इंस्ताबुल,(ईएमएस)। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की कश्मीर पर टिप्पणी और उनकी विदेश नीति के पीछे की मंशा को दिखाती है। विश्लेषकों का मानना है कि दरअसल एर्दोगन खुद को इस्लामी दुनिया का खलीफा बनाना चाहते हैं, जो ओटोमन साम्राज्य की राह पर चलकर इस्लाम को बढ़ावा देने और तुर्की के ऐतिहासिक प्रभाव को फिर से स्थापित करने की उनकी बड़ी योजना का हिस्सा है। लेकिन तुर्की खुद को इस्लामी दुनिया के नेता के रूप में पेश करते हुए सऊदी अरब को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहा है, खासकर इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) में मुख्य रुप से। इसलिए एर्दोगन कश्मीर, फिलिस्तीन और यूरोप में कथित इस्लामोफोबिया जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाकर मुस्लिम दुनिया को अपने पक्ष में लाने की रणनीति अपना रहे हैं। यह रूढ़िवादी मुस्लिम आबादी के बीच तुर्की के लिए समर्थन बढ़ाता है। वह इत्तिहाद-ए-इस्लाम (इस्लामी एकता) को बढ़ावा दे रहे हैं और यह दलील दे रहे हैं कि मुस्लिम एक देश हैं, जिसका नेतृत्व सभ्यता की जिम्मेदारी के तहत तुर्की कर सकता है। परमाणु बम से लैस पाकिस्तान तुर्की के इस सपने को पूरा करने में मदद कर रहा है, और तुर्की संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर लगातार कश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है। शेख हसीना के जाने के बाद और कार्यकारी नेता मोहम्मद यूनुस के राज में, तुर्की बांग्लादेश में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। एर्दोगन की पार्टी का बांग्लादेश की कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के साथ करीबी रिश्ता है। तुर्की, जमात से जुड़े मदरसों और इस्लामिक चैरिटी संस्थानों को पैसा दे रहा है। तुर्की और जमात-ए-इस्लामी दोनों ही वैश्विक कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड को सपोर्ट करते हैं। 2002 में सत्ता में आने के बाद से तुर्की खुद को एक मिडिल पावर के रूप में प्रोजेक्ट कर रहा है। तुर्की ने दुनिया भर में 252 दूतावास बनाए हैं, जो उसे अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर रखता है। तुर्की का धार्मिक संस्थान (3 अरब डॉलर से अधिक के बजट के साथ) विदेश नीति में सक्रिय भूमिका निभा रहा है, जो सुन्नी इस्लाम की हनफी मतुरीदी परंपरा को बढ़ावा देकर सऊदी अरब के सलाफी इस्लाम को सीमित करने की कोशिश करता है। यह विश्लेषण तुर्की की विदेश नीति को केवल भारत-तुर्की संबंधों के बजाय एक व्यापक इस्लामी भू-राजनीतिक नेतृत्व की दौड़ के रूप में दिखाता है, जहाँ कश्मीर का मुद्दा उनकी बड़ी महत्त्वाकांक्षा को साधने का एक उपकरण मात्र है। आशीष दुबे / 02 दिसंबर 2025