भारतीय संस्कृति में प्रत्येक ऋतु, माह, दिन और क्षण का एक विशिष्ट धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसी क्रम में ‘सावन मास’—जो कि वर्षा ऋतु के मध्य में आता है—एक ऐसा पवित्र कालखंड है जो पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित होता है। सावन मास में वातावरण का नैसर्गिक सौंदर्य, वर्षा की शीतलता, धरती की हरियाली, मनुष्य के भीतर भक्ति की ऊर्जा को जाग्रत करती है। भारतीय पंचांग के अनुसार यह महीना चातुर्मास का आरंभिक काल होता है, जिसे धर्म और तपस्या का काल कहा जाता है। विशेष रूप से उत्तर भारत, नेपाल और शिवभक्तों के लिए सावन मास अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी समय भगवान शिव की आराधना की जाती है और कांवड़ यात्रा जैसी श्रद्धा से परिपूर्ण परंपराएं आरंभ होती हैं। सावन मास का धार्मिक महत्व : हिंदू धर्म में सावन मास को ‘श्रावण मास’ के रूप में जाना जाता है और यह मास पूर्णतः शिव भक्ति के लिए आरक्षित माना जाता है। पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला था, तब संपूर्ण ब्रह्मांड को उसकी ज्वाला से बचाने हेतु भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ कहलाए। सावन मास में इसी घटना का स्मरण करते हुए भगवान शिव को जलाभिषेक किया जाता है ताकि उनकी तपन को शीतलता मिल सके। यह जलाभिषेक भक्तों द्वारा गंगाजल, दूध, शहद और अन्य पवित्र द्रव्यों से किया जाता है। इस मास में सोमवार का विशेष महत्व होता है जिसे ‘श्रावण सोमवर’ कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि सावन के सोमवार को विधिपूर्वक उपवास रखकर शिवजी की पूजा-अर्चना करने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। स्त्रियां सौभाग्य की प्राप्ति और सुयोग्य वर की कामना से यह व्रत करती हैं, जबकि पुरुष भी आरोग्य, समृद्धि और आत्मिक शुद्धि के लिए इस व्रत को रखते हैं। शिवतत्त्व की दार्शनिक व्याख्या : भगवान शिव केवल एक देवता नहीं बल्कि एक तत्त्व हैं—वह ब्रह्मांड के अद्वैत सिद्धांत के जीवंत प्रतीक हैं। वे संहारक हैं, परंतु उसी संहार में नवसृजन की संभावना छिपी होती है। वे योग के आदि स्रोत हैं—आदि योगी, आदि गुरु। शिव की उपस्थिति ध्यान, मौन और आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया में होती है। शिव का हर स्वरूप, हर प्रतीक एक गूढ़ दार्शनिक भाव लिए हुए है। त्रिशूल (Trishul) उनके तीन गुणों—सत्व, रज और तम—पर नियंत्रण का प्रतीक है। डमरू (Damaru) से सृष्टि की ध्वनि—‘नाद’ उत्पन्न होती है, जिससे सृष्टि के बीज मंत्र निकलते हैं। जटाजूट से बहती गंगा जीवन और पवित्रता का संकेत देती है। वृषभ (नंदी) उनके वाहन रूप में धर्म, संयम और सेवा का प्रतीक है। श्मशान में निवास करने वाले शिव इस बात का बोध कराते हैं कि जीवन और मृत्यु का भेद कृत्रिम है—परम सत्य केवल आत्मा है जो अमर है। सावन और शिवभक्ति की मनोवैज्ञानिक अनुभूति : सावन का महीना केवल पूजा का समय नहीं होता, यह आत्मान्वेषण, शुद्धिकरण और ध्यान का उपयुक्त काल होता है। वर्षा के शीतल जल की तरह यह महीना मन को भी शीतलता प्रदान करता है। जल की बूँदों की तरह शिव की कृपा भी भक्तों पर बरसती है। भौतिक जगत की कोलाहल से अलग होकर जब व्यक्ति शिव के ध्यान में लीन होता है, तब उसे परम शांति का अनुभव होता है। शिव को अर्धनारीश्वर रूप में भी पूजा जाता है, जो जीवन के संतुलन का प्रतीक है—पुरुष और स्त्री, शक्ति और शिव, संकल्प और क्रिया—सभी का एकत्व। सावन मास में प्रकृति भी इसी संतुलन की झलक देती है—धरती की प्यास बुझती है, आकाश नाचता है, पेड़ हरे-भरे होते हैं और जीव-जंतु उल्लासित होते हैं। यह सब शिव की जटाओं से बहती कृपा के ही रूप हैं। श्रद्धा का पर्व : कांवड़ यात्रा : सावन मास में ‘कांवड़ यात्रा’ एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान होता है जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगोत्री, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, देवघर आदि से