- अवैध खनन मामले में खनिज अफसरों पर आपराधिक केस दर्ज भोपाल (ईएमएस)। टीकमगढ़ जिले के कारी वन क्षेत्र में बेशकीमती खनिज पर माफिया की नजरें तिरछी हैं। स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर अवैध खनन किया जा रहा है। अवैध खनन के इस मामले में वन विभाग ने सख्त कदम उठाया है। विभाग ने यहां चल रहे खनन कार्य पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है और मध्यप्रदेश खनिज निगम के स्थानीय अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है। जानकारी के अनुसार डायस्फोर व पायरोफिलाइट दोनों ही बेशकीमती खनिज हैं। अंतरर्राष्ट्रीय बाजार में भी इनकी मांग है। ऐलुमिनियम ऑक्साइड-हाइड्रॉक्साइड से बना डायस्फोर ऐलुमिना उत्पादन का महत्वपूर्ण स्रोत है। औद्योगिक रूप में इसकी कीमत लगभग 6 से 7 हजार रुपए प्रति टन है, जबकि रत्न ग्रेड डायस्फोर की अंतरराष्ट्रीय कीमत लगभग 42,000 से 1.68 लाख रुपए प्रति कैरट के बीच है। इसी तरह, औद्योगिक ग्रेड पायरोफिलाइट भारत में पांच से दस हजार रूपए प्रति टन और वैश्विक बाजार में 34 हजार रुपए प्रति टन तक है। जिसका उपयोग सिरेमिक टाइल, रिफ्रेक्टरी और पेंट उद्योगों में होता है। टीकमगढ़ जिले के कारी वन क्षेत्र में डायस्फोर और पायरोफिलाइट जैसे बेशकीमती खनिज बड़ी मात्रा में हैं। इनके खनन को लेकर मप्र खनिज निगम ने साल 1999 में वन विभाग से अनुबंध किया था। यह अनुबंध 60 सालों के लिए था। इसके तहत वन विभाग ने कारी वन क्षेत्र के कक्ष क्रमांक 48 में 5 हेक्टेयर का पट्टा मप्र खनिज निगम के नाम स्वीकृत किया। बताया जाता है कि खनिज निगम ने बाद में स्वीकृत खदान ओम कंस्ट्रक्शन नामक कंपनी को आवंटित कर दी। सूत्रों का दावा है कि संबंधित कंपनी के पास खनिज भंडारण का लाइसेंस ही नहीं है। इसके चलते ओम कंस्ट्रक्शन ने खनिज ढुलाई और भंडारण का काम, पेटी कांट्रेक्ट पर एक अन्य फर्म गजानन कंस्ट्रक्शन को सौंप दिया। इस तरह यह खदान एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे ठेकेदार के हाथ में आ गई। सीमाकंन के लिए लगाई गई मुनारे गायब सूत्रों की माने तो संबंधित कंपनी के पास खनिज भंडारण का लाइसेंस ही नहीं है। इसके चलते ओम कंस्ट्रक्शन ने खनिज दुलाई और भंडारण का काम, पेटी कांट्रेक्ट पर एक अन्य फर्म गजानन कंस्ट्रक्शन को सौंप दिया। इस तरह यह खदान एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे ठेकेदार के हाथ में चली गई। डीएफओ परमार ने स्वीकृत खदान से खनिज की खुदाई व इसके परिवहन पर भी तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। उन्होंने खनिज निगम के अफसरों को पत्र लिखकर खदान का नए सिरे से सीमांकन कराने के निर्देश भी दिए हैं। परमार ने पत्र में लिखा कि मौके पर की गई जांच में स्वीकृत खदान सीमाकंन के लिए लगाई गई मुनारे गायब मिली हैं। वन मंडल अधिकारी राजाराम परमार किसी तरह की गड़बड़ी से इंकार करते हैं। उन्होंने कहा कि वन क्षेत्र में सडक़ निर्माण का जो बजट स्वीकृत हुआ है, उससे कारी क्षेत्र की दूसरी बीट में सडक़ बनाई जानी है। जहां तक अवैध खनन की बात है, तो वह फिलहाल अतिक्रमित क्षेत्र पर खनन से निकला खनिज का मलबा सालों से पड़ा है। यह पहाड़ी इलाका है, यदि इस स्थान पर खुदाई के साक्ष्य मिलते हैं, तो इसे लेकर भी कार्रवाई की जाएगी। खनिज परिवहन के लिए ठेकेदार कंपनी ने कारी क्षेत्र के बीट नंबर 15 में खडज़ा और मुरम की सडक़ तैयार की है, जो खदान से वन क्षेत्र समाप्ति तक है। सूत्रों का दावा है कि वनमंडल कार्यालय ने इसी सडक़ को प्रस्तावित पहुंच मार्ग बताकर एक नया प्रस्ताव मुख्यालय को भेजा था। वह प्रस्ताव स्वीकृत भी हो चुका है। इसके निर्माण की राशि भी वन मंडल को मिल चुकी है। अब सिर्फ कागजों पर नई सडक़ बनाना बताया जा रहा है। टीकमगढ़ डीएफओ ने कराई एफआईआर अवैध खनन का मामला सदन में गूंजने व मुख्यालय को हुई शिकायत के बाद मामले की जांच हुई। इसमें स्वीकृत खदान के अलावा करीब पौने तीन हेक्टेयर रकबे में अतिक्रमण होना पाया गया। इसे लेकर डीएफओ राजाराम परमार ने अनुबंध कर्ता मध्यप्रदेश खनिज निगम के स्थानीय उप प्रबंध व प्रभारी अधिकारी के खिलाफ भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 (1) ज के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज करा दिया है। खनिज निगम ने खदान तो आवंटित कर दी, लेकिन निगरानी व्यवस्था में कोताही बरती। नतीजा यह हुआ कि ज्यादा मुनाफे के फेर में पेटी कांट्रेक्टर ने स्वीकृत खदान से बाहर जाकर खुदाई शुरू कर दी। यह मामला राज्य विधानसभा में भी गूंजा था। कांग्रेस विधायक यादवेंद्र सिंह ने सदन में इस पर सवाल उठाए। इसके बाद वन विभाग की नींद खुली और अब प्रतिबंध लगाया है। सूत्रों का दावा है कि वन विभाग की ओर से की गई इस जांच में भी खेल हुआ है। विभाग ने स्वीकृत खदान के के अलावा 2.62 हेक्टेयर वन क्षेत्र में अतिक्रमण तो बताया है, लेकिन इस क्षेत्र में हुए अवैध खनन की बात छुपा ली है। दरअसल जांच में अवैध खनन सामने आने पर संबंधित कंपनी को भारी जुर्माना अदा करना पड़ता है। विनोद / 02 दिसम्बर 25