लंदन (ईएमएस)। लंबे समय तक तेज और बदलते डिजिटल कंटेंट के संपर्क में रहने से दिमाग की स्थिरता प्रभावित होती है, जिससे ‘पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम’ तेजी से फैल रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह ऐसी स्थिति है जिसमें दिमाग सतही और निरंतर बदलते उत्तेजनाओं का इतना आदी हो जाता है कि व्यक्ति किसी एक विचार पर टिककर सोच ही नहीं पाता। जनवरी 2025 से अक्टूबर 2025 के बीच 113 मरीज इस समस्या के साथ उपचार के लिए पहुँचे हैं, जिनमें अधिकतर 25 से 45 वर्ष के युवा शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, रील्स और शॉर्ट वीडियो के रूप में मिलने वाला तेज, चमकदार और अल्पकालिक कंटेंट दिमाग को लगातार उत्तेजित करता है। इससे विचार पॉपकॉर्न की तरह उछलने लगते हैं और व्यक्ति किसी काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता। ऐसे मरीजों में मन का विचलित होना, एकाग्रता की कमी, मानसिक थकान और छोटे-छोटे विचारों का अनियंत्रित रूप से उभरना आम लक्षणों में शामिल है। स्थिति गंभीर होने पर मरीज ब्रेन फॉग का शिकार हो सकते हैं, जिसमें दिमाग धुंधला महसूस होता है, स्मरण शक्ति कमजोर पड़ने लगती है और साधारण निर्णय लेना भी कठिन हो जाता है। कई लोग चिड़चिड़ापन, मानसिक भारीपन, असमंजस और काम में अरुचि जैसी समस्याओं से भी गुजरते हैं। चिकित्सकों का मानना है कि इस समस्या की जड़ अत्यधिक स्क्रीन टाइम, बिगड़ी दिनचर्या और डिजिटल मनोरंजन की बढ़ती लत है। ऐसे मामलों में सबसे पहले ‘डिजिटल डिटॉक्स’ की सलाह दी जाती है, जिसमें मोबाइल उपयोग कम करना और सप्ताह में कम से कम दो दिन बिना मोबाइल के बिताना शामिल है। योग, ध्यान और मस्तिष्क को शांत करने वाली गतिविधियाँ भी बेहद आवश्यक बताई गई हैं। विशेषज्ञों ने चेताया है कि यदि किसी व्यक्ति को भूलने की आदत, चिड़चिड़ापन, ध्यान न लगना या लगातार बेचैनी महसूस हो, तो तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए। उनका कहना है कि डिजिटल दुनिया के इस दौर में मानसिक संतुलन बनाए रखना उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना। लगातार मोबाइल चलाने और रील्स स्क्रॉल करने की आदत अब सिर्फ समय की बर्बादी नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है। सुदामा/ईएमएस 01 दिसंबर 2025