गंगाजल लेकर पैदल यात्रा करके शिवलिंगों पर जल चढ़ाते हैं। ये भक्त कांवड़िए कहलाते हैं और पूरे अनुशासन, ब्रह्मचर्य और नियमों का पालन करते हुए यह यात्रा करते हैं। यह यात्रा न केवल एक धार्मिक आयोजन होती है बल्कि संयम, श्रद्धा और समर्पण का ऐसा उदाहरण होती है जो भारत की आध्यात्मिक चेतना को प्रमाणित करती है। शिवपुराण में सावन का उल्लेख : ‘शिव महापुराण’ में सावन मास की महिमा अत्यंत भावपूर्ण रूप से वर्णित है। इसमें कहा गया है कि इस मास में एक बार ‘ओम् नमः शिवाय’ का जप करने से सहस्त्र बार जपने के समान फल प्राप्त होता है। इस मास में बिल्वपत्र, धतूरा, आक, गंगा जल और भस्म से की गई पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। शिवपुराण के अनुसार श्रावण मास में शिव का पूजन करने वाला जीव इस जीवन में भी सुख प्राप्त करता है और मृत्यु के बाद शिवलोक को प्राप्त करता है। लोक-संस्कृति और सावन : सावन केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भारतीय लोक-संस्कृति का भी एक उल्लासमयी पर्व है। विशेष रूप से महिलाएं इस महीने को बहुत उल्लास से मनाती हैं। झूले पड़ते हैं, सावन के गीत गूंजते हैं—“कजरी”, “झूला”, “सोहर” जैसी लोक विधाओं में शिव-पार्वती का वर्णन होता है। स्त्रियां हरी चूड़ियां पहनती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती हैं और सौंदर्य के प्रतीकों के माध्यम से शिव-पार्वती के सौभाग्य की कामना करती हैं। यह मास स्त्री-शक्ति के भी जागरण का समय होता है, जब गौरी के रूप में नारियों की साधना की जाती है। भक्ति और योग का समन्वय सावन का महीना योग, ध्यान और तपस्या का सर्वोत्तम काल है। भगवान शिव को योग का अधिपति माना जाता है। ‘शिव सूत्र’ और ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ जैसे ग्रंथों में शिव ने ध्यान और योग की विविध विधियों को बताया है, जिनका अभ्यास विशेष रूप से सावन में किया जाता है। इस मास में शरीर और मन का शुद्धिकरण करते हुए उपवास, प्राणायाम और मंत्रजप से व्यक्ति शिव के समीप पहुंच सकता है। महाशिवरात्रि की तरह सावन भी एक रात्रि रूपी अंधकार को चीरकर आत्मा के उजाले की ओर ले जाने वाला अवसर है। भगवान शिव का तपस्वी रूप, उनका वैराग्य, उनका मौन और उनका करुणा से परिपूर्ण स्वरूप, साधक को आत्मा के मूल स्वरूप की याद दिलाता है। भगवान शिव : सृष्टि के अंतिम सत्य के प्रतीक भगवान शिव को ‘महादेव’ कहा गया है—देवों के देव। वे शक्ति और शांति, विनाश और सृजन, ध्यान और तांडव, करुणा और न्याय का समन्वय हैं। उनका स्वरूप हमें सिखाता है कि जीवन में संतुलन, संयम, स्वच्छता और साधना के बिना ईश्वरत्व प्राप्त नहीं होता। शिव वह जड़ नहीं हैं जो केवल मूर्तियों में समाहित हैं, वे चेतना हैं, जो हर व्यक्ति के भीतर विद्यमान है। उनका आशीर्वाद केवल पूजा से नहीं, जीवन के आचरण से प्राप्त होता है। सावन मास केवल एक कालखंड नहीं, एक चेतना है। यह मास हमें प्रकृति के साथ एकरूपता, भक्ति के साथ ध्यान, उत्सव के साथ संयम और शिव के साथ आत्मा का साक्षात्कार कराता है। भगवान शिव के चरणों में यह मास समर्पित होकर जीवन को पवित्रता, सादगी और दिव्यता की ओर अग्रसर करता है। उनके प्रति की गई एक सच्ची प्रार्थना, एक ध्यान, एक आहुति, जीवन की दिशा को बदल सकती है। सावन में बहती वर्षा की बूँदें जैसे धूल को धोकर स्वच्छता लाती हैं, वैसे ही शिव का नाम और उनकी पूजा जीवन की सारी क्लेश, चिंता और अधर्म को मिटाकर शुद्धता की ओर ले जाती है। इसीलिए, सावन केवल भक्ति का पर्व नहीं, आत्मा की शिव से एकता का मार्ग है—एक यात्रा है शिवत्व की ओर। (लेखिका पूनम चतुर्वेदी शुक्ला विश्व प्रसिद्ध भाषाकर्मी, साहित्यकर्मी एवं संस्कृति कर्मी हैं और वैश्विक स्तर पर सक्रिय संगठनों ‘न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन’ एवं ‘अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन’ की संस्थापक-निदेशक हैं। लेखिका ने विश्व की दर्जनों प्रसिद्ध सरकारी एवं निजी संस्थाओं) ईएमएस / 19 जुलाई 25