लेख
05-Feb-2023
...


भारत अमृत काल में प्रवेश कर गई है। 15 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री ने ऐलान किया था, कि 2047 भारत की स्वतंत्रता के 100 साल पूरे हो जाएंगे। भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थ शक्ति,भारत को बनाने की बात कही थी। निश्चित रूप से,भारत का शायद ही ऐसा कोई आदमी होगा, जो भारत के अमृत काल और स्वतंत्रता के 100 साल पूरे होने पर इस गर्व को नहीं पाना चाहेगा। हाल ही में सरकार ने मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान कर दिया है। इसके पहले भी केंद्र सरकार ने बहुत सारे महत्वपूर्ण स्थानों का नाम बदल दिया। सभी राज्यों में विश्वविद्यालयों, ऐतिहासिक धरोहरों, और शहरों के नाम बदले जा रहे हैं। कई शहरों के नाम बदल दिए गए, जो नए नाम रखे गए हैं। उनकी पहचान अभी तक भारत के लोगों में ही नहीं बन पाई। उनकी पहचान कब और कैसे बनेगी। इसको लेकर सरकार के पास कोई प्लान नहीं है। यदि पहचान बनाना चाहेंगे, तो इसके लिए भी हजारों करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे। उसके बाद भी सैकड़ों वर्षो में जो पहचान बनी थी उस पहचान को बनाए रखना संभव नहीं होगा। सैकड़ों हजारों वर्षों से अपने नामों के कारण सारी दुनिया में पहचान बनाकर रख पाने वाले स्थान, संस्थान, जिनकी वैश्विक स्तर पर पहचान बनी हुई है। उन नामों को बदलकर हम अपनी पहचान खोने का काम कर रहे हैं। ऐतिहासिक पहचान को छुपाकर एक तरह से हम अपने लिए स्वयं परेशानी खड़ी कर लेते हैं। क्योंकि हमारा जब कोई इतिहास नहीं होता है। तो उसकी पहचान बनाना और अपने गर्व को बताना सबसे बड़ा कठिन काम होता है। वायसराय की पत्नी लेडी हार्डिंग 1913 में जब पढ़ रही थी। तब उन्होंने अपनी एक किताब लिखी थी। नालियों के साथ बगीचे बनाने का एक पैटर्न बताया था। जिसके आधार पर मुगल गार्डन बनाते समय गार्डन को 4 हिस्सों में बांटा गया। अंग्रेजों ने भारत में, ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटेन राजपरिवार के नेतृत्व में लगभग 250 साल तक शासन किया। उन्होंने मुगलों के इतिहास को समाप्त करने का काम नहीं किया। उन्होंने मुगलों से अच्छा काम करके मुगलों से अच्छी अपने शासन की एक पहचान बनाई। जिससे अंग्रेजों का गौरव बढ़ा लेकिन मुगलों का मिटा नहीं। 1928-29 में जब दुनिया भर से गुलाब की 250 किस्में लाकर मुगल गार्डन में लगाई गई। मुगल गार्डन के मालियों ने उसके नाम अर्जुन और भीम जैसी विभूतियों के नाम पर रखे। विश्वविद्यालयों के नाम शहरों के नाम पर रखे गए। अंग्रेजों द्वारा जो चीजें भारत में अपने दौर में लाई गई। हम उन्हें उन्हीं नामों से पुकार रहे हैं। विश्व स्तर पर भी सैकड़ों वर्षो में उनकी पहचान बनने के लिए लग गए हैं। इतिहास सतत प्रगति की ओर ले जाता है। इतिहास हमें जानकारी और सबक देता है। हम पहले क्या थे, अब क्या हैं। रावण नहीं होता, तो भगवान श्री राम भी नहीं होते। राम बनने के लिए एक रावण होने की जरूरत होती है। जिस तरह से नाम बदलने का तड़का