वित्तीय वर्ष 2025-26 की द्वितीय तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 5.6 प्रतिशत रही थी। विशेष रूप से विनिर्माण एवं सेवा के क्षेत्र में वृद्धि दर अतुलनीय रही है। विनिर्माण के क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2024-25 की द्वितीय तिमाही में 2.2 प्रतिशत की वृद्धि दर रही थी जो वर्ष 2025-26 की द्वितीय तिमाही में बढ़कर 9.1 प्रतिशत की हो गई है। इसी प्रकार, सेवा क्षेत्र में भी वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत की रही है। वित्तीय, रियल एस्टेट एवं प्रोफेशनल सेवाओं में तो वृद्धि दर बढ़कर 10.2 प्रतिशत (पिछले वर्ष इसी अवधि में 7.2 प्रतिशत) एवं जन प्रशासन, डिफेंन्स एवं अन्य सेवाओं में वृद्धि दर 9.7 प्रतिशत (पिछले वर्ष 8.9 प्रतिशत) की रही है। व्यापार, होटल, यातायात एवं कम्यूनिकेशन में भी वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत (पिछले वर्ष 6.1 प्रतिशत)। केंद्र सरकार के उपक्रमों एवं डिफेन्स के क्षेत्र में भी 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। कृषि क्षेत्र में जरूर वृद्धि पिछले वर्ष 4.1 प्रतिशत की तुलना में इस वर्ष घटकर 3.5 प्रतिशत हो गई है एवं कन्स्ट्रक्शन क्षेत्र में भी वृद्धि दर पिछले वर्ष 8.4 प्रतिशत की तुलना में इस वर्ष घटकर 7.2 प्रतिशत रही है। जैसे ही वित्तीय वर्ष 2025-26 की द्वितीय तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े जारी हुए कुछ मूर्धन्य पत्रकार तुरन्त अपने आंकलन के साथ मीडिया में उपस्थित हो गए एवं अपनी प्रतिक्रिया में यह बताने का प्रयास करने लगे कि भारत की आर्थिक विकास दर तो इतनी तेज गति से आगे बढ़ ही नहीं सकती। क्योंकि, वैश्विक स्तर पर इतनी विपरीत परिस्थितियों के बीच एवं विकसित देशों में विकास की धीमी दर एवं कुछ देशों में तो विकास दर के ऋणात्मक रहने के चलते (OECD देशों की आर्थिक विकास दर 2 प्रतिशत के भी नीचे है), भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत के ऊपर कैसे रह सकती है। साथ ही, विभिन्न वित्तीय संस्थानों यथा, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक, विश्व व्यापार संगठन के साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक ने भी वित्तीय वर्ष 2025-26 की द्वितीय तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर को 7 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान जताया था। फिर, भारत की आर्थिक विकास इस अवधि में 8.2 प्रतिशत कैसे रह सकती है? हाल ही के समय में केंद्र सरकार ने भारत में आर्थिक क्षेत्र को मजबूत बनाने के उद्देश्य से वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए हैं। इन सुधार कार्यक्रमों का असर अब भारत की आर्थिक विकास दर में तेजी के रूप में दिखाई देने लगा है। आयकर की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपए प्रति वर्ष कर दिया गया है और इसे वित्तीय वर्ष 2025-26 में लागू किया जा चुका है। भारत में 95 प्रतिशत से अधिक उत्पादों पर वस्तु एवं सेवा कर की दरों को (लगभग 10 प्रतिशत तक) कम कर दिया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों (रेपो दर) में एक प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है एवं दिसम्बर 2025 माह में 25 आधार बिंदुओं की एक और कटौती की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भारत की मातृशक्ति के बैंक खातों, किसानों के बैंक खातों एवं गरीब वर्ग के बैंक खातों में सीधे ही सहायता की राशि जमा की जा रही है। साथ ही, भारत के लगभग 65 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज प्रति माह उपलब्ध कराया जा रहा है। उक्त उपायों का स्पष्ट असर यह हो रहा है कि भारत के दूर दराज इलाकों में निवासरत गरीब वर्ग के हाथों में सीधे पैसा पहुंच रहा है, जिससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ रही है एवं वे इस पैसे से कई प्रकार के उत्पादों का सेवन करने लगे हैं और जिससे अंततः देश में इन उत्पादों की मांग में भारी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। भारत में निजी उपभोग भी वित्तीय वर्ष 2024-25 की द्वितीय तिमाही के 4.2 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में वित्तीय वर्ष 2025-26 की द्वितीय तिमाही में 8 प्रतिशत से बढ़ा है। साथ ही केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्चों में भी 31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है, जिससे रोजगार के नए अवसर निर्मित हुए हैं एवं उत्पादों की मांग में वृद्धि दर्ज हुई है। उक्त कारणों के साथ ही, भारत में धार्मिक पर्यटन में भी भारी वृद्धि हुई है। अब, कई श्रद्धालु परिवार भारत के अयोध्या में प्रभु श्रीराम के नवनिर्मित मंदिर के दर्शन हेतु प्रति माह लाखों की संख्या