लेख
07-Feb-2023
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केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2023-24 का बजट प्रस्तुत किया है। इसे एक दिशाहीन बजट माना जा रहा है। बजट को दीर्घकालीन सुधारों और दीर्घकालीन ढांचागत विकास की बुनियाद पर खड़ा किया गया है। इसकी कोई समय सीमा बजट में तय नहीं की गई है। वर्ष 2023-24 के लिए बजट में राशि भी उपलब्ध नहीं कराई गई है, केवल दिशा दी गई है। कल्पनाओं के आधार पर बजट की आधारशिला रखी गई है। इन दिनों देश आर्थिक मंदी,महंगाई और बेरोजगारी की मार झेल रहा है। लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे नहीं है। सरकार ने जो बजट प्रस्तुत किया है। उसमें खर्च बढ़ाने को प्राथमिकता दी गई है। सरकार ने बचत को बजट में कोई प्रोत्साहन नहीं दिया है। उल्टे आयकर की धारा 80 में मिलने वाली बचत की छूट को भी समाप्त कर दिया है। जिसके कारण बचत और कम होगी। इससे आगे चलकर आर्थिक संकट और भी बढ़ सकता है। 2008- 2009 के वर्ष में जब पूरे विश्व के देश आर्थिक मंदी के संकट में फंसे थे। उस समय भारत की बचत 30 से 32 फ़ीसदी हुआ करती थी। जिसके कारण भारत 2008 से लेकर 2010 के बीच वैश्विक आर्थिक मंदी का मुकाबला बेहतर तरीके से कर पाया था। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तारीफ करते हुए, उन्हें अपना आर्थिक गुरु बता दिया था। जबकि अमेरिका और विकसित राष्ट्र आर्थिक मंदी की चपेट में बुरी तरह से प्रभावित थे। कोविड महामारी के बाद निम्न और मध्यम वर्ग के ऊपर बड़ा खर्चा बढ़ा है। मध्यमवर्ग तेजी के साथ गरीबी रेखा की ओर अग्रसर हो रहा है। आम आदमी अपनी ईएमआई तक जमा नहीं कर पा रहा है। खर्च करने के लिए वह दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं की कटौती करने विवश है। निजी और सरकारी क्षेत्रों में लगातार रोजगार घट रहे हैं। निजी क्षेत्रों में लगातार छटनी जारी है। सरकारी विभागों के लाखों पद खाली पड़े हुए हैं। सरकार उन्हें भर नहीं रही है। 80 करोड़ गरीबों को फ्री में अनाज बांटा जा रहा है। ताकि वह किसी तरह से 2 वक्त पेट भर सकें। शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। मनरेगा का बजट घटा दिया गया है। मनरेगा के मजदूरों को 50 दिन का भी काम साल भर में नहीं मिल रहा है। जो मजदूरी कर चुके हैं, उनको उसका भुगतान नहीं किया गया है। आम आदमी की आय लगातार घट रही है। महंगाई लगातार बढ़ रही है। किसानों को बजट में तत्काल कोई राहत नहीं दी गई है। बजट में 45 लाख युवाओं को 3 साल प्रशिक्षण और भत्ता देने की बात जरूर की गई है। किंतु इसके बारे में कहा जा रहा है,कब बाबा मरेंगे और कब बैल बिकेंगे। आयकर की लिमिट जरूर बढ़ाई गई है। लेकिन आयकर की धारा 80 में मिलने वाली छूट को समाप्त कर दिया गया है। जिसके कारण बैंकों, डाकघरों और जीवन बीमा निगम में आम आदमी जो बचत करता था। छूट के स्थान पर अब ब्याज की आय पर टैक्स लगेगा। वित्तीय वर्ष 2023-24 के बाद वह भी संभव नहीं होगा। लोगों के खर्च बढ़ रहे हैं।बचत जो थी वह खर्च हो रही है। यदि किसी तरह खर्च में कमी करके बचत की। तो उस पर छूट नहीं मिलेगी, उल्टे टैक्स देना पड़ेगा। जिसके कारण यह माना जा रहा है कि सरकार खर्च को प्रोत्साहित कर रही है। बजट के निष्कर्ष निकालने पर यह माना जा रहा है, कि सरकार बाजार की चिंता कर रही है। यह कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन इसके साथ-साथ आम आदमी क़ी आय और उससे जुड़े हुए खर्च को देखकर ही बाजार को छूट दी जा सकती है। यहां उल्टा हो रहा है। बजट में खर्च और बाजार को प्रमुखता दी गई है। वहीं बचत और लाभ के मुद्दे पर सरकार बजट में चुप्पी साध कर बैठी हुई है। पहली बार सरकार ने इसे कई वर्षों बाद बजट का बेहतर असर देखने को मिलेगा, यह कहा जा रहा है। जो अपने आप में हास्यप्रद है। ईएमएस / 07 फरवरी 23