लगाकर हिंदुत्व के नाम पर हम अपनी पहचान को खोने का काम कर रहे हैं। आगे चलकर इसका बहुत बड़ा दुष्परिणाम हमें उठाना पड़ेगा। क्योंकि नई पहचान बनाने के लिए फिर हमें सदियों तक मेहनत करनी पड़ेगी। जितने सालों में हम भारत की पहचान बनकर सारी दुनिया के सामने हैं। खाने-पीने के वस्त्र, प्राचीन सभ्यता,प्राचीन सामाजिक व्यवस्था प्राचीन धर्म विभिन्न धर्म आधुनिक सभ्यता, इत्यादि का समय समय पर जब समावेश होता है। उसके बाद ही हम विकास के क्रम में तेजी के साथ आगे बढ़ते हैं। जिस तरह से नाम बदलने के लिए हिंदू धर्म, हिंदुत्व, भारत की संस्कृति और परंपराओं के नाम पर लोगों को जो नशा परोसा जा रहा है। उस नशे के वशीभूत होकर एक पूरी पीढ़ी वह सब भूल रही है, जो उसे याद रखने की जरूरत थी। जब कोई भी नई संस्कृति आती है। उसका अपना एक प्रभाव होता है। जब सारी दुनिया के लोग भारत आए। उनका खाना-पीना, संस्कृति, धर्म इत्यादि सब समय-समय पर यहां पर आया। यहां से सारी दुनिया में भीभारतीय संस्कृति भारतीय धर्म सारी दुनिया में फैले हैं। एक दूसरे से इसकी तुलना ठीक नहीं है। अब तो लोग हंसी मजाक करने लगे हैं, कि यदि मुगलई पराठा खाना है। तो उसका नाम क्या होगा। चाइनीज खाने का नाम क्या होगा। मुगलई बिरियानी और मुर्ग मुसल्लम का क्या होगा। कई रेस्टोरेंट और होटलों ने तो डर के मारे इन नामों को ही बदल दिया है। उसके बाद भी पुराने नाम से ही उनकी मांग होती है। अंग्रेजों के समय और स्वतंत्रता के पश्चात जो फिल्में बनी हैं। हिंदू और मुगलों का जो स्वर्णिम इतिहास रहा है। उनका हम क्या करेंगे। समय-समय पर हर संस्कृति को अलग पहचान थी। उस पहचान को खोकर हम कौन सी नई पहचान बनाकर रख पाएंगे 1000 साल पहले सैकड़ों मुगल आए, भारत के कई हिस्सों में देखते ही देखते शासन स्थापित कर लिया। तब उनकी संख्या हजारों में भी नहीं थी। इस पर भी जरा गौर करें, कि तब हिंदू और हिंदू धर्म और हिंदुत्व कहां था। तब हिंदू राजा अपनी प्रजा का शोषण क्यों करते थे। क्यों प्रजा ने मुगलों के शासन को स्वीकार कर लिया। यह सब गंभीरता से सोचना होगा। जब बच्चा पैदा होता है। तब मां-बाप उसका नाम रखते हैं। बच्चे को मां बाप के नाम से समाज और सारे राष्ट्र में पहचाना जाता है। यदि हम बच्चे की पहचान से उसके मां-बाप की पहचान को अलग कर दें। तो उस बच्चे का कोई महत्व, कभी भी समाज और देश में नहीं होगा। क्योंकि उसके साथ उसका इतिहास नहीं है। यह बात हमारे राजनेताओं और हिंदुओं के मठाधीसों को समझना होगी। गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ हासिल नहीं होता है। मुर्दों के साथ रहने से हम मुर्दा ही होने लगते हैं। विकास के क्रम में हमें अपने अच्छे और बुरे इतिहास के साथ आगे बढ़ना होगा। इसी के आधार पर विकास का क्रम चलता है। अच्छाई और बुराई की पहचान हमेशा होती रहती है। जो बुरे थे वह हमेशा बुरे रहेंगे जो अच्छे थे वह हमेशा अच्छे रहेंगे। नाम का क्या है, नाम करोडीमल और खाने को दो टाइम के लिए पैसे भी नहीं होते हैं। ईएमएस / 05 फरवरी 23