अंतर्राष्ट्रीय
07-Dec-2025
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लंउन (ईएमएस)। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में दो ही ताकतें बची थी, अमेरिका और सोवियत संघ (यूएसएसआर)। लेकिन एक-दूसरे के पछाड़ने के लिए दोनों परमाणु हथियार बनाने लगे, जासूसी करने लगे, और देशों को अपने-अपने पाले में लाने में जुट गए। ये शीत युद्ध का दौर था। इसके खत्म होते-होते सोवियत संघ 15 आजाद देशों में बांटा। अब अमेरिका के सामने कमजोर प्रतिद्वंद्वी होना था, लेकिन बंटवारे के बाद भी रूस उस हद तक कमजोर नहीं पड़ा, बल्कि यूएस को आंख दिखाता रहा। यूगोस्लाविया को ही लें, तब नब्बे के दौर में यह देश टूटकर 7 छोटे देशों में बंट गया। बंटवारे से पहले यूगोस्लाविया एक मजबूत सैन्य शक्ति था, जिसकी यूरोप में पूछ थी। लेकिन विभाजन के बाद सारे ही देशों की इकनॉमी सिकुड़ गई। गृह जंग चलने लगा और अंतरराष्ट्रीय असर कई गुना कम हो गया। 35 साल से ज्यादा वक्त बाद भी टूटे हुए देशों की ताकत वैसी नहीं, जैसी यूगोस्लाविया की थी। लेकिन माना गया था कि सोवियत का बंटवारा भी यही करेगा। 15 हिस्सों में बड़े देश में रूस सबसे बड़ा था और यही विरासत संभाल रहा था। अमेरिका की नजर थी कि अब ये भी मुकाबले से जाएगा और वहां दुनिया की अकेली ताकत बनकर रहेगा। यही वहां वक्त था जिसे यूनिपोलर मूमेंट कहा गया। इसके बावजूद रूस पूरी तरह नहीं टूटा, बल्कि आने वाले दशकों में वह मजूबत आर्थिक और सैन्य शक्ति ही दिखा। यह कैसे हुआ उसके पास कुदरती संसाधन भी ढेर के ढेर थे। जैसे तेल भंडार, हीरे, निकल, टाइटेनियम, कोबाल्ट के अलावा कई दुर्लभ चीजें रुस के पास मौजूद थी। यूरोप और एशिया में फैली जमीन। यूरोप रूस की गैस पर काफी हद तक निर्भर था, यही रूस की ताकत बना। सोवियत के बिखरने के बाद भी रूस के पास करीब 15 करोड़ की आबादी बची थी, जो उस समय यूरोप में किसी भी देश से कहीं ज्यादा थी। इससे उसकी सेना, डिफेंस इंडस्ट्री बाकी उद्योग चलते रहे। बंटवारे के तुरंत बाद वैसे रूस कमजोर हुआ था। लगभग एक दशक तक ऐसी गिरावट आई जिसे रूसी डिप्रेशन भी कहा गया। रूबल की वैल्यू घट गई थी। तभी ओलिगार्क्स यानी बड़े उद्योगपतियों ने सस्ते दामों में देश की बड़ी कंपनियां खरीद लीं, जिससे असमानता बढ़ गई थी। नब्बे का दशक खत्म होते हुए देश डिफॉल्ट की कगार पर था। लेकिन फिर वक्त बदल गया। ऊर्जा की जरूरत बढ़ने से कीमत बढ़ने लगी और रूस हाथोहाथ लिया जाने लगा। आशीष/ईएमएस 07 दिसंबर 2025