भारत और रूस के कूटनीतिक इतिहास में 4 दिसम्बर की यात्रा एक ऐसे अध्याय के रूप में दर्ज होने जा रही है, जिसे आने वाले वर्षों तक रणनीतिक सहयोग और वैश्विक शक्ति-संतुलन के संदर्भ में उद्धृत किया जाएगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यह दो दिवसीय भारत यात्रा केवल औपचारिक शिष्टाचार भर नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति के बदलते समीकरणों के बीच सहयोग, व्यापार, रक्षा और कौशल आधारित साझेदारी की नई प्राथमिकताओं को रेखांकित करती है।साल 2021 में भारत आने के बाद पहली बार राष्ट्रपति पुतिन एक ऐसे समय पर नई दिल्ली पहुंच रहे हैं जब दुनिया में शक्ति प्रतिस्पर्धा और आर्थिक हितों का टकराव अपने चरम पर है। अमेरिका की कड़ी निगाहें, यूरोप की सुरक्षा चिंताएँ और एशिया में उभरते नए गठबंधनों के बीच पुतिन मोदी मुलाकात कई सवालों, संभावनाओं और अवसरों को जन्म दे रही है। विशेष रूप से तब, जब दोनों देशों के बीच एस-400 मिसाइल सिस्टम, ऊर्जा सहयोग, रोज़गार कौशल कार्यक्रम और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट जैसी अहम चर्चाएँ एजेंडे में शामिल हैं। रणनीतिक साझेदारी का नया समीकरण भारत और रूस के संबंध दशकों पुराने हैं, परंतु उनमें समय के साथ नई परतें जुड़ती रही हैं। यह यात्रा इस साझेदारी को एक नई दिशा देने की क्षमता रखती है। रक्षा सहयोग दोनों देशों की बातचीत का केंद्रीय स्तंभ है, और इस बार भी यही प्राथमिक मुद्दा रहा।भारत को एस-400 मिसाइल सिस्टम की तीन इकाइयाँ मिल चुकी हैं और चौथी की आपूर्ति का इंतजार है। यह सिस्टम भारतीय वायु-रक्षा क्षमता को एक नए स्तर पर ले जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऑपरेशन सिंदूर में मिले परिचालन अनुभव के बाद भारत के लिए इसका महत्व और बढ़ गया है। रक्षा तकनीक में सहयोग केवल खरीद तक सीमित न रहकर अब को-डेवलपमेंट और को-प्रोडक्शन की दिशा में बढ़ रहा है।पुतिन की इस यात्रा में रूस के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान सुखोई-57 के भारतीय मूल्यांकन पर भी चर्चा संभव है। इसके साथ ही ब्रह्मोस मिसाइल के एडवांस प्रोग्राम, रेंज वृद्धि और निर्यात मॉडल पर भी बातचीत के संकेत मिल रहे हैं। स्पष्ट है कि भारत रूस रक्षा सहयोग अब एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रहा है जहाँ वैश्विक परिस्थितियाँ इसे पहले से अधिक अर्थपूर्ण बना रही हैं। एफटीए का रास्ता और बढ़ते आर्थिक अवसर भारत और रूस के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की वर्षों पुरानी चर्चा अब मूर्त रूप लेने की दिशा में बढ़ रही है। दोनों देशों के बीच आर्थिक लेनदेन पिछले कुछ वर्षों में ऊर्जा व्यापार के कारण अग्रीमेंट कई गुना बढ़ा है, और फ्री ट्रेड इसे एक स्थायी ढांचा प्रदान कर सकता है। इस यात्रा के दौरान फ्री ट्रेड अग्रीमेंट पर हस्ताक्षर की दिशा में सहमति बनना भारत के लिए दीर्घकालिक लाभ का मार्ग खोलता है।चाहे वह निवेश हो, ऊर्जा सुरक्षा हो, या निर्यात बढ़ाने का अवसर।रूस ने भारतीय एमएसएमई बाज़ार के लिए अपने द्वार खोलने पर सहमति जताई है, जिससे छोटे उद्योगों के लिए नए अवसर उत्पन्न होंगे। भारतीय दवा उद्योग, कृषि-प्रसंस्करण, आईटी सेवाएँ, वस्त्र उद्योग और मशीन टूल्स जैसे क्षेत्रों में भारत को बड़ा निर्यात बाज़ार मिल सकता है।यह ऐसे समय में हो रहा है जब पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूस नए व्यापारिक साझेदार खोज रहा है और भारत उसके लिए स्वाभाविक, विश्वसनीय और दीर्घकालिक भागीदार है। कौशल आधारित साझेदारी में 10 लाख भारतीयों के लिए अवसर मिलने की पूरी संभावना है।पुतिन की यात्रा का एक और महत्वपूर्ण पहलू है रूस द्वारा स्किल्ड भारतीय प्रोफेशनल्स की बड़े पैमाने पर भर्ती का प्रस्ताव। रूसी इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य, टेक्नोलॉजी, ऊर्जा और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में बड़े पैमाने पर मानव संसाधन की आवश्यकता है।रूस द्वारा लगभग 10 लाख भारतीयों को रोजगार के अवसर देने की योजना केवल आर्थिक सहयोग भर नहीं है, बल्कि द्विपक्षीय कौशल भागीदारी का वह मॉडल है जिसकी भारत को वैश्विक स्तर पर आवश्यकता है।