भारत की जीडीपी ग्रोथ ने अर्थशास्त्रियों को भी स्तब्ध कर दिया है। जीडीपी ग्रोथ के पीछे कई कारण हैं पर, सबसे बड़ा कारण जीएसटी में किया गया सुधार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता के चलते जीएसटी सुधार से ही चमत्कार हुआ है। देश के अंदर उत्पादन बढ़ा है पर, जीडीपी ग्रोथ को बनाये रखने के लिये उपभोग भी बढ़ाना होगा। मध्यम वर्ग अभी आशंकित है, वह पूंजी को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहा है, इसलिए मध्यम वर्ग का विश्वास जीतना होगा। आरबीआई को मध्यम वर्ग के लिए राहत देनी होगी, वहीं डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर होता दिख रहा है। हालांकि देश के अंदर रूपये को लेकर कोई अनिश्चितता नहीं है। आम नागरिक भी समझ गया है कि डोनाल्ड ट्रंप की हठधर्मिता से हालात बिगड़ रहे हैं लेकिन, सरकार को स्वाभिमान की रक्षा करते हुये अमेरिका के साथ भी व्यापारिक रिश्ते सहज करने होंगे, इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं बीपी गौतम... जीडीपी की बढ़त से जानकार भी हैं स्तब्ध सितंबर में समाप्त हुए भारत की दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े उम्मीद से बेहतर रहे हैं, इस दौरान 8.2% जीडीपी ग्रोथ रही है, जो गत छः तिमाहियों में सबसे अधिक है, यह ग्रोथ उम्मीदों से कहीं अधिक है, इसने अर्थशास्त्रियों को भी स्तब्ध कर दिया है। मजबूत मैन्युफैक्चरिंग और खपत ने जीडीपी उछाल में अहम भूमिका निभाई है। गत वित्त वर्ष- 2024-25 की इसी तिमाही में यह ग्रोथ 5.6% थी, वहीं चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में यह 7.8% थी, जो पांच तिमाहियों का सबसे ऊंचा स्तर था। भारतीय रिजर्व बैंक के 7% के अनुमान से भी यह ग्रोथ काफी अधिक है। नॉमिनल जीडीपी यानी, महंगाई को एडजस्ट किए बिना आर्थिक वृद्धि इस तिमाही में 8.7% रही। ध्यान देने वाली विशेष बात है कि पहली तिमाही में नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ तीन तिमाहियों के निचले स्तर 8.8% पर आ गई थी। मेहनत और उद्यम का परिणाम हैं जीडीपी के आंकड़े: पीएम जीडीपी के मजबूत आंकड़ों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुये शुक्रवार को कहा कि 2025-26 की दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर लोगों की कड़ी मेहनत और उद्यम को दर्शाती है। नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा कि 2025-26 की दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर बहुत उत्साहजनक है। यह हमारी विकास-समर्थक नीतियों और सुधारों के प्रभाव को दर्शाती है। यह हमारे लोगों की कड़ी मेहनत और उद्यमशीलता को भी दर्शाती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार सुधारों को आगे बढ़ाती रहेगी और प्रत्येक नागरिक के लिए जीवन की सुगमता को मजबूत करेगी। त्योहारों और जीएसटी सुधार से आया है उछाल जानकारों का कहना है जीडीपी में उछाल त्योहारों से पहले बढ़ी खपत और हाल में लागू जीएसटी सुधारों से संभव हुआ है, जिसने बाजार में अतिरिक्त मांग पैदा की और आर्थिक गतिविधियों को गति दी, यह विस्तार चीन के 4.8 प्रतिशत से अधिक रहा, यह उच्च सार्वजनिक निवेश, सेवाओं की मांग, औद्योगिक उत्पादन और फर्म उपभोग के अलावा निम्न आधार के सांख्यिकीय प्रभावों के कारण हुआ है, क्योंकि गत वित्त वर्ष की इसी तिमाही में अर्थव्यवस्था