पहले चरण के मतदान से पहले मोकामा में जन स्वराज के समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या के बाद राजनीति गरमा गयी है। जन सुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह ने कहा, मोकामा में हमारे उम्मीदवार दिवंगत दुलार चंद यादव के भतीजे हैं। जब हमारे उम्मीदवार के काफिले पर अनंत सिंह के समर्थकों ने हमला किया, तो दुलारचंद यादव (जो स्वयं क्षेत्र के जाने-माने राजनीतिक नेता थे) बीच-बचाव करने पहुंचे लेकिन उन्हें गोली मार दी गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हमलावरों ने यादव को अपनी कार के पहियों के नीचे कुचल दिया। उन्होंने दावा किया, पुलिस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है। इस तरह का कोई भी प्रयास राज्य भर में हमारे कार्यकर्ताओं में आक्रोश पैदा करेगा। इस हत्याकांड के आरोप मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह के समर्थकों पर आरोप लगे हैं।मोकामा से जनसुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी उर्फ लल्लू मुखिया के समर्थन में दुलारचंद यादव लगातार प्रचार कर रहे थे और इस दौरान वो अनंत सिंह के खिलाफ बयानबाजी भी कर रहे थे। कभी लालू यादव के बेहद करीबी और भरोसेमंद रहे दुलारचंद यादव का मोकामा में राजनीतिक प्रभाव के पीछे उनका आपराधिक इतिहास भी रहा है।टाल क्षेत्र में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती थी। साल 2019 में पटना पुलिस ने दुलारचंद यादव को कुख्यात बदमाश बताकर गिरफ्तार किया था।दुलारचंद यादव की हत्या तारतर गांव में हुई है।उनका जन्म भी इसी गांव में हुआ था लेकिन अभी वो बाढ़ में रहते थे। पटना जिले के घोषबरी और बाढ़ थानों में उनके ऊपर कई मामले दर्ज हैं. दुलारचंद यादव पहलवानी का भी शौक रखते थे। दुलारचंद यादव कभी टाल क्षेत्र के सबसे चर्चित व्यक्ति थे। 80 और 90 के दशक में उनका नाम इलाके के सबसे प्रभावशाली लोगों में गिना जाता था।90 के दशक में वो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के संपर्क में आए और मोकामा विधानसभा से चुनाव भी लड़ा था, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा।बाद में वो कई दलों और नेताओं के साथ सक्रिय रहे। बाहुबली अनंत सिंह से भी उनके अच्छे रिश्ते हुआ करते थे और उनका भी गुणगान करते थे। लेकिन इसी साल दुलारचंद यादव अनंत सिंह को छोड़कर पीयूष प्रियदर्शी के साथ चले गए थे और काफी समय से सोशल मीडिया पर अनंत सिंह के खिलाफ बोल रहे थे।इससे दोनों के बीच तनाव बढ़ गया था। चुनाव में धानुक समाज से आने वाले पीयूष प्रियदर्शी उर्फ लल्लू मुखिया के लिए प्रचार की कमान संभाल रहे दुलारचंद यादव को पहले मोकामा में ही लाठी-डंडों से पीटा गया और फिर उन्हें गोली मार दी गई।लल्लू मुखिया ने अनंत सिंह के समर्थकों पर हत्या करने का आरोप लगाया है। वहीं इस हत्याकांड को लेकर बाहुबली नेता और मोकामा से एनडीए के प्रत्याशी अनंत सिंह ने कहा कि वो अपने काफिले के साथ जा रहे थे तभी दुलारचंद के लोगों ने उनके समर्थकों पर हमला कर दिया था।इसी दौरान भीड़ में किसी ने गोली चला दी।अनंत सिंह ने कहा ये पूरा खेला सूरजभान सिंह का है।उन्होंने आरोप लगाया कि सूरजभान ने ही दुलारचंद यादव की हत्या कराई है ताकि चुनाव में नुकसान पहुंचाया जा सके। मृतक के परिजनों ने आरोप लगाया है कि जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह के समर्थकों ने पहले दुलारचंद यादव के पैर में गोली मारी और फिर कार से कुचल दिया, जिससे उनकी मौत हो गई।अनंत सिंह का कहना है कि पहले जन सुराज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अनंत सिंह के काफिले पर हमला किया और जमकर पथराव किया, जिसमें दर्जनभर वाहनों को नुकसान पहुंचा और आधा दर्जन से अधिक समर्थक घायल हो गए। वहीं दुलारचंद यादव की हत्या को लेकर राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी प्रशासन पर सवाल उठाए हैं।