उत्तराखंड के कद्दावर एवं बढ़ती उम्र में भी बेहद सक्रिय कांग्रेस के शीर्ष नेता हरीश रावत की अनदेखी करके कांग्रेस कोई भी चुनाव फिलहाल नही लड़ सकती और यदि ऐसा हुआ तो फिर से कांग्रेस की लुटिया डूबने में देर नही लगेगी।पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा भी है कि वे पार्टी के लिए बूथ अध्यक्ष तक बनने को तैयार है। कांग्रेस ही नही अन्य राजनीतिक दलों को भी उत्तराखंड के इस सर्वमान्य नेता का सम्मान करना चाहिए। हरीश रावत का यह कहना भी गलत नही है कि कांग्रेस में कुछ लोग “जहरीले” हैं,ऐसे लोग बीजेपी में भी हैं। हरीश रावत ने हाल ही में कांग्रेस से कहा कि,मैं बूढ़ा आदमी हूं, मेरा काम है खांसते रहना ताकि कोई गलत आदमी पार्टी में न घुस पाए।उन्होंने पार्टी के साथ दगा करने वाले एक नेता कि ओर इशारा कर कहा कि, आपके पास जो भी जहर है, वो मेरे ऊपर डाल दो, मैं उसे पी जाऊंगा,आप बस एक-दूसरे की तारीफ करो, एक-दूसरे को प्रोत्साहित करो और आगे बढ़ो।” वास्तव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल के सामने कांग्रेस की मौजूद चुनौती को साफ दिखती है, गुटों में बंटी कांग्रेस इकाई का नेतृत्व करना, वह भी 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले बेहद कठिन कहा जा सकता है।वह भी तब जब कांग्रेस पार्टी सन 2017 और सन 2022 के दो विधानसभा चुनाव हार चुकी हो, साथ ही राज्य की लगातार तीन लोकसभा चुनावों में भी एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत पाई है,जो पार्टी की कमजोर हालत को प्रमाणित करता है।दो बार के विधायक गणेश गोदियाल, जिन्हें कभी हरीश रावत का करीबी माना जाता था,का पुनः पदारूढ़ होने से उम्मीद है कि वे हरीश रावत को अपने से भी आगे करके चलेंगे। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले वह राज्य में कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके है, लेकिन उनके चुनाव हारने के बाद उनकी जगह करन माहरा को दे दी गई,परन्तु कांग्रेस कोई चमत्कार नही कर पाई। हरीश रावत ने स्वयं को पीछे करते हुए सार्वजनिक रूप से सुझाव दिया था कि अगला विधानसभा चुनाव कांग्रेस को प्रीतम सिंह (जो पांच बार के विधायक हैं) के नेतृत्व में लड़ना चाहिए। उनका यह बयान पार्टी में एकता का पहला कदम कहा जा सकता है।जब कांग्रेस उत्तराखंड में सत्ता में थी, तब भी हरीश रावत लगातार संघर्षों में फंसे रहे, पहले एन.डी. तिवारी को उनका हक दे दिया गया,जिससे टकराव की स्तिथि बनी रही और बाद में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को बनाकर फिर से हरीश रावत को किनारे करने की कोशिश की गई।लेकिन प्राकृतिक आपदा में विजय बहुगुणा के फेल हो जाने के कारण उनकी जगह सन 2014 में हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद पर रिप्लेस किया गया।