औसत से कम 5.6 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी। विनिर्माण उत्पादन में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पिछली तिमाही में यह 7.7 प्रतिशत और पिछले वर्ष की समान तिमाही में 7.6 प्रतिशत थी, वहीं निर्माण क्षेत्र में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पिछली तिमाही में यह 7.6 प्रतिशत थी। उत्पादन के साथ सृजित हुये रोजगार भारतीय अर्थ व्यवस्था के लिये वित्त वर्ष- 2025-26 की दूसरी तिमाही खुशी लेकर आई। जीडीपी आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मिले-जुले एवं उत्साहवर्धक संकेत लेकर आए हैं। भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत बढ़ गई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में जीडीपी 5.6 प्रतिशत थी। दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े बीती छः तिमाहियों में सर्वाधिक हैं। नए आंकड़ों में वाणिज्यिक वाहनों और कृषि क्षेत्र में तेजी की बात कही गई है, वहीं निजी कारों की सुस्त बिक्री ने मध्यम वर्ग की चुनौतियों को भी उजागर किया है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी किये गये ताजा आंकड़ों में रोचकता दिखाई दे रही है। वाणिज्यिक वाहनों की बढ़ती आवाजाही और निर्माण क्षेत्र में आई तेजी ने औद्योगिक गतिविधियों को नई गति प्रदान की है, वहीं निजी कारों की घटती बिक्री ने मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति पर सवाल कर दिए हैं, जिससे बेहतर आंकड़ों के बावजूद मध्यम वर्ग के लिए अभी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। अर्थव्यवस्था की जान हैं वाणिज्यिक वाहन अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी राहत लॉजिस्टिक्स सेक्टर से मिली है। वाणिज्यिक वाहनों को आर्थिक गतिविधियों का बैरोमीटर माना जाता है, इनकी बिक्री बढ़ी है। पिछले साल समान तिमाही में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में 10.7% की भारी गिरावट दर्ज की गई थी लेकिन, इस वर्ष 8.3% की वृद्धि दर्ज की गई है। ट्रक और लोडर आदि की बिक्री बढ़ने से माना जाता है कि फैक्ट्रियों से माल की ढुलाई बढ़ी है, जो औद्योगिक उत्पादन में तेजी और रोजगार के नए अवसरों का संकेत है, यह टर्नअराउंड बताता है कि सुस्ती का दौर समाप्त हो रहा है। अभी चिंतित है देश का मध्यम वर्ग जीडीपी के आंकड़ों के अनुसार देश में वाणिज्यिक गाड़ियों की मांग बढ़ रही हैं, वहीं मध्यम वर्ग की ओर से खरीदी जाने वाली निजी कारों की बिक्री की गति कम हो गई है। निजी वाहनों की बिक्री वृद्धि दर घटकर 5.9% रह गई है, जो पिछले वर्ष 9.9% थी, इससे स्पष्ट है कि मध्यम वर्ग अभी भी महंगाई और ऊंचे ब्याज दरों के दबाव में है। लोग अपनी जमा पूंजी बचाने को प्राथमिकता दे रहे हैं और कार जैसी बड़ी खरीदारी से बच रहे हैं, इसीलिए त्योहारों और शादियों के बहाने कंपनियों को भारी डिस्काउंट का सहारा लेना पड़ता है। शहरी मध्यम वर्ग में जागृत करना होगा विश्वास आंकड़े सामने से खुशी देने वाले दिखाई दे रहे हैं लेकिन, आंशिक तौर पर आंकड़े विरोधाभासी भी दिख रहे हैं। एक ओर भारतीय अर्थव्यवस्था का सप्लाई साइड, जैसे उत्पादन, निर्माण और लॉजिस्टिक्स मजबूती के साथ दौड़ रहा है और औद्योगिक गतिविधियों में ऊर्जा भर रहा है, वहीं दूसरी ओर डिमांड साइड अभी भी कमजोर दिखाई दे रही है