लेख
26-Mar-2023
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नाटक, नौटंकी, रंगमंच, थियेटर…!!! जो जी चाहे कह सकते हैं। यह मनोरंजन का सबसे पुराना माध्यम है। खासकर, भारत की बात करें तो, आप जानते ही हैं कि, हम लोग मनोरंजन के लिए कितने क्रेजी हैं। मगर पहले सिनेमा नहीं होता था, एंटरटेनमेंट के लिए लोगों के पास थियेटर ऑप्शन था। हमारे पूर्वजों के समय से आजतक ये थियेटर अपना दबदबा बनाए हुए है। इतना ही नहीं आज ओटीटी या फ़िल्मी पर्दे पर नसीरूद्दीन शाह, पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे एक्टर्स को देख रहे हैं वो भी थियेटर की दुनिया से ही आये हैं। ऐसे में हम भला विर्ल्ड थियेटर डे को कैसे भूल सकते हैं। इतिहास एंटरटेनमेंट के नज़रिए से पूरी दुनिया में विश्व रंगमंच दिवस का अपना अलग ही स्थान है। हर साल २७ मार्च को, विश्व रंगमंच दिवस का आयोजन किया जाता है। पूरी दुनिया में रंगमंच (थिएटर) को अपनी अलग पहचान दिलाने के लिए वर्ष १९६१ में अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान ने २७ मार्च के दिन विश्व रंगमंच दिवस मनाने की नींव रखी। इस दिन पूरी दुनिया के कई देशों में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रंगमंच से जुड़े कलाकार अलग-अलग समारोह का आयोजन करते है। विश्व रंगमंच दिवस को मनाने के लिए हर साल इंटरनेशनल थिएटर इंस्टिट्यूट की ओर से एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जाता है। जिसमें दुनियाभर से किसी एक रंगमंच के कलाकार को सेलेक्ट किया जाता है, जो वर्ल्ड थिएटर डे के दिन एक स्पेशल मैसेज को सबके सामने रखता है। इसके बाद इस मैसेज को लगभग ५० से अधिक भाषाओं में ट्रांसलेट करके दुनिया भर के न्यूज़ अख़बारों में छापा जाता है। क्यों मनाया जाता है? विश्व रंगमंच दिवस का उद्देश्य, पूरी दुनिया के समाज और लोगों को रंगमंच की संस्कृति के विषय में बताना, रंगमंच के विचारों के महत्व को समझाना, रंगमंच संस्कृति के प्रति लोगों में दिलचस्पी पैदा करना और इससे जुड़े लोगो को सम्मानित करना है। इसके अलावा विश्व रंगमंच दिवस मनाने कुछ अन्य उद्देश्य ये है: जैसे कि, दुनिया भर में रंगमंच को बढ़ावा देने, लोगों को रंगमंच की जरूरतों और इम्पोर्टेंस से अवगत कराना, रंगमंच का आनंद उठाया और इस रंगमंच के आनंद को दूसरों के साथ शेयर करना, आदि। भारत की पहली नाट्यशाला और रंगमंच का इतिहास कहा जाता है कि, भारत के महान कवि कालिदास जी ने भारत की पहली नाट्यशाला में ही ‘मेघदूत‘ की रचना कि थी। भारत की पहली नाट्यशाला अंबिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्थित है, जिसका निर्माण कवि कालिदास जी ने ही किया था। भारत में रंगमंच का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्रों साल पुराना है। आप इसके प्राचीनता को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि, पुराणों में भी रंगमंच का उल्लेख यम, यामी और उर्वशी के रूप में देखने को मिलता है। इनके संवादों से ही प्रेरित होकर कलाकारों ने नाटकों की रचना शुरू की। जिसके बाद से नाट्यकला (ड्रामा ) का विकास हुआ और भारतीय नाट्यकला को शास्त्रीय रूप देने का कार्य भरतमुनि जी ने किया था। रंगमंच का महत्व वर्तमान में थिएटर या रंगमंच दुनिया के तमाम रहस्यों व घटनाओं को हमारे सामने लेकर आते है, जिनमें कई फिल्में, डॉक्यूमेंट्री, वेब सीरीज एवं टीवी सीरियल्स शामिल हैं। सच्ची और नाटकीय घटनाओं को रंगमंच के जरिए जीवित करने का बेहतरीन जरिया है रंगमंच। जो इसके इम्पोर्टेंस को बढ़ाने का काम कर रहा है। बीते १० सालों में रंगमंच की एक अलग ही पहचान बनी है, जिस वजह से समाज आज रंगमंच का बड़ा सम्मान करते हैं। आज भारत में भी साइंस फिक्शन पर बनी फिल्मों की भरमार है, साथ ही कई फिल्में ऐसी भी है जो, विश्व स्तर पर भारत को प्राउड फील करा रही है। तो वहीं १९५७ में ‘मदर इंडिया’, १९८८ में ‘सलाम बॉम्बे’, २००१ में ‘लगान’ और २००८ की ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ जैसे फिल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई और जीत भी दर्ज की थी। भारत और दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस संकट के दौरान फिल्म जगत और थिएटर से जुड़े लोगों ने भी इस महामारी से निपटने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ईएमएस / 26 मार्च 23