लेख
08-Feb-2023
...


जब तुम्हें लगता है कि समय बहुत कम है, तुम या तो बेचैन होते हो या अत्यन्त सजगता की अवस्था में होते हो। दुखी या उत्सुक होने पर तुम्हें समय बहुत लम्बा लगता है। जब तुम प्रसन्न हो और जो कुछ कर रहे हो, उसमें आनंद आ रहा है, तब तुम्हें समय का आभास नहीं होता। इसी प्रकार, नींद में भी तुम्हें समय का आभास नहीं होता। जब तुम समय से आगे हो, समय कटता ही नहीं और नीरसता अनुभव होती है। जब समय तुम्हारे आगे है, तब तुम आश्चर्यचकित और स्तब्ध होते हो। तुम घटनाओं को आत्मसात नहीं कर पाते। गहन ध्यान में तुम ही समय हो और सब कुछ तुम्हारे ही अहदर घटित हो रहा है। घटनाएं तुममें ऐसे घट रही हैं, जैसे आसमान में बादल गुजरते हैं। जब तुम समय के साथ होते हो, तुम ज्ञानी हो, तुम्हारा मन शांत है। जब मन प्रसन्न होता है, तब यह विस्तृत होता है, तब समय भी बहुत छोटा लगता है। जब मन दुखी होता है, संकुचित होता है, तब समय बहुत लंबा प्रतीत होता है। जब मन समचित्त है, स्थिर है, तब यह काल के परे है। इन दोनों स्थितियों से बचने के लिए कई व्यक्ति शराब या निद्रा का सहारा लेते हैं, परंतु जब मन जड़ या बेसुध होता है, तब यह अपनी ही अनुभूति नहीं कर सकता। समाधि ही असल शांति है, जो मन और समय के परे है। जैसे मन समय को अनुभव करता है, वैसे इस क्षण का भी अपना एक मन है। एक विराट मन, जिसमें व्यवस्था करने की अपरिमित और असीम योग्यता है। एक विचार और कुछ नहीं, समय के इस क्षण में एक तरंग है और समाधि के कुछ ही पल मन को ऊर्जा से भर देते हैं। निद्रावस्था के पहले और जिस पल तुम नींद से जगाते हो, सचेतनता के उन धूमिल क्षणों में, समय के परे जाने का अनुभव करो। जीवन साकार व निराकार का मिशण्रहै। भावनाओं का कोई आकार नहीं परंतु उनकी अभिव्यक्ति साकार होती है। आत्मा का कोई रूप नहीं परंतु उसका निवास साकार में है। इसी तरह, ज्ञान और कृपा का भी कोई रूप नहीं, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति किसी रूप द्वारा ही होती है। निराकार को हटा देने से तुम जड़ बनते हो- सांसारिक और संवेदनशील। आकार को छोड़ देने से तुम एक भ्रमित तपस्वी, अत्यधिक सपने देखने वाले या भावनात्मक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति बन जाते हो। ईएमएस फीचर