अर्थात, उत्पादन के अनुरूप मांग नहीं बढ़ रही है। शहरी क्षेत्र का मध्यम वर्ग बड़ा उपभोक्ता है लेकिन, वह अभी महंगाई और उच्च ब्याज दरों के दबाव में खर्च करने से बच रहा है, इसके विश्वास को जागृत करना बड़ा कार्य करना शेष है, इस वर्ग के अंदर सरकार के कार्य करने के तरीके से ही विश्वास जागृत होगा। सीमेंट और स्टील की बिक्री में उछाल आया अपना बनाने वालों, खरीदारों, डेवलपर्स और रियल एस्टेट निवेशकों के लिए बाजार में गर्माहट आई है। इंफ्रास्ट्रक्चर और हाउसिंग सेक्टर में भारी मांग देखी जा रही है। सीमेंट उत्पादन में 7.3% की वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष 3.2% थी, वहीं स्टील की खपत 8.8% की दर से बढ़ रही है, इसका मुख्य कारण सरकार की आधारभूत संरचना से जुड़ी योजनाओं और ग्रामीण क्षेत्र की आवास योजनाओं में आई तेजी है, जिससे इसका सीधा श्रेय सरकार को ही जायेगा। हालांकि मांग में इतनी तेज वृद्धि का असर कीमतों पर पड़ सकता है। घर बनाने की योजना बना रहे लोगों को अपने बजट में 5-10% का अतिरिक्त खर्च करना पड़ सकता है, क्योंकि कंपनियां आवश्यक उत्पादों की कीमतें बढ़ाकर इसका भार आम उपभोक्ताओं पर डाल सकती हैं। चावल की बंपर पैदावार से मिलेगी राहत आम आदमी की चिताओं में रसोई का बजट प्रमुख है। आम आदमी के लिए कृषि क्षेत्र से एक राहत भरी खबर है। चावल के उत्पादन की वृद्धि दर बढ़कर 2.9% हो गई है, जो पिछले वर्ष मात्र 1.1% थी, इसका सीधा लाभ आम आदमी को ही मिलेगा। चावल के उत्पादन में तीन गुना बढ़ोतरी खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। बाजार में आपूर्ति बढ़ने से चावल की कीमतों में स्थिरता आने की संभावना जताई जा रही है, इससे खाने की थाली पहले की तुलना में कम महंगी हो सकती है, इससे ग्रामीण आय को सुधारने में मदद मिल सकेगी। डिजिटल इंडिया की दिशा में बड़ी छलांग डिजिटल क्षेत्र में भारत ने एक और लंबी छलांग लगाई है। देश में टेलीफोन सब्सक्राइबर्स की संख्या में 3.2% की वृद्धि हुई है। आंकड़ा छोटा दिख सकता है लेकिन, गत वर्ष की 0.8% की वृद्धि की तुलना में यह चार गुना अधिक है, जो उपलब्धि ही कही जायेगी। जीडीपी से जुड़ा यह अहम आंकड़ा बताता है कि ग्रामीण भारत तेजी से डिजिटल नेटवर्क से जुड़ रहा है, इससे यूपीआई और ऑनलाइन सेवाओं का विस्तार न सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित रहेगा बल्कि, सुदूर ग्रामीण अंचलों तक अपनी पैठ बनायेगा, इससे ई-कॉमर्स, डिजिटल भुगतान और टेली-मेडिसिन जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा मिलेगा, जिसकी मदद से एक समावेशी डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव रखने में मदद मिलेगी। सरकार के सामने है अब बड़ी चुनौती जीडीपी के बढ़ने से व्यापारिक आय में तेजी आ सकती है, यहां से आरबीआई के नीतिगत निर्णयों का असर बेहद हो जायेगा। जीडीपी के आंकड़ों से निवेशकों में नए विश्वास का संचार होगा लेकिन, सरकार और नीति निर्माताओं के लिए अब असली परीक्षा आपूर्ति बढ़ाना है। औद्योगिक गति को बनाए रखने के साथ मध्यम वर्ग के खर्च करने की शक्ति को बढ़ाना भी चुनौती है। उत्पादन और उपभोग का चक्र सही करना अब सरकार का मूल कार्य होना चाहिए अन्यथा, उत्पादक वर्ग और गहरे गड्डे में जा सकता है। शेयर बाजार पर भी होगा असर विशेषज्ञों का मानना है कि घरेलू बाजार पर इसका असर सीमित रह