केंद्रीय चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में बड़ी-बड़ी बात की थी। कहा था, मतदाताओं के घरों में बीएलओ जाएंगे। पुनरीक्षण के समय मतदाताओं को पावती दी जाएगी। जो दस्तावेज वह जमा करेंगे,उसका रिकॉर्ड मतदाताओं के पास भी होगा। अब जिस तरह की जानकारी बिहार से निकलकर सामने आ रही है। मतदाताओं का फॉर्म ऑफिस में बैठकर बीएलओ और सुपरवाइजर भर रहे हैं। मतदाताओं के फर्जी हस्ताक्षर भी कर रहे हैं। आपातकाल में नसबंदी के जो लक्ष्य सरकारी कर्मचारियों को दिए गए थे। उसी तरह का लक्ष्य बीएलओ को चुनाव आयोग द्वारा दिया गया है। वह आधे अधूरे फॉर्म अपलोड कर रहे हैं। यह सारी कार्रवाई कमरे में कैद हो गई है। कहा जा रहा है, चुनाव आयोग के सारे दावे हवा हवाई थे। सारी सच्चाई खुलकर सामने आ गई है। चुनाव आयोग के खिलाफ मतदाता सड़कों पर आ रहे हैं। 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की हालत देखने लायक होगी। लोकसभा में उपसभापति क्यों नहीं? विपक्ष इस बार लोकसभा में उपसभापति के निर्वाचन को लेकर पुरजोर मांग करेंगे। संवैधानिक रूप से उपसभापति होना अनिवार्य है। अब विपक्ष ताकतवर है। उपसभापति का पद यदि विपक्ष को नहीं भी मिलता है, ऐसी स्थिति में भाजपा को अपने ही किसी सहयोगी दल के सांसद को उपसभापति बनाना होगा। इंडिया गठबंधन ने इसके लिए कमर कस ली है। लोकसभा के अध्यक्ष इस मामले को टाल नहीं पाएंगे। इंडिया गठबंधन अब आसंदी के दबाव में नहीं आता है। लोकसभा का यह सत्र कई महीनो में नए-नए इतिहास रचने जा रहा है। इस बार विपक्ष के पिटारे में इतने अस्त्र हैं। जिनका मुकाबला करना सरकार के लिए आसान नहीं है। आसन्दी भी सरकार की कितनी मदद कर पाएगी। जल्द ही यह सामने आ जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश,नसीहत और सुझाव बेअसर? सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं पर सुनवाई करती है। सुनवाई करने के पश्चात सुप्रीम कोर्ट से जो भी आदेश सुझाव और नसीहत मिलती है। केंद्र सरकार,राज्य सरकारों और उनके अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के किसी भी आदेश, सुझाव और नसीहत पर अमल नहीं करते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच के मामले में सरकारों को रोक लगाने की नसीहत दी है। पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट आदेश दे चुका है। बिहार के मतदाता सूची की पुनरीक्षण में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आधार राशन कार्ड और मतदाता परिचय पत्र को मान्य करने का सुझाव दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर के बारे में भी आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के बाद भी राज्य सरकारों की मनमानी सब कुछ वैसे ही चल रही है, जैसा याचिका लगाने के पहले चल रहा था। सुप्रीम कोर्ट की इस हालत को देखते हुए लोग अब यह कहने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट के हाथी के दांत कुछ और हैं। खाने के दांत कुछ और हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें जो फैसला उनके लिए अनुकूल होता है। उसे मानते हैं, जो अनुकूल नहीं होता है। उसे लाल बस्ते में बंद करके रख देते हैं। हाल ही में हरियाणा और दिल्ली में कोर्ट के आदेश से हजारों वर्ष पुराने गांव की बस्ती को तोड़ा जा रहा है। जिनके घर तोड़े जा रहे हैं। याचिका में वह पार्टी ही नहीं है। दिल्ली में अतिक्रमण कहकर बुलडोजर चल रहा है। उसमें भी अतिक्रमणधारियों को पार्टी नहीं बनाया गया है। उससे आम आदमी के बीच में न्यायपालिका का भरोसा खत्म हो रहा है। बिहार में आम जनता के बीच में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने जैसी कोई बात दिख नहीं रही है। शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में रचा भारत का इतिहास अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने एक इतिहास रस दिया है। मंगलवार की दोपहर वह सुरक्षित वापस लौट आए हैं। अंतरिक्ष से पृथ्वी तक आने के लिए उन्होंने 23 घंटे का सफर पूरा करते हुए अंतरिक्ष में एक इतिहास रच दिया है। निश्चित रूप से इससे भारत का गौरव बढ़ा है। भारत की अंतरिक्ष में यह एक अच्छी उड़ान है। भविष्य में भारत को इसका लाभ मिलेगा। (ईएमएस) एसजे/ 20 जुलाई /2025