क्षेत्रीय
11-Nov-2025
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वाराणसी (ईएमएस)। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है, जो भारत के कुल गेहूं उत्पादन का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा देता है। गेहूं की खेती राज्य के लाखों किसानों की आजीविका का आधार है। लेकिन ‘नजरों से ओझल’ एक समस्या हर साल गेहूं की पैदावार घटा रही है, वो है — देर से बुवाई। गेहूँ की बुवाई में देरी ज़्यादातर इसलिए होती है कि राज्य के अधिकांश किसान खरीफ मौसम में लंबी अवधि की धान की किस्में लगाते हैं और उन्हें पानी भरे खेतों में रोपाई के जरिए उगाते हैं। इस पद्धति में खेत की तैयारी में अधिक समय लगता है, और जब तक धान की कटाई होती है, तब तक गेहूं बोने का सही समय निकल चुका होता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह समस्या सबसे अधिक व्याप्त है — जहां लगभग 60% गेहूं की बुवाई देर से होती है। वैज्ञानिक शोध बताता है कि धान की कटाई का गेहूं की बुवाई से सीधा संबंध है। 1 नवंबर के बाद धान की कटाई में हर एक दिन की देरी से गेहूं की बुवाई में 0.8 दिन की देरी होती है। देर से बुवाई होने पर गेहूं की फसल पकते समय अधिक गर्मी का सामना करती है, जिससे दाने सिकुड जाते हैं, पैदावार कम हो जाती है और मंडी में दाम भी कम मिलते हैं। गेहूं बोने का सबसे अच्छा समय 1 से 20 नवंबर तक है। इस अवधि में बोए गए गेहूं को सर्दी का पूरा फायदा मिलता है जिससे अधिक फुटाव होता है और दाने भी बेहतर विकसित होते हैं। लेकिन अगर बुवाई 20 नवंबर के बाद होती है, तो प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन 40–50 किलोग्राम पैदावार की हानि होती है। अध्ययनों से पता चला है कि केवल समय पर बुवाई सुनिश्चित करके ही किसान किसी अतिरिक्त लागत के बिना 69% तक ज्यादा पैदावार पा सकते हैं। वास्तव में कृषि क्षेत्र में — “समय ही सबसे बड़ा निवेश है।” किसानों के खेतों में गेंहू की समय पर बुवाई सुनिश्चित करने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान – दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क), वाराणसी कई नवाचारों पर काम कर रहा है, खासकर विश्व बैंक समर्थित यूपीएग्रीज परियोजना के तहत - धान की सीधी बुआई (डीएसआर): इससे धान की कटाई 7–10 दिन पहले हो जाती है, साथ ही पानी, मजदूरी और डीज़ल की भी बचत होती है। मशीन से कटाई और अवशेष प्रबंधन: खेत जल्दी खाली हो जाते हैं (3–4 दिन की बढ़त), और पराली जलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। ज़ीरो टिलेज गेहूं: इस पद्धति में खेत को जोतने की ज़रूरत नहीं होती, जिससे समय पर बुवाई की जा सकती है। इससे मिट्टी की नमी बनी रहती है, मिट्टी का स्वास्थ्य सुधरता है। मजदूरी व ईंधन दोनों की बचत होती है। ज़ीरो टिलेज से किसान अब लंबे समय वाली, अधिक उपज देने वाली गेंहू की किस्में भी अपना सकते हैं। उन्नत किस्में: छोटी और मध्यम अवधि की धान की किस्में (इनब्रेड/हाइब्रिड) और ताप-सहनशील गेहूं की किस्मों को अपनाना ज़रूरी है। इन कृषि उपायों को अपनाकर उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसानों को बेहतर पैदावार, कम लागत और अच्छी मिट्टी की स्थिति का लाभ मिल रहा है। बदलते जलवायु परिदृश्य में समय पर गेहूं की बुवाई पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। अब देर सर्दियों में तापमान अपेक्षाकृत जल्दी बढ़ने लगता है, जिससे देर से बोई गई फसल को गर्मी का झटका लगता है और दानों का भराव प्रभावित होता है। समय पर बुवाई से फसल के प्रमुख विकास चरण ठंडी सर्दियों के अनुकूल वातावरण में पूरे होते हैं, जिससे उच्च उपज और बेहतर दाने की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है। उत्तर प्रदेश के किसान देश की खाद्य सुरक्षा के सच्चे रक्षक हैं। अगर वे समय पर बुवाई और नई तकनीकों को अपनाएं, तो न सिर्फ उत्पादन बढ़ा सकते हैं, बल्कि अपनी आय और मिट्टी दोनों को सुरक्षित रख सकते हैं। आज राज्य में लगभग 97 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं बोया जाता है, जिससे हर साल 320–340 लाख टन गेहूं पैदा होता है। आने वाले वर्षों में यह उत्पादन 450–500 लाख टन तक बढ़ाया जा सकता है। डॉ नरसिंह राम/ईएमएस/11/11/2025