-सुप्रीम कोर्ट ने भारत लाने के दिए थे आदेश, अब पश्चिम बंगाल में करा रही इलाज नई दिल्ली,(ईएमएस)। यदि पुलिस घर आए और कहे कि आप बांग्लादेशी हैं। सामान समेटिए, आपको बांग्लादेश डिपोर्ट कर रहे हैं। कुछ ऐसे ही फरमान ने 26 साल की सुनाली की जिंदगी को नरक बना दिया था। गर्भवती सुनाली के साथ उसके 8 साल के बेटे ने भी इस नरक को भोगा। शुक्र है कि 3 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय आधार पर सुनाली को भारत लाने का आदेश दिया। सुनाली अब पश्चिम बंगाल में हैं। कुपोषण का इलाज करा रही है। इनकी लड़ाई लड़ रहे पश्चिम बंगाल माइग्रेट बोर्ड के अध्यक्ष समीरुल इस्लाम और सुप्रीम कोर्ट में वकील संजय हेगड़े ने पूरी बात बताई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने सुनाली उसके पति दानिश, बेटे साबिर, स्वीटी बीबी और उनके दो बेटों को 18 जून को दिल्ली के रोहिणी इलाके से उठाया था। पुलिस उस वक्त गृह मंत्रालय के आदेश पर बांग्लादेशियों को पकड़ रही थी, लेकिन पुलिस ने मंत्रालय का सर्कुलर ठीक से पढ़ा ही नहीं था। सुनाली कबाड़ बीनती है। उसने पुलिस को आधार, वोटर आईडी दिखाए। 1952 के जमीन के कागजात और साबिर का जन्म प्रमाण पत्र भी दिखाया, लेकिन किसी ने उसकी गुहार नहीं सुनी। पुलिस ने सुनाली, साबिर, स्वीटी और तीन अन्य सदस्यों को गृह मंत्रालय की टीम को सौंपा दिया। यहां से बीएसएफ टीम सभी को विमान से पश्चिम बंगाल में मालदा जिले की महादी सीमा चौकी पर ले गई थी। बीएसएफ की टीम ने रात के अंधेरे में इनकी आंखों पर पट्टी बांधी और बांग्लादेश बॉर्डर धकेल दिया और चेतावनी दी कि पीछे मुड़े तो गोली मार देंगे। सुनाली अपने बेटे और गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर बांग्लादेश में शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलती रही। फिर बांग्लादेश पुलिस ने इन्हें भारतीय घुसपैठिया कहकर पासपोर्ट एक्ट और फॉरेनर्स एक्ट में गिरफ्तार किया, क्योंकि उनके पास भारतीय दस्तावेज थे। इन्हें जेल भेज दिया गया, जहां दो वक्त का खाना भी नहीं मिला। इससे सुनाली कुपोषण का शिकार हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह नौ महीने की गर्भवती सुनाली खातून और उसके 8 साल के बच्चे को बांग्लादेश से वापस लाए। कोर्ट ने कहा था कि कानून को कभी-कभी इंसानियत के आगे झुकना होता है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया था कि सरकार सोनाली और उनके बेटे को भारत आने देगी। उन्होंने साफ किया कि यह अनुमति मानवीय आधार पर होगी। इससे नागरिकता से जुड़े मुद्दों पर सरकार का रुख प्रभावित नहीं होगा। टीएमसी ने इसे गरीब परिवार के लिए बड़ी जीत बताया और सभी समर्थकों का धन्यवाद किया। टीएमसी नेता समीरुल इस्लाम ने कहा कि सुनाली को कुछ महीने पहले सिर्फ इसलिए बांग्लादेश भेज दिया था क्योंकि वह बंगाली बोलती थी। यह दिखाता है कि गलत पहचान की वजह से एक गरीब महिला को कितना नुकसान और परेशानी झेलनी पड़ी। सिराज/ईएमएस 07दिसंबर25