में पहुंच रहे हैं। इसी प्रकार, वाराणसी स्थित भगवान भोलेनाथ मंदिर, उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर, जम्मू में माता वैष्णो देवी मंदिर, दक्षिण में भगवान तिरुपति बालाजी मंदिर, ओड़िसा के पुरी में स्थित मंदिर, उत्तराखंड स्थित गंगोत्री, यमुनोत्रि, केदारनाथ मंदिर, बद्रीनाथ मंदिर आदि मंदिरों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने हेतु पहुंच रहे हैं। हाल ही में प्रयागराज में सम्पन्न हुए कुम्भ के मेले में तो 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालु देश विदेश से पवित्र त्रिवेणी में स्नान करने हेतु पहुंचे थे। इसी प्रकार, भारत की एक और विशेषता है कि यहां विभिन्न त्यौहारों को बड़े ही उत्साह से भाई-चारे के साथ मनाया जाता है। दीपावली का पावन पर्व एवं दीपावली के आसपास के समय में कई त्यौहार श्रद्धापूर्वक मनाए जाते हैं एवं इन त्यौहारों पर समाज में परिवारों द्वारा लाखों करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। इस वर्ष एक आकलन के अनुसार दीपावली के पावन पर्व एवं दीपावली के समय के आसपास के समय में मनाए गए विभिन्न त्यौहारों पर 6 लाख करोड़ रुपए के विभिन्न उत्पादों की बिक्री भारत में हुई है। फिर, शादियों का मौसम भी प्रारम्भ होता है जिसमें करोड़ों की संख्या में विवाह समारोह सम्पन्न होते हैं, इन विवाह समारोहों में भी लाखों करोड़ रुपए का खर्च भारतीय समाज द्वारा किया जाता है। इन कारणों के चलते भी भारत में हाल ही के समय में उत्पादों की मांग में भारी वृद्धि दर्ज हुई है। जिससे, अंततः इन उत्पादों का निर्माण भी भारत में होने लगा है तथा विनिर्माण के क्षेत्र में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। दरअसल, विदेशी वित्तीय संस्थान भारत की संस्कृति से पूर्णत अनभिज्ञ हैं एवं पश्चिमी देशों की संस्कृति के अनुसार विकसित किए गए मॉडल से भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान लगा रहे हैं। इन मॉडल के अनुसार जहां, इन विभिन्न विदेशी वित्तीय संस्थानों द्वारा 6 से 7 प्रतिशत के बीच की आर्थिक विकास दर का अनुमान लगाया जाता है वहीं भारत की आर्थिक विकास दर अब 8 प्रतिशत की दर को भी पार करती हुई दिखाई दे रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के इन वित्तीय संस्थानों के आंकलन में इतना भारी अंतर सोच का विषय है। अब भारत के आर्थिक विकास के सम्बंध में अनुमानों को आंकने के लिए भारतीय मॉडल ही विकसित करने की आवश्यकता है। वरना, इसी प्रकार की गलतियां इन विदेशी वित्तीय संस्थानों द्वारा की जाती रहेंगी एवं भारत में कुछ विघ्न संतोषी पत्रकार इसी प्रकार देश के आर्थिक विकास की दर पर अपनी शंका-कुशंकाओं को समाज के बीच में लाते रहेंगे और गलत विमर्श खड़ा करने का प्रयास करते रहेंगे। हां, भारत में ऐसे कुछ क्षेत्र जरूर हैं जिनमे विकास दर को गति देने के प्रयास किए जाने चाहिए। जैसे, भारत में खदानों से उत्पादन में वित्तीय वर्ष 2025-26 की द्वितीय तिमाही में 0.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, पिछले वर्ष भी इसी अवधि में 0.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई थी। जब देश में विनिर्माण के क्षेत्र में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा रही है तो फिर खदानों से उत्पादन क्यों नहीं बढ़ना चाहिए? इसका आश्य कहीं यह तो नहीं कि हम कच्चे माल की जरूरतों को आयात के माध्यम से पूरा करने का प्रयास कर रहे हों। इस बीच भारत में आयात की मात्रा में भी भारी वृद्धि दर्ज हुई है, जबकि उत्पादों के निर्यात में वृद्धि दर कुछ धीमी रही है। उक्त अवधि (तिमाही) के दौरान, भारत में उत्पादों का आयात 18,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जबकि भारत से उत्पादों का निर्यात 10,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है। इस प्रकार, कुल व्यापार घाटा बढ़कर 8,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। इस प्रकार, भारत में कच्चे माल के उपयोग में आत्म निर्भरता हासिल करना आवश्यक हो गया है। जिन वस्तुओं का उत्पादन भारत में ही आसानी से सम्भव है, उनका आयात बंद अथवा कम करना ही होगा। अन्यथा, की स्थिति में भारत को अपने व्यापार घाटे को संतुलित करना, अति मुश्किल कार्य हो जाने वाला है। सामाजिक स्तर पर भी इस समस्या का हल निकालना होगा। केवल देश में ही उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करना आज प्रत्येक परिवार का कर्तव्य बन जाना चाहिए। देश में बढ़ती मांग की आपूर्ति यदि देश में ही निर्मित वस्तुओं से होने लगेगी तो विदेशी संस्थाओं द्वारा भारत में अपने उत्पाद बेचकर कमाए जाने वाले लाभ को वे अपने देश में नहीं ले जा सकेंगे और इससे अंततः भारत के व्यापार घाटे को भी नियंत्रित किया जा सकेगा। ईएमएस/02/12/2025