यह बदलाव उस समय आया जब विजय बहुगुणा पर जून 2013 की केदारनाथ आपदा से निपटने को लेकर भारी आलोचना हो रही थी क्योंकि आपदा के समय विजय उत्तराखंड के बजाए दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। हाल ही में माहरा को सीडब्ल्यूसी और प्रीतम सिंह को सीईसी में शामिल किया जाना, कांग्रेस हाईकमान द्वारा राज्य में प्रतिस्पर्धी गुटों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, इसे हरीश रावत को उनकी नाखुशी के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व से जोड़कर रखने की रणनीति भी माना जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल से अनुरोध किया है कि उन्हें किसी बूथ का इंचार्ज बनाया जाए,हरीश रावत का कहना है कि वे ज़मीनी स्तर पर जाकर पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं। साथ ही उन्होंने उन दावों को खारिज किया है जिनमें कहा गया था कि उनकी ये बातें तंज या उन्हें किनारे किए जाने की नाराज़गी दिखाती हैं।पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर 19 नवंबर को हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी मांग लिखी थी। उन्होंने कहा कि नई नियुक्तियों के बाद उन्हें लगा कि वे अब कहां काम करें,रावत के एक्स पोस्ट में लिखा था, “अचानक मुझे लगा कि हरीश रावत, तुम इतने सालों से ऊपरी स्तर पर कुछ न कुछ करते रहे हो, क्यों न इस बार ज़मीनी स्तर पर काम किया जाए?” बस,उनकी इसी पोस्ट ने राज्य की राजनीति में चर्चा तेज कर दी और उनका बयान राजनीतिक सुर्खियां बन गया। उन्होंने एक्स पर एक अन्य पोस्ट के जरिए अपनी बात दोहराई और साफ कहा कि उनकी टिप्पणी को ‘पावर मूव’ यानी शक्ति प्रदर्शन के रूप में न देखा जाए,रावत ने लिखा,“पार्टी ने मुझे सब कुछ दिया है, आज भी मेरे समर्थक इसे अपने तरीके से परिभाषित करते हैं और मेरे आलोचक अपने तरीके से।जब पार्टी एक चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है, तो क्या मेरा कर्तव्य नहीं कि मैं उसे ज़मीनी स्तर पर मजबूत करने के लिए अपनी सेवाएं दूं।”कांग्रेस वर्किंग कमेटी के स्थायी आमंत्रित सदस्य हरीश रावत ने ये भी जोर दिया कि आज भी, वे खुद, करण मेहरा और प्रीतम सिंह—तीनों पार्टी के केंद्रीय स्तर पर ऊंचे पदों पर हैं, जहां करन माहरा सीडब्ल्यूसी में विशेष आमंत्रित सदस्य बने हैं, वहीं प्रीतम सिंह कांग्रेस की सेंट्रल इलेक्शन कमेटी के सदस्य बनाए गए हैं।हरीश रावत ने, अपनी एक्स पोस्ट में हरक सिंह रावत को पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति का प्रमुख बनाए जाने पर कोई टिप्पणी नहीं की है,जो उनकी धैर्यता का प्रमाण है,क्योंकि हरक सिंह रावत ने ही हरीश रावत सरकार गिराने के लिए भाजपा से हाथ मिलाकर कांग्रेस को उस समय धोखा दिया था।फिर भी हरीश रावत उन्हें बर्दाश्त कर रहे है यह कोई कम बात नही है।सन 2016 में, उस समय के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हरक सिंह रावत पर आरोप लगाया था कि उन्होंने दलबदल करवा कर उनकी सरकार गिराने की कोशिश की है, इसके बाद ही हरक सिंह रावत बीजेपी में शामिल हो गए थे और जनवरी 2022 तक वहीं रहे, जब भाजपा ने उन्हें बाहर कर दिया,तब वे फिर कांग्रेस में आए। हालांकि अब हरक सिंह रावत पुष्कर सिंह धामी सरकार के खिलाफ खुले तौर पर बोलते रहे हैं ।वे सीबीआई और ईडी के मामलों में कथित भ्रष्टाचार के आरोपी भी हैं।उनका हरीश रावत पर परोक्ष रूप से तंज कसना कि कांग्रेस को पुराने व बेअसर नेताओं पर निर्भर रहना बंद करना चाहिए,उनकी हरीश रावत के प्रति दूरी को दर्शाता है।यदि कांग्रेस को सन 2027 में आना है तो उसे पार्टी के प्रति वफादारों को तवज्जो देनी होगी,तभी उसकी नैय्या पार हो सकती है। (लेखक वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक है) ईएमएस /04 दिसम्बर 25