टहलने का ठिकाना मैंने बदल दिया है। जिस मुहल्ले में घर है, वहां टहलने के लिए कोई मैदान नहीं है। हवाई अड्डा पहले खुला रहता था, अब वेरी वेरी इम्पोर्टेंट पर्सन हेलिकॉप्टर से आते जाते हैं, इसलिए प्रशासन ने उस पर ताला लगा दिया है। हवाई अड्डे में जब ताला लगा तब खोज शुरू हुई। सड़क की दक्षिण तरफ बहादुरपुर बस्ती है। चुनाव के पूर्व अचानक यह बस्ती अखबारों की सुर्खियों में आ गई थी, क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां आकर जीविका दीदियों के नाम एक तालाब करने वाले थे जिसमें जीविका दीदियां मछली पालन का धंधा करतीं। एक दिन मुख्यमंत्री आये भी। उस दिन बहुत धूमधाम थी। तालाब को बकायदा सजाया गया। पानी तो तालाब में था नहीं, तो उसमें बोरिंग और अन्य माध्यमों से पानी भरा गया। मुख्यमंत्री आयेंगे और पानी नहीं देखेंगे तो उन्हें कैसा लगेगा? यह सोच कर ग्रामीणों ने तालाब को जैसे तैसे पानी से भर दिया। तालाब के किनारे किनारे चारों तरफ ईंटें बिछायी गयीं। बैठने के लिए आधुनिक बेंच लगायी गई। मुख्यमंत्री आये। जीविका दीदी को तालाब समर्पित कर चले गए। वोट उनको मिलना था, मिल गया, लेकिन अब तालाब की हालत क्या है? तालाब में थोड़ा बहुत पानी है और वह जलकुंभियों से भरा हुआ है। तालाब किनारे जो ईंटें बिछायी गयीं थीं, उनमें से लगभग आधी उखड़ चुकी हैं। बेंच अभी हैं। एकाध पर हमला हुआ है। बोरिंग मौजूद है। जगह अच्छी है। तालाब के बगल में आम का बड़ा बगीचा है। एकाध हजार पेड़ जरूर होंगे। तालाब के पूर्व में इंटर स्तरीय बहादुर स्कूल है। उसका अपना बड़ा सा मैदान है। मैदान को स्टेडियम बनाने की कोशिश हुई है। गांव के कुछ बच्चे सुबह सुबह खेलते हैं। गांव के लोग खेतों में मेहनत करने में व्यस्त रहते हैं, इसलिए वे सुबह-सुबह टहलने कम ही आते हैं। बिहार को सजाने संवारने की ख्वाहिश और सपने हों तो यहां इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है। मन बेईमान हो और सरकारी खजाना लूटने का मन हो तो ऐसे ही कार्यक्रम बनाए जाते हैं। मैं नहीं जानता कि मुख्यमंत्री के इस कार्यक्रम में कितने खर्च हुए, लेकिन क्या अधिकारियों को मालूम नहीं था कि तालाब में कृत्रिम ढंग से पानी जमा करने पर कोई लाभ नहीं होगा? मुख्यमंत्री को साफ साफ बताया नहीं जा सकता था या तालाब की पर्याप्त खुदाई नहीं की जा सकती थी? बिहार क़र्ज़ में डूबा है। कर्ज के पैसे को इस तरह से उड़ाने का क्या मतलब है? खैर। बिहार सरकार के बहुत प्रिय हैं जीविका दीदियां। इन दीदियों को एक अन्य बिजनेस में भी लगा देना चाहिए। यह बिजनेस एकदम आधुनिक है। वह है ‘ रेज रुम ‘ बनाने का। दुनिया के बड़े बड़े शहरों में ‘ रेज रूम’ बनाये जा रहे हैं। महिलाएं घरों में गुस्सा नहीं निकाल सकतीं, इसलिए ये रूम बनाए जाते हैं। यहां टेलिविजन, प्रिंटर, बर्तन आदि रखे जाते हैं और महिलाएं वहां पहुंचतीं हैं और उसे तोड़ती हैं। ब्रिटेन में 90 प्रतिशत महिलाएं इसमें शरीक हो रही हैं। कहा जा रहा है कि 2017 में शुरू हुए ‘ मी टू ‘ मूवमेंट के बाद महिलाओं में गुस्सा बढ़ा है और महिलाएं अपने गुस्से को इस तरह से निकाल रही हैं। रेज रुम्स का बिजनेस 2024 में 1903 करोड़ का था जो 2025 में दो हजार करोड़ के पार चला गया। बिहार में गुस्सा कम से कम भरमार है। दीदियां इस गुस्से का बिजनेस कर सकती हैं। जिस तरह से लोकतंत्र और घर तंत्र संचालित हो रहा है, उसमें गुस्सा घटने वाला नहीं है। गुस्सा की उपलब्धता को देखते हुए बिहार में रेज रुम्स की जगह गुस्सा निवारण घर बनाना चाहिए। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 2 दिसम्बर /2025