लेख
07-Feb-2023
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शब्द के बाण या घाव बहुत गहरे और अंतरभेदते हैं। कहा भी जाता हैं कि जितने काला नेगेटिव होता हैं उससे उतना साफ़ पॉजिटिव फोटो आती हैं। हमारे देश में जोड़ीदार शब्दों का बहुत उपयोग होता हैं और ख़ास तौर पर बुन्देलखंड में जैसे पानी आनि पियोगे ,चाय आय लाय। .रोटी --ओटी खाएंगे,थाली आली लगाओ। हमारे सिनेमा जगत में बिना खलनायक के कोई पिक्चर नहीं बनती। इसी प्रकार हमारा जीवन भी खलनायकी से परिपूर्ण हैं। एक बात निश्चित हैं खलनायक का जीवन क्षणिक और कष्टकारी होता हैं और अंत मौत होती हैं। काळा रंग में सब रंग समां जाते हैं। इसी प्रकार बिना विपरीत किरदार के नायक का कोई स्थान नहीं रहता हैं। धर्म और इतिहास हमेशा विवाद का विषय रहा हैं राजनीति का क्षेत्र हमेशा विवाद का विषय रहता हैं। कारण कोई भी बात एक अपेक्षा से सत्य भी हैं और असत्य भी। हमारे जीवन में विवाद के लिए एक शब्द हैं ही और उसका समाधान भी हैं। वक्ता का क्या अभिप्राय हैं और समझने वालों का क्या अभिप्राय हैं। जिस प्रकार घटना एक होने पर अलग अलग विचारधारा वाले उस घटना को अलग अलग ढंग से प्रस्तुत करते हैं। राजनीति हमेशा नपे तुले शब्दों से नहीं चलती। विवाद को जन्म देना एक कारण हैं और दूसरा एक अपेक्षा से सच भी। जितेंद्र आव्हाड ने ट्वीट में लिखा है कि अगर रावण को रामायण से निकाल दिया जाए तो श्रीराम के चरित्र का क्या महत्व रहेगा। दुर्योधन, कर्ण को महाभारत से हटा दिया जाए तो कृष्ण और अर्जुन का क्या महत्व रहेगा। मुगलों और आदिलशाह को छोड़ दें तो फिर शिवाजी महाराज के इतिहास को कैसे समझेंगे? इसी तरह अंग्रजों को अलग कर दिया तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्व को कैसे समझेंगे? इसी प्रकार गाँधी -गोडसे एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। गोडसे भी गाँधी के हत्यारे होने के कारण प्रतिष्ठ हैं अन्यथा गोडसे को कौन जानता। वैचारिक स्वतंत्रता के कारण स्वच्छंदता जन्मी हैं। हां यह बात सही हैं यदि कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति सार्वजनिक रूप से बोलकर विवादित हो जाता हैं जबकि हम अलग बैठकर वही बात कहेंगे तो वह सच होती हैं . पुराने ग्रन्थ जैसे रामायण, महाभारत, इतिहास कई भाषाओं में कई प्रकार से लिखे गए हैं उनका अवलोकन करने पर सच अलग होता हैं। खैर मुंह से निकला शब्द। तीर से निकला बाण और बहता हुआ जल कभी वापिस नहीं आता। सादगी नवजवानी की मौत हैं। कुछ न कुछ इलज़ाम होना चाहिए। ईएमएस / 07 फरवरी 23