उन्होंने कहा कि जब बिहार में इस समय आचार संहिता लगी हुई है तो कोई भी व्यक्ति हथियार लेकर कैसे चल रहा है। दुलारचंद यादव हत्याकांड को लेकर पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव देर रात पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे। उन्होंने बिना नाम लिए बाहुबली नेता अनंत सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि हर बड़ी घटना में आखिर उनका ही नाम क्यों सामने आता है? पप्पू यादव ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि वह असली अपराधियों को छोड़ विपक्षी दलों के लोगों को फंसाने की कोशिश कर रहा है।उन्होंने आशंका जताई कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो कहीं सूरजभान सिंह की हत्या न हो जाए। गंगा के दक्षिणी तट पर बसा मोकामा विधानसभा सिर्फ पटना से 85 किलोमीटर दूर नहीं, बल्कि बिहार की राजनीतिक नब्ज का एक अहम हिस्सा है। कभी इसे उत्तर बिहार का प्रवेश द्वार कहा जाता था, क्योंकि यहां मौजूद राजेंद्र सेतु (रेल सह सड़क पुल) लंबे समय तक उत्तर बिहार को जोड़ने वाला एकमात्र रास्ता था। आज भी, जब बिहार विधानसभा चुनाव की बात आती है, तो सभी की निगाहें पटना जिले की इस सीट पर भी टिकी रहती हैं। यह मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और 1951 में विधानसभा क्षेत्र के रूप में इसका गठन हुआ था।मोकामा की राजनीति पिछले तीन दशकों से किसी न किसी बाहुबली के प्रभाव में रही है, लेकिन 2005 से यहां छोटे सरकार यानी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के दिग्गज नेता अनंत सिंह का एक ऐसा अभेद्य किला बना हुआ है, जिसे भेदना हर विरोधी के लिए एक चुनौती रहा है। मोकामा में 1990 के दशक से ही बड़े-बड़े नेताओं का दबदबा रहा है। इसकी शुरुआत दिलीप कुमार सिंह उर्फ बड़े सरकार ने की थी, जो 1990 और 1995 में जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे और सालों तक मंत्री भी रहे। लेकिन 2005 से अनंत सिंह ने कमान संभाली और फिर यहां का राजनीतिक इतिहास छोटे सरकार के नाम से लिखा जाने लगा। अनंत सिंह ने लगातार पांच बार इस सीट पर जीत का परचम लहराया है। उनका राजनीतिक सफर किसी रोमांचक कहानी से कम नहीं है। अनंत सिंह ने 2015 में पार्टी से किनारा होने पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़कर भी जीत हासिल की। वह 2020 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में शामिल हुए और जेल में रहते हुए भी जीत दर्ज की।हालांकि, 2022 में एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें अपनी विधानसभा सदस्यता गंवानी पड़ी थी। लेकिन मोकामा की जनता ने तब भी उनका साथ नहीं छोड़ा। 2022 के उपचुनाव में, उनकी पत्नी नीलम देवी को राजद ने मैदान में उतारा, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सोनम देवी को बड़े अंतर से हराकर इस सीट को राष्ट्रीय जनता दल के पास बनाए रखा।अब 2025 के चुनावों में, अनंत सिंह फिर से जदयू में लौट आए हैं और पार्टी ने उन पर एक बार फिर भरोसा जताया है।मोकामा का नाम सिर्फ बाहुबल की राजनीति से नहीं जुड़ा है, बल्कि इसका अपना एक गौरवशाली इतिहास भी रहा है। 1908 में, यहीं के मोकामा घाट रेलवे स्टेशन पर महान क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी ने ब्रिटिश मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड की हत्या के असफल प्रयास के बाद खुद को गोली मारकर शहादत दी थी। आज उनकी याद में शहर में शहीद गेट बना हुआ है। 1942 में महात्मा गांधी की यात्रा ने भी यहां के स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी थी। मोकामा सीट पर भूमिहार समुदाय का प्रभुत्व माना जाता है, लेकिन यहां के चुनाव परिणाम हमेशा जटिल जातीय समीकरणों पर निर्भर करते हैं।भारत का दूसरा सबसे बड़ा मसूर उत्पादक क्षेत्र होने के बावजूद मोकामा की राजनीति हमेशा बाहुबल की कहानियों में उलझी रही है। ईएमएस / 01 नवम्बर 25