राष्ट्रीय
02-Dec-2025
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* सरदार पटेल की एकता, अखंडता, कूटनीति और शौर्य की विरासत को आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी – राजनाथ सिंह अहमदाबाद (ईएमएस)| सरदार@150 राष्ट्रीय एकता पदयात्रा के अंतर्गत साधली में आयोजित ‘सरदार गाथा’ कार्यक्रम में संबोधित करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि एक राजनीतिक वर्ग चाहता था कि सरदार वल्लभभाई पटेल इतिहास के पन्नों में खो जाएँ, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें इतिहास के पन्नों में एक चमकते सितारे की तरह पुनः स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने भारत को स्वतंत्र कराने तथा उसकी एकता और अखंडता की रक्षा करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज़ाद भारत में राजनीतिक नेतृत्व के प्रति अविश्वास का जो संकट उत्पन्न हुआ था—जहाँ लोग कहते थे कि नेता कहते कुछ और करते कुछ और हैं—उसका समाधान वर्तमान सरकार ने सरदार पटेल से प्रेरणा लेकर किया है। रक्षामंत्री ने कहा कि कथनी और करनी के बीच अंतर नहीं होना चाहिए। भारत की राजनीति में इस अंतर ने नेताओं के प्रति अविश्वास पैदा किया था, जिसे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने दूर किया है। ‘‘हम जो कहते हैं वही करते हैं, और जो नहीं कर सकते, वह कहते भी नहीं,’’ उन्होंने कहा। सरदार पटेल ने केवल सरकार बनाने की राजनीति नहीं की, बल्कि भारत राष्ट्र के निर्माण के लिए राजनीति की थी। उन्होंने देशी रियासतों को भारत में विलय कराने में असाधारण योगदान दिया। गांधीजी के विचारों को सरदार पटेल ने कार्यरूप दिया। राजनाथ सिंह ने कहा कि सरदार पटेल स्वयं कहा करते थे—‘‘मैं नेता नहीं, सिपाही हूँ’’—और उनका पूरा जीवन एक अनुशासित सिपाही की तरह देश की सेवा में बीता। ब्रिटिश शासन द्वारा कर बढ़ाने के विरोध में उन्होंने सशक्त आंदोलन चलाया था, जिसके बाद बोरसद क्षेत्र की महिलाओं ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी। वे किसानों के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे और मानते थे कि जब तक किसान खुशहाल नहीं होगा, तब तक देश खुशहाल नहीं बन सकता। वर्ष 1931 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता सरदार पटेल ने की। इसी अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ की परिभाषा स्पष्ट की गई। आर्थिक कार्यक्रमों, मौलिक अधिकारों और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा से जुड़े प्रस्ताव भी पारित किए गए। रक्षामंत्री ने कहा कि सरदार पटेल की विरासत केवल एकता और अखंडता तक सीमित नहीं है, बल्कि मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था और सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी की भी है। उनमें कौटिल्य की कूटनीति और शिवाजी का पराक्रम समाहित था, जिसका प्रभाव हैदराबाद के विलय में देखा गया। यदि कश्मीर के विलय के समय सरदार पटेल की सभी बातों पर अमल किया गया होता, तो भारत को लंबे समय तक इस समस्या का सामना न करना पड़ता। आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में यही मूल्य हमारे आदर्श हैं और भारत उन लोगों को भी उचित जवाब देने में सक्षम है जो शांति नहीं समझते। उन्होंने कहा कि धारा 370 को समाप्त कर कश्मीर को देश की मुख्यधारा से जोड़ना आसान काम नहीं था, लेकिन यह प्रधानमंत्री मोदी ने कर दिखाया। आज भारत दुनिया से अपनी शर्तों पर बात कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ सांस्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और आर्थिक एकता के सूत्र में देश को बाँधने का कार्य कर रहे हैं। सरदार पटेल तुष्टिकरण में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने सरकारी धन से बाबरी मस्जिद के निर्माण पर रोक लगाई थी, जबकि सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का समर्थन किया था। आज अयोध्या में राम मंदिर भी सरकार के खजाने से नहीं, बल्कि जनता के योगदान से बन रहा है। रक्षामंत्री ने कहा कि सरदार पटेल की विरासत को सुरक्षित रखना आने वाली पीढ़ियों की जिम्मेदारी है। अंत में उन्होंने कहा कि हमें भारत के संस्कारों को पूर्ण निष्ठा और पवित्रता के साथ जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए। इस अवसर पर राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी, केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया, राज्य के कृषि मंत्री जीतू वाघाणी सहित कई नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे, मंत्री कुवरजी बावळिया, राज्य मंत्री कांती अमृतिया, कौशल वकरिया, सांसद मनसुख वसावा, डॉ. हेमांग जोशी, प्रमुख रसिक प्रजापति सहित अनेक ग्रामीणजन उपस्थित रहे। सतीश/02 दिसंबर