राष्ट्रीय
02-Dec-2025


नई दिल्ली,(ईएमएस)। सुप्रीम कोर्ट ने एक गैर सरकारी एनजीओ द्वारा दायर की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जाहिर कर दी है, जिसमें पड़ोसी देशों के हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन जैसे सताए गए अल्पसंख्यकों के नाम मतदाता सूची में जोड़ने की मांग हुई थी। ये लोग भारत की नागरिकता के लिए आवेदन भी कर चुके हैं। दरअसल पड़ोसी देशों से आए अल्पसंख्यक लोगों के नाम एसआईआर में जोड़ने को लेकर एनजीओ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलीलें पेश कीं। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले की सुनवाई 9 दिसंबर को तय किया। इसी दिन पश्चिम बंगाल में हो रहे की एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी सुनवाई होगी। याचिकाकर्ता एनजीओ ने बताया कि इसतरह के करीब 50,000 लोग हैं जो 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आ गए थे। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 के तहत उन्हें सुरक्षा और नागरिकता पाने का अधिकार है। एनजीओ ने सीएए की धारा 6बी का हवाला देकर कहा कि इसमें से कई लोगों ने नागरिकता प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया है लेकिन उन्हें अभी तक प्रमाण पत्र नहीं मिले हैं। एनजीओ ने कहा, नागरिकता प्रमाण पत्र जारी करने में देरी और वर्तमान एसआईआर के दौरान अप्लाई की गई इन रसीदों को मान्यता न मिलने से एक गंभीर संवैधानिक संकट पैदा हो गया है। एनजीओ ने कहा, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में प्रताड़ित किए गए इन लोगों को संसद अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता दे चुकी है। अब यह सुरक्षा और एकीकरण के हकदार हैं। अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इन लोगों का पक्ष रखते हुए कहा अब ये लोग सामाजिक बहिष्कार और मताधिकार से वंचित होने के खतरे का सामना कर रहे हैं। आशीष दुबे / 02 दिसंबर 2025