सकता है, क्योंकि अमेरिकी टैरिफ का पूरा असर अक्टूबर-दिसंबर तिमाही (तीसरी तिमाही) के जीडीपी आंकड़ों में दिखेगा। हालांकि, तीसरी तिमाही में जीएसटी कटौती और त्योहारी मांग का भी असर दिखेगा, फिर भी सेंसेक्स और निफ्टी 50 में कुछ तेजी देखी जा सकती है लेकिन, मिड और स्मॉल-कैप सेगमेंट में ज्यादा हल-चल की उम्मीद नहीं है, इसका कारण है कि इन शेयरों का वैल्यूएशन पहले से ही बहुत अधिक है। बाजार में लिक्विडिटी यानी, नकदी की कमी है। इक्विनॉमिक्स रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और हेड ऑफ रिसर्च जी. चोक्कलिंगम ने मीडिया को बताया कि जीडीपी के आंकड़े सकारात्मक हैं लेकिन, मुझे नहीं लगता कि लिक्विडिटी की तंगी के कारण यह व्यापक बाजार के लिए एक बड़ा फैक्टर बनेगा। उन्होंने कहा कि सेंसेक्स और निफ्टी 50 बढ़ते रहेंगे, इस वित्तीय वर्ष के अंत तक इनमें 3-5% की बढ़ोतरी संभव है, जो स्वस्थ मैक्रो यानी, व्यापक आर्थिक आंकड़ों से समर्थित होगी। आईपीओ की तेजी ने खुदरा निवेशकों की लिक्विडिटी को घटा दिया है, जो अन्यथा सेकेंडरी बाजार में निवेश की जाती, इसके अलावा विशेषज्ञ बताते हैं कि कई खुदरा निवेशक लिस्टिंग गेन यानी, लिस्टिंग पर होने वाले मुनाफे और शॉर्ट टर्म प्रॉफिट के लिए आईपीओ में निवेश करते हैं। अब जब ज्यादातर नए लिस्ट हुए शेयर अपने इश्यू प्राइस से नीचे कारोबार कर रहे हैं तो, निवेशक नुकसान से बचने के लिए उनमें फंसे हुए हैं, जिससे लिक्विडिटी और फंस गई है। जानकारों के अनुसार दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े तेजड़ियों के लिए एक बूस्टर डोज की तरह हैं। यह रैली को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित होंगे लेकिन, इससे आरबीआई की ब्याज दर में कटौती में देरी हो सकती है, इन आंकड़ों का एक नतीजा यह है कि दिसंबर में ब्याज दर में कटौती की संभावना नहीं है। अर्थव्यवस्था को अभी किसी और मौद्रिक प्रोत्साहन की जरूरत नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक 3 से 5 दिसंबर को होगी, इसी में ब्याज दरों पर फैसला होगा। जीडीपी बढ़ने से सोने की कीमत गिरती है जीडीपी की बढ़त और सोने की कीमत के बीच आपस में उलटा संबंध होता है, इसका मतलब है कि जब अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती है तो, सोने की कीमतों में आमतौर पर गिरावट या, स्थिरता आ जाती है। जब जीडीपी की गति तेज होती है तो, यह मजबूत आर्थिक स्वास्थ्य और कॉर्पोरेट लाभ की उम्मीद को दर्शाता है, इससे निवेशकों का जोखिम लेने का रुझान बढ़ जाता है। निवेशक सोने जैसी सुरक्षित निवेश संपत्तियों से पैसा निकालकर शेयरों, रियल एस्टेट और बॉन्ड जैसी जोखिम वाली संपत्तियों में लगाते हैं, इनसे उन्हें तेज रिटर्न की उम्मीद होती है। सोने की मांग कम होने से उसकी कीमत पर दबाव पड़ता है। घाटा 8.25 लाख करोड़ रुपये हुआ इस वित्तीय वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के बीच में पहले सात महीनों में भारत का राजकोषीय घाटा 8.25 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वार्षिक अनुमानों का 52.6% है, इस बार राजकोषीय घाटा पिछले वर्ष के 46.5% से अधिक है। सरकार का लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.4% तक कम करना है, यह एक साल पहले 4.8% था। 