क्षेत्रीय
19-Jul-2025
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गुना (ईएमएस) । जिंदगी मौत की अमानत है जिसने जन्म लिया है उसे मरना ही होगा। चाहे वह राजा, महाराजा, इंद्रों का राजा, सौ धर्म इंद्र या चक्रवर्ती ही क्यों न हो। कोई भी तंत्र, मंत्र हमें मरने से बचा नहीं सकता। मणि मंत्र तंत्र बहु होई, मरते न बचावे कोई। जिसने जन्म लिया है उसे मरना ही होगा। इंद्रों की आयु सागरों में बहुत ज्यादा होती है इसलिए उन्हें अमर कहते हैं पर मरना तो उनको भी पड़ता है। उक्त धर्मोपदेश चौधरी स्थित महावीर भवन में चातुर्मासरत मुनिश्री योग सागरजी महाराज केससंघ मुनिश्री निरामय सागरजी महाराज ने कार्तिकेअनुप्रेक्षा महाग्रंथ का स्वाध्याय कराते हुए दिए। मुनिश्री ने अशरण भावना को समझाते हुए कहा कि कौन हमारा है, कौन पराया है। यह संकट के समय में मालूम पड़ जाता है। जब दुनिया के सारे दरबाजे बंद हो जाते हैं तो तब एकमात्र धर्म का दरबाजा खुला रहता है। परंतु दुख और संकट के समय हमारी परीक्षा होती है, कि हम कहां जाते हैं। लोग ऐसे समय में कुगुरु, कुदेव की शरण में जाकर अपना रोग और बढ़ा लेते हैं। ऐसे समय हमें सच्चे देव, शास्त्र और गुरु की शरण में जाकर पंच परमेष्ठी की शरण लेनी चाहिए। इस दौरान मुनिश्री ने चार शरण बताई हैं। जो हमें संकट से निकाल कर सत्यमार्ग दिखाकर सम्यक दर्शन प्राप्त करा सकती है। वह शरण अरहंत भगवान, सिद्ध भगवान, साधु परमेष्ठी एवं सर्वज्ञ द्वारा बताया गया जिनधर्म है। दुनिया में इसके अलावा सारी शरण हमें संसार में ही परिभ्रमण कराती हैं। मुनिश्री ने कहा कि जब तक हम जमीन से जुड़ें रहेंगे तभी हमें कामयाबी हासिल होगी। केवल बातों से हवा में नहीं उड़ा जा सकता। उन्होंने बताया कि हमें जितनी सांसें मिली हैं प्रतिक्षण उन आयु के निषेध कम होते जा रहे हैं। हमें जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ नही करना चाहिए। जो समय बीत गया है वह करोड़ों स्वर्ण मुद्राएं देकर भी वापस नहीं आ सकता। अत: समय का सदुपयोग देव, शास्त्र और गुरु के चरणों में आकर करते रहना चाहिए। अनंत भवों में परिभ्रमण करके हमें मनुष्य पर्याय मिलती है। उसमें भी उच्च कुल और सच्चे गुरु मिलना कठिन है। सौभागय से हमें महान तपस्वी परम साधक योग सागरजी महाराज का ससंघ चातुर्मास मिला है हमें उसका पूरा लाभ लेना चाहिए। श्रद्धा और अणुव्रत से कैंसर से मुक्ति पाई, मुनिश्री ने सुनाया प्रेरक प्रसंग इस अवसर पर मुनिश्री ने आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का प्रत्यक्ष उदाहरण सुनाते हुए बताया कि एक श्रावक जिसको चौथी स्टेज का केंसर हो गया था। डॉक्टरों ने कुछ ही दिनों का मेहमान बता दिया था। परिवार वाले उसे आचार्यश्री के दर्शन को ले गए। आचार्यश्री ने आशीर्वाद देते हुए उससे रात्रि भोजन एवं चारों प्रकार के अहारों का त्याग करने का नियम दिया और जैसे ही उसने सोचा मरना तो है ही उसने आचार्यश्री से उक्त अणुव्रत ले लिया। श्रद्धा, भक्ति और उसका समर्पण इतना तेज था कि चौथी स्टेज का केंसर भी धीरे-धीरे पलायन कर गया, दूर हो गया। आज वह श्रावक स्वस्थ्य रहकर प्रतिदिन पूजन, आहारदान देकर जीवन जी रहा है।(सीताराम नाटानी -ईएमएस)