वापस होने के बावजूद सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस मुद्दे पर और मजबूती से आगे बढ़ने की रणनीति तैयार की है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, दिशोम गुरू शिबू सोरेन की उपस्थिति में पारित प्रस्तावों में 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति घोषित करने की मांग की गई है। इसके साथ ही झारखंड में तृतीय व चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के पद को पूर्णरूपेण स्थाई निवासी के वंशजों के लिए आरक्षित किए जाने की मांग रखी गई है। साथ ही मोर्चा ने भाजपा द्वारा संताल परगना में एनआरसी लागू करने की मांग को भी सिरे से ठुकराते हुए कहा है कि सीएए और एनआरसी का राज्य में कोई औचित्य नहीं है। भाजपा ने संथाल परगना की डेमोग्राफी में बदलाव की मांग करते हुए एनआरसी लागू करने को मुद्दा बनाया है। इसके अलावा जमीन संबंधी कानून सीएनटी और एसपीटी एक्ट को और सख्ती से लागू करने पर भी सहमति बनी है। प्रमंडलीय संयोजक सह झामुमो के केंद्रीय महासचिव विजय कुमार सिंह ने सभा का संचालन करते हुए इन प्रस्तावों को पड़ा तथा मंचासीन नेताओं और खचाखच भरे गाने मैदान में समर्थकों की भीड़ हाथ उठाकर इन न प्रस्तावों को पढ़ा तथा मंचासीन नेताओं और खचाखच भरे गांधी मैदान में समर्थकों की भीड़ हाथ उठाकर इन प्रस्तावों पर मुहर लगाई। पारित प्रस्तावों में दुमका में उच्च न्यायालय खंडपीठ की स्थापना करने,कृषि को उद्योग का दर्जा देने,झारखंड क्षेत्र में स्पष्ट विस्थापन एवं पूनर्वास नीति बनाने,अल्पसंख्यक वित्त निगम का शीघ्र गठन करने,पूर्ण शराब बंदी लागू करने,वित्तरहित शिक्षा नीति समाप्त करने,जंगलों की सुरक्षा एवं संवर्द्धन करते हुए ग्राम वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति को सशक्त करने,ग्राम प्रधानों की मानदेय राशि की बढ़ोतरी करने संबधी प्रस्ताव पारित किए गए झारखंड मुक्ति मोर्चा, जो एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी है, जो आदिवासियों का नेतृत्व करने के रूप में जानी जाती है। इस पार्टी का गठन 4 फरवरी 1973 को धनबाद में हुआ था।पार्टी का चिन्ह धनुष-तीर है।शिबू सोरेन ने शिवाजी समाज के विनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की थी। उस समय विनोद बिहारी महतो झामुमो के अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव बनाए गए। 1991 में मोर्चा के तत्कालीन अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो के निधन के बाद शिबू सोरेन को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।झारखंड मुक्ति मोर्चा का झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में काफी अहम योगदान रहा है।22 जुलाई 1997 को शिबू सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा के आंदोलन के दबाव में ही बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने बिहार विधानसभा से झारखंड बंटवारे का एक प्रस्ताव पारित कराया था।धनबाद में झामुमो की स्थापना के बाद झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन ने 2 फरवरी, 1977 को दुमका में दुमका जिला कमेटी गठित की थी।उसी दिन से दुमका में स्थापना दिवस मनाया जाता है। दुमका के शिकारीपाड़ा विधानसभा से लगातार छह बार विधायक और राज्य में कृषि मंत्री रहे नलिन सोरेन दो फरवरी के शुरुआती दिनों को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं।उनका कहना है कि पहली बार वर्ष 1977 में दुमका के एसपी कालेज में दो फरवरी को स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। उस वक्त संसाधनों की घोर कमी थी। पूरे संताल परगना में आवागमन की सुविधा भी नहीं थी।तब संचार तंत्र का भी कोई अता-पता नहीं होता था। ऐसे में ग्रामीणों को सूचना व न्यौता भेजने के लिए संताली परंपरा के तहत ढरुअ घुमाया जाता था। ग्रामीण हाटों में एक लंबा डंडा में हरे पत्तों को बांधकर संताल समुदाय के संदेश या निमंत्रण देने की परंपरा को ढरुअ के नाम से पुकारा जाता है।नलिन कहते हैं कि जब ढरुअ घुमाया जाता है तब ग्रामीण पूछते हैं कि कौन-सा संदेशा है।तब उन्हें संदेश के बारे में जानकारी दी जाती है। उस समय पार्टी सुप्रीमो इसी के जरिए ग्रामीणों के बीच संदेश भेजवाने की शुरुआत किए थे। पहले स्थापना दिवस में गुरुजी का संदेश मिलने पर संताल परगना के कोने-कोने से बड़ी संख्या में लोग एसपी कालेज मैदान में जुटे थे। परंपरागत वेशभूषा, ढोल व तीर-धनुष के साथ ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी। पार्टी ने 2019 में विधानसभा चुनाव हेमंत सोरेन की अगुवाई में ही लड़ा और अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता हासिल कर ली।जेएमएम ने राज्य की 81 में से 30 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया और कांग्रेस एवं आरजेडी के साथ मिलकर कुल 47 सीटों के साथ गठबंधन की सरकार बनाई।आज की तारीख में हेमंत सोरेन के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के भीतर और कमोबेश राज्य में कांग्रेस और राजद को मिलाकर चल रही गठबंधन सरकार के अंदर भी कोई चुनौती नहीं है। हाल के महीनों में कांग्रेस के कई विधायकों ने कुछ मुद्दों पर सरकार के निर्णयों पर सवाल जरूर उठाए हैं, लेकिन गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा के मजबूत संख्याबल के चलते हेमंत सोरेन अपने निर्णयों पर अडिग हैं। 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य के निर्माण से लेकर अब तक राज्य में पांच बार सत्ता की कमान झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी सोरेन परिवार के पास आई। वर्ष 2005, 2008 और 2009 में शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने थे, जबकि 2013-14 में हेमंत सोरेन पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे।झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाली ये चारों सरकारें अल्पजीवी रहीं।कोई सरकार महज कुछ रोज का मेहमान रही, कोई छह महीने तो कोई 14 महीने तक चली। 2019 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जेएमएम की अगुवाई में पांचवीं बार सरकार बनी और हेमंत सोरेन दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने।जेएमएम की ये अब तक की सबसे लंबी चलने वाली सरकार है। ईएमएस / 05 फरवरी / 23