ज़रा हटके
01-Nov-2025
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वाशिंगटन (ईएमएस)। क्या किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी उंगली से फोन अनलॉक किया जा सकता है? विेशेषज्ञों की माने तो तकनीकी रूप से यह असंभव नहीं है। फिंगरप्रिंट सेंसर बायोमेट्रिक तकनीक पर काम करते हैं। ये उंगली की अनोखी रिज‑पैटर्न (लकीरों और उभारों) को स्कैन कर सुरक्षित डेटाबेस में रखे टेम्पलेट से मिलाते हैं और सही मैच मिलने पर डिवाइस खोल देते हैं। मोबाइल फिंगरप्रिंट सेंसर मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं ऑप्टिकल, कैपेसिटिव और अल्ट्रासोनिक और इनका लाइवनेस डिटेक्शन अलग‑अलग स्तर पर काम करता है। ऑप्टिकल सेंसर प्रकाश के जरिए सतह की इमेज बनाते हैं, कैपेसिटिव सेंसर विद्युत क्षेत्र की मदद से उँगली की रिज ऊँचाई और कुंडलियों को पढ़ते हैं, जबकि अल्ट्रासोनिक सेंसर ध्वनि तरंगों का उपयोग कर 3 डी तस्वीरें बनाकर त्वचा के नीचे के तंत्र और रक्त वाहिकाओं तक की जानकारी लेते हैं। आधुनिक सिस्टम लाइवनेस चेक के माध्यम से पसीना, रक्त प्रवाह, त्वचा का तापमान और सतह की लचीलापन जैसी बुनियादी संकेतों से यह तय करते हैं कि उंगली जीवित है या नहीं। यही वजह है कि कई मामलों में मृत उंगली से सुरक्षा भंग करना कठिन होता है। फिर भी तकनीकी रूप से यह असंभव नहीं है। मृत्यु के तुरंत बाद, जब त्वचा अभी नमीवाली और ऊतक अपेक्षाकृत ताज़ा हों, तो ऑप्टिकल या कैपेसिटिव सेंसर कुछ घंटों तक काम कर सकते हैं। वास्तविक दुनिया के उदाहरण भी सामने आए हैं कुछ मामलों में पुलिस ने मृतक की उँगली का इस्तेमाल कर फोन अनलॉक किया। पर जैसे‑जैसे समय बीतता है, त्वचा सिकुड़ती है, नमी घटती है और विद्युत चालकता घटने लगती है, जिससे कैपेसिटिव सेंसर तेजी से फेल हो जाते हैं और ऑप्टिकल मैच भी विघटित हो जाता है। अल्ट्रासोनिक सेंसर, जिनमें आमतौर पर बेहतर लाइवनेस डिटेक्शन होता है, मृत ऊतक को जल्दी अस्वीकार कर देते हैं। शोध और व्यवहारिक अनुभव बताते हैं कि मृत्यु के 24 घंटे के बाद फिंगरप्रिंट‑आधारित अनलॉकिंग बहुत मुश्किल हो जाती है। नतीजे के तौर पर, मृत उंगली से फोन अनलॉक करना कुछ स्थितियों में संभव हो सकता है, लेकिन यह समय सीमा, सेंसर के प्रकार और लाइवनेस डिटेक्शन की मजबूती पर निर्भर करता है। आधुनिक स्मार्टफोन सुरक्षा में अन्य स्तर पासकोड, बायोमेट्रिक लॉकआउट पॉलिसी और एन्क्रिप्शन भी होते हैं जो केवल फिंगरप्रिंट टेस्ट से आगे सुरक्षा बढ़ाते हैं। सुदामा/ईएमएस 01नवंबर 2025