राजनीति में धर्म का इस्तेमाल किस तरह किया जा सकता है, इसकी विशेषज्ञता संघ और भाजपा के अतिरिक्त अन्य किसी के पास नहीं है। पश्चिम बंगाल में कुछ माह पश्चात विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी ने वर्षों पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। इसका उदाहरण है, वंदे मातरम की 150 वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे मातरम को विवादित बनाया। वंदे मातरम के माध्यम से हिंदुओं के बीच में धुव्रीकरण पैदा कर दिया। वंदे मातरम को लेकर सारे देश में एक नई बहस शुरू हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतिहास को अपने ढंग से प्रस्तुत कर भारत विभाजन का ठीकरा कांग्रेस के स्वतंत्रता सेनानियों के सिर पर फोड़ दिया। 1947 में वंदे मातरम के एक हिस्से को अलग करके विभाजन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा दिया। इसके बाद मुर्शिदाबाद से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हुमायूं कबीर ने मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद के निर्माण का ऐलान 6 दिसंबर को कर दिया। वह टीएमसी में आ गए थे, जिसके कारण भाजपा को विवाद का विषय बनाने का कारण बना। टीएमसी ने हुमायूं कबीर को पार्टी से निष्कासित कर दिया है, लेकिन अब यह मामला बड़ा तूल पकड़ता जा रहा है। पिछले एक सप्ताह से गोदी मीडिया के सभी चैनल इसे हवा दे रहे हैं। 6 दिसंबर को टीवी चैनलों द्वारा विशेष कार्यक्रम बनाकर मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद के शिलान्यास कार्यक्रम को दिखाया गया है। पश्चिम बंगाल में धार्मिक ध्रुवीकरण पैदा करने की कोशिश की गई है। उसको देखते हुए आसानी से समझा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव किस तरह से लड़ा जाएगा। तीसरा मामला कोलकाता में सनातन संस्कृति द्वारा गीता पाठ का आयोजन करना है। इसमें लाखों लोगों को आमंत्रित किया गया। बाबा रामदेव और धीरेंद्र शास्त्री जैसे तथाकथित बाबा गीता पाठ के इस आयोजन में शामिल होने के लिए कोलकाता पहुंचे। चुनाव किस तरह से लड़ा जाता है, किस तरह से चुनाव जीता जाता है। किस तरह धार्मिक धुव्रीकरण के माध्यम से मतदाताओं को लामबंद किया जा सकता है, इसको बीजेपी और संघ से बेहतर कोई नहीं जानता है। जिस पश्चिम बंगाल में भाजपा को पैर रखने को जगह नहीं मिल रही थी, उसी पश्चिम बंगाल में पिछले एक दशक में जिस तरह से भाजपा ने अपने पैर जमाए हैं उससे समझा जा सकता है, कि किस तरह धार्मिक धुर्वीकरण की राजनीति कर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा जा सकता है। पश्चिम बंगाल में चुनाव के पहले जिस तरह का नेरेटिव भारतीय जनता पार्टी ने सेट कर दिया है, उसके बाद यह माना जाने लगा है, जिस तरह से बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने महिलाओं को 10,000 रुपये देकर एक नेरेटिव सेट कर दिया था। इस नेरेटिव के आधार पर विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर भाजपा उभरी है। बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम सभी के लिए आश्चर्य चकित करने वाले रहे हैं। वही आश्चर्य अब पश्चिम बंगाल में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। जिस तरह से चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में एसआईआर करा रहा है। चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट का संरक्षण प्राप्त है। ऐसी स्थिति में बिहार के विधानसभा चुनाव जैसे परिणाम पश्चिम बंगाल में आते हैं तो किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। संघ और भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतने के लिए वर्षों पहले से योजना तैयार करती है। उसके लिए बाकायदा मेहनत करती है। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने हिंदुओं को टीएमसी से अलग करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली है। मुसलमान वोट बैंक को भाजपा विभाजित नहीं कर पा रही थी। भाजपा ने हुमायूं कबीर के रूप में पश्चिम बंगाल का मुसलमान बाबरी मस्जिद की आड़ में खड़ा कर दिया है। जो पश्चिम बंगाल में टीएमसी से मुसलमानो की दूरियां बढ़ाने के लिए काम करेगा। जिस तरह से एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी दक्षिण और उत्तर भारत के राज्यों में मुसलमान वोटों को विभाजित करने का काम करते हैं, इसका फायदा भाजपा को होता है। ओवैसी की तरह यह काम पश्चिम बंगाल में अब हुमायूं कबीर करेंगे। चुनाव के पहले भाजपा और संघ ने विभाजन की बिसात बिछा दी है। चुनाव आयोग और न्यायपालिका का संतुलन भाजपा के पक्ष में है। ऐसी स्थिति में जो परिणाम पश्चिम बंगाल में भाजपा चाहती है, वह मिलना तय माना जा रहा है। गीता पाठ, वंदे मातरम को लेकर हिंदुओं की बड़ी आबादी को भाजपा ने प्रभावित करने की जो रणनीति अपनाई है, उसकी कोई काट टीएमसी और कांग्रेस के पास नहीं है। मुसलमानो के बीच बाबरी मस्जिद की शहादत को लेकर भावात्मक लहर से मुस्लिम मतदाताओं के बीच जो बंटवारा कराना था, उसका नॉरेटिव भी भाजपा ने सेट कर दिया है। अब जो कुछ करना है, वह पश्चिम बंगाल के भाजपा नेताओं और चुनाव आयोग को करना है। एसआईआर हो रही है। मतदाता सूची फरवरी के बाद आएगी। चुनाव के कुछ दिन पहले मतदाता सूची चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। उसके बाद समय ही नहीं रहता है, जो नाम काटे और जोड़े गए हैं, उनमें कोई सुधार कराया जा सके। चुनाव के बाद जो जीता वही सिकंदर, उसके बाद हारने वाले कोर्ट में चक्कर लगाते रहें। पूरा कार्यकाल बीत जाएगा, न्याय नहीं मिलेगा। यही महाराष्ट्र में हुआ, हरियाणा भी इससे अछूता नहीं रहा है। राहुल गांधी सप्रमाण चिल्लाते फिर रहे हैं। चुनाव आयोग कोई जवाब ही नहीं दे रहा है। 45 दिन के अंदर चुनाव याचिका लेकर जो लोग हरियाणा हाईकोर्ट गए, वह सुनवाई के लिए चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं। ऐसे ही समय बीत जाएगा। वर्तमान में पश्चिम बंगाल की स्थिति को देखते हुए, एक बात तो कहनी पड़ेगी। चुनाव जीतना और चुनाव की कार्य योजना बनाना संघ और भाजपा से बेहतर कोई नहीं जानता है। भाजपा जिस तरह से चुनाव लड़ती है, उस तरह का चुनाव लड़ना भारत के किसी भी राजनीतिक दल को नहीं आता है। जिसके कारण भाजपा को हरा पाना अब संभव नहीं दिखता है। ममता बनर्जी अपनी आखिरी पारी को पूरी करती हुई दिख रही हैं। यही वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है। एसजे/ 7 दिसम्बर /2025