अंतर्राष्ट्रीय
01-Nov-2025


-तालिबान-हक्कानी में झगड़ा कराकर अफगान को अस्थिर करना चाहता था पाक इस्लामाबाद,(ईएमएस)। पिछले 40 सालों में पाकिस्तान ने दुनियाभर में जिहाद और आतंकवाद फैलाया है और अफगानिस्तान जिसे वह अपना स्ट्रैटजिक डेप्थ मानता है, वो आतंकवाद का प्रयोगस्थल रहा है। अगस्त 2021 में काबुल पर कब्जे के बाद पाकिस्तान पटाखे फोड़ रहा था, क्योंकि उसकी सोच थी कि तालिबान अब उसके इशारे पर नाचेगा। लेकिन तालिबान ने अपनी राह खुद चुनी। तालिबान को हाथ से निकलता देख पाकिस्तान ने अपने तुरूप का इक्का निकाला...सिराजुद्दीन हक्कानी। वह तालिबान और हक्कानी नेटवर्क में झगड़ा लगाकर एक बार फिर अफगानिस्तान को अस्थिर करने में जुटा है, लेकिन सिराजुद्दीन हक्कानी, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का प्यादा था, वह भी अब पलट गया है। पाकिस्तान के प्रमुख प्रोपेगेंडा पत्रकार नजम सेठी ने पिछले दिनों एक टीवी कार्यक्रम में कहा था कि अगर कांधार और काबुल लड़ते हैं, तो पाकिस्तान की राह आसान हो जाएगी और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो पाकिस्तान के लिए आने वाला वक्त खतरनाक होगा। नजम सेठी की दूसरी भविष्यवाणी सच साबित होने जा रही है। सिराजुद्दीन हक्कानी की कहानी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गुप्त खेल की सबसे नाटकीय दास्तानों में से एक है। एक वक्त था जब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने सिराजुद्दीन को अपनी रणनीतिक संपत्ति माना था। उसके पिता जलालुद्दीन हक्कानी, जो 1980 के दशक में सोवियत-विरोधी जिहाद के हीरो माने जाते थे, उसे पाकिस्तान और अमेरिकी खुफिया तंत्र दोनों का भरपूर समर्थन हासिल था। बाद में सिराजुद्दीन ने इसी विरासत को आगे बढ़ाया, लेकिन सिराजुद्दीन हक्कानी ने पाकिस्तान को किसी भी हमले की स्थिति में खूनी अंजाम भुगतने की धमकी देकर आईएसआई को हिला दिया। सूत्रों के मुताबिक तालिबान ने पाकिस्तान के खिलाफ वही रणनीति अपनाने का फैसला किया है, जो उसने अमेरिकी ड्रोन हमलों के खिलाफ अपनाया था। वो है आत्मघाती हमले करवाना। अमेरिकी ड्रोन हमलों के खिलाफ तालिबान आत्मघाती हमले करवाता था और पाकिस्तान में भी आने वाले दिनों आत्मघाती हमलों की बाढ़ आने वाली है। अगर पाकिस्तान, अफगानिस्तान में ड्रोन हमले करता है, तो इसका खूनी अंजाम पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों ही देशों में होगा। सिराजुद्दीन हक्कानी जो कभी आईएसआई की मदद से अमेरिकी ड्रोन हमलों से बच निकला था, अब खुलकर पाकिस्तान की फौजी हुकूमत को चुनौती देने लगा है। असल में पाकिस्तान ने हक्कानी नेटवर्क को इसलिए भी अपने करीब रखा था कि अगर तालिबान आगे जाकर उसे धोखा दे, तो वो हक्कानी को खड़ा कर सके, लेकिन खेल पूरी तरह से बदल गया। हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान के बीच का रिश्ता उतना ही पुराना है जितनी अफगान जंग की कहानियां। उत्तर वजीरिस्तान में बसे इस नेटवर्क ने दशकों तक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के लिए छद्म युद्ध लड़ा है। जब अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना थी, तब हक्कानी नेटवर्क आईएसआई के इशारे पर अमेरिकी ठिकानों पर हमले करता था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आईएसआई का मानना था कि हक्कानी और तालिबान के जरिये वह अफगानिस्तान में भारत या पश्चिमी ताकतों के प्रभाव को सीमित रख सकेगा, लेकिन वक्त ने करवट बदली। तालिबान के काबुल पर काबिज होने के बाद, हक्कानी नेटवर्क की ताकत और बढ़ी और सिराजुद्दीन जो अब अफगानिस्तान के गृह मंत्री हैं, वो खुद को पाकिस्तान का कर्जदार नहीं बल्कि बराबरी का खिलाड़ी समझते हैं। पाकिस्तान इसे पचा नहीं पा रहा है। बता दें कांधार ग्रुप तालिबान का है, जबकि काबुल ग्रुप हक्कानी का है। अफगानिस्तान में कांधार ग्रुप काफी ताकतवर है। अब इस खेल के अगले हिस्से को समझिए। पाकिस्तान, तालिबान को तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) को खत्म करने के लिए कहता है। अफगानिस्तान में टीटीपी उस क्षेत्र में सबसे ज्यादा एक्टिव है, जहां हक्कानी ग्रुप का नियंत्रण है यानि उत्तरी वजीरिस्तान और अमेरिका के खिलाफ आत्मघाती हमलों को अंजाम देने में टीटीपी ने हक्कानी और तालिबान की खूब मदद की। तो क्या अब हक्कानी, टीटीपी के खिलाफ जाएगा? बिल्कुल नहीं। पाकिस्तान यहीं चूक गया। पाकिस्तान, मुल्ला बरादर और सिराजुद्दीन हक्कानी के बीच झगड़ा लगाने में पूरी तरह से नाकाम हो गया है। तालिबान और हक्कानी ने एकजुटता का प्रदर्शन कर पाकिस्तान को हैरान कर दिया है यानि, पाकिस्तान, जिसने कभी तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच फूट डालने की योजना बनाई थी, वो खुद उस आग में झुलस रहा है। सिराज/ईएमएस 01नवंबर25 ----------------------------------