यह भारतीय युवाओं को कौशल आधारित वैश्विक नौकरी बाज़ार में प्रवेश दिलाएगा, साथ ही भारत की स्किल इंडिया पहल को अंतरराष्ट्रीय विस्तार भी मिलेगा। ऊर्जा सुरक्षा का नया अध्यायलिखा जाएगा। भारत ने हाल के वर्षों में रूस से कच्चे तेल की खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि की है। यह बढ़त तब भी जारी रही, जब अमेरिका ने कई बार अप्रसन्नता जाहिर की। वैश्विक ऊर्जा बाजार में कीमतों की अस्थिरता के बीच भारत ने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए सुरक्षित और सस्ता तेल आयात जारी रखा। अमेरिका द्वारा 25 प्रतिशत टैरिफ और उसके आंतरिक राजनीतिक दबावों के बावजूद भारत–रूस ऊर्जा सहयोग मजबूत हुआ है। यह यात्रा इस सहयोग को और स्थिर करने का अवसर है।चाहे वह लॉन्ग टर्म सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट हों, पेट्रोकेमिकल सहयोग हो या एलएनजी सप्लाई के नए समझौते।भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा किसी भी रणनीतिक समीकरण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, और रूस इस दिशा में विश्वसनीय साझेदार बना हुआ है। अमेरिका की नजरें और वैश्विक रवैया पुतिन की यात्रा पर अमेरिका की गहरी नजर होना स्वाभाविक है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर चले आ रहे प्रतिबंधों और वैश्विक नाराजगी के बीच भारत–रूस संबंध अमेरिकी नीति-निर्माताओं के लिए हमेशा संवेदनशील मुद्दा रहे हैं।डोनाल्ड ट्रम्प के हालिया रुख और अमेरिकी सीमा प्रवासन नीति ने अमेरिका के भीतर वैचारिक ध्रुवीकरण बढ़ाया है। प्रवासियों पर प्रतिबंध, डिपोर्टेशन अभियान और गरीब देशों के लिए प्रवेश बंद करने की नीति अमेरिका की पुरानी आप्रवासी आधारित अर्थव्यवस्था के विपरीत है।अमेरिका की 20 प्रतिशत अर्थव्यवस्था प्रवासी समुदायों के योगदान पर आधारित है।यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। फिर भी राजनीतिक दबावों के चलते अमेरिका इन वास्तविकताओं को समय-समय पर अनदेखा करता दिखता है। पुतिन की भारत यात्रा पर अमेरिकी असहजता यही दर्शाती है कि वैश्विक शक्ति संतुलन के इस युग में भारत जैसे देश अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को और अधिक स्पष्ट बना रहे हैं। पुतिन और मोदी की ऐतिहासिक शिखर वार्ता के बाद भारत को होने वाले संभावित लाभ को नजरअंदाज कैसे किया जा सकता है।पुतिन की इस यात्रा के कई आयाम हैं, जिनसे भारत को बहुआयामी लाभ मिल सकते हैं।भारत-रूस रक्षा सहयोग व्यापक और तकनीकी रूप से उन्नत होगा।एस-400 की आपूर्ति पूरी होने से एयर डिफेंस ग्रिड और मजबूत होगा। फ्री ट्रेड अग्रीमेंटसे दोनों देशों के व्यापार में संरचनात्मक बढ़ोतरी होगी।एमएसएमई क्षेत्र को रूस में नया बाजार और निवेश अवसर मिलेंगे।ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी और भारत सस्ते तेल का लाभ उठा सकेगा।10 लाख भारतीयों को रूस में रोजगार अवसर भारत के कौशल निर्यात को बढ़ावा।ब्रह्मोस और सुखोई जैसे रक्षा प्रोजेक्ट भारत की सैन्य क्षमता को भविष्य-रेडी बनाएंगे।इन लाभों का दायरा केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामरिक और कूटनीतिक भी है। वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की भूमिका पुतिन की यात्रा यह संदेश देती है कि भारत अब पक्ष चुनने वाली पुरानी कूटनीति से कहीं आगे निकल चुका है। भारत की विदेश नीति का मूल आधार रणनीतिक स्वायत्तता है और यह यात्रा उस सिद्धांत को और दृढ़ करती है। भारत न तो पश्चिम से दूरी बनाना चाहता है और न ही रूस से ऐतिहासिक साझेदारी समाप्त करने की कोई इच्छा रखता है। इसके बजाय वह दोनों ध्रुवों के बीच अपना संतुलित, राष्ट्रीय हित केन्द्रित मार्ग बना रहा है। आज की दुनिया में भारत का यही कूटनीतिक मॉडल सबसे व्यवहारिक और प्रभावी नजर आता है।लचीलापन, बहुध्रुवीय सहयोग और आर्थिक स्वायत्तता का मिश्रण।भविष्य की दिशा और भारत–रूस संबंधों का नया स्वरूप देखने मिलेगा।राष्ट्रपति पुतिन की 4 दिसम्बर की यात्रा भारत–रूस साझेदारी को 21वीं सदी की बदलती भू-राजनीति के अनुरूप पुनर्परिभाषित करने का अवसर है। यह यात्रा संदेश देती है कि वैश्विक तनावों, बदलते गठबंधनों और आर्थिक चुनौतियों के बीच भारत और रूस अपने संबंधों को नई ऊंचाई देने के लिए तैयार हैं।चाहे रक्षा उद्योग हो, व्यापार हो, ऊर्जा हो या कौशल साझेदारी हो।दोनों देशों ने यह सुनिश्चित किया है कि आने वाले वर्षों में यह सहयोग केवल मजबूत ही नहीं होगा, बल्कि अधिक व्यापक, तकनीकी और रणनीतिक रूप से गहन बनेगा। दुनिया जिस दिशा में आगे बढ़ रही है, उसमें भारत रूस सहयोग केवल दोनों देशों के हितों को ही नहीं, बल्कि एक स्थिर और संतुलित एशियाई तथा वैश्विक व्यवस्था को भी दिशा देगा। ईएमएस / 05 दिसम्बर 2025