7% के पार जा सकती है वृद्धि दर: नागेश्वरन जीडीपी के आंकड़ों से उत्साहित मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने शुक्रवार को विश्वास जताया कि चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक विकास दर 7% के आंकड़े को पार कर जायेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 4 ट्रिलियन डॉलर के ऐतिहासिक स्तर को छू लेगा। संसद में जनवरी में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में वित्त वर्ष- 2026 के लिए वास्तविक आर्थिक विकास दर 6.3 से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। हालांकि दूसरी तिमाही के आंकड़ों ने इन अनुमानों को भी पीछे छोड़ दिया है। जीडीपी आंकड़े जारी होने के बाद सीईए नागेश्वरन ने कहा कि वित्तीय वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 8% रही है। अब हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि पूरे वर्ष की वृद्धि दर 7% या, उससे अधिक रहेगी। मंदी या, गिरावट की आशंकाओं को खारिज करते हुए, हम कम से कम 7% की वृद्धि देख रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस साल मार्च के अंत तक भारत की जीडीपी का आकार 3.9 ट्रिलियन डॉलर था और मौजूदा गति को देखते हुए इस वित्त वर्ष में इसके 4 ट्रिलियन डॉलर के पार जाने की पूरी संभावना है। आरबीआई दे सकता है मध्यम वर्ग को राहत भारतीय रिजर्व बैंक की तीन दिवसीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक बुधवार को शुरू हुई। एमपीसी के सदस्य जीडीपी वृद्धि और महंगाई के नवीनतम आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति की भावी दिशा पर विस्तृत चर्चा करेंगे। नीतिगत नतीजों की घोषणा आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा शुक्रवार सुबह 10 बजे करेंगे। आशा की जा रही है कि बैठक में मध्यम वर्ग को राहत देने के अहम निर्णय हो सकते हैं। ट्रंप की सनक के कारण रूपये और डॉलर में दूरी बढ़ी रुपया पहली बार डॉलर की तुलना में 90 का स्तर पार कर गया है। रुपये में बीते आठ महीनों से गिरावट का दौर जारी है, जो अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। लंबी अवधि में स्थिर प्रकृति का रुपया पिछले एक वर्ष में ही 85 से 90 के स्तर के पार पहुंच गया है। बुधवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 25 पैसे गिरकर अपने नए ऑल टाइम लो 90.21 पर बंद हुआ। अमेरिका ने दुनिया भर के देशों को टैरिफ का भय दिखाकर व्यापारिक समझौते के लिए दबाव बनाया है, जिसके आगे कुछ देश झुक गए तो, उनके टैरिफ कम हो गए या, हटा लिए गए। हालांकि, भारत ने अपने व्यापारिक हितों से समझौता करने से मना कर दिया, जिससे डोनाल्ड ट्रंप ने अगस्त में भारत पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी थी, इसके बाद अमेरिका में भारतीय उत्पादों के निर्यात पर इसका प्रतिकूल असर पड़ा। विदेशी निवेशकों ने भी जमकर बिकवाली की, इसका असर रुपये पर ही पड़ना था। हालाँकि रूपये की कमजोरी का दुष्प्रभाव देश के अंदर कम ही है पर, इसका असर वैश्विक स्तर पर पड़ रहा है, जो अमेरिका से व्यापारिक रिश्तों के सही न होने तक जारी रह सकता है। भारत सरकार को स्वाभिमान को बचाते हुए अमेरिका के साथ कोई बेहतर विकल्प खोजना होगा, जिसके बाद रूपये की स्थिति में सुधार होने लगेगा। (लेखक, दिल्ली से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक गौतम संदेश के संपादक हैं) ईएमएस/05/12/2025