राज्य
01-Dec-2023
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::आखिरी तक डटे रहे, हत्थी का पैर नि हटे, तो नि हटे:: (भिया इन्दौरी बकलम आनन्द पुरोहित) मतलब भिया माहौल तो ऐसा बन गया था कि वहां दिल्ली में कोई मध्यप्रदेश की और मुंह करके छींक भी देता तो इधर... मामा तो ग्यो ...की ब्रेकिंग चल्लू हो जाती थी। साढ़े तीन साल के कार्यकाल के चालीस महीनों में तो इन भई लोगों ने तो पचा पचा डाला... पर मान गये भिया मामा आपको भी, हर बार हंस को ढीली कर देते। ऐसा नहीं कि ये आखिरी आखिरी में शुरू हुआ भिया, इसकी शुरुआत तो कमलनाथ को हटाकर बैठने के साथ ही हो गई थी... तब भई लोग बोल रिये थे अभी रूको, अभी तो सिंधिया पाला बदल को आए ही है, तो एकदम से कैसे बिठा दे उनको, छः महीने मामा को खुश होने दो,... फिर तो मामा ग्यो... और सिंधिया ही बनेंगे आए ही इसी शर्त पर हेगें भिया ।.... पता नहीं कहां से रमूज आ गई थी इन पत्रकारों को भोलेनाथ जाने, पर जब उधर सिंधिया को केन्द्र में ले लिया तो फिर चला दी इन्ने कलम,.... की देख लो पैलै से ही केह रिये थे ना कि उपर से आएंगे सिंधिया,... अपन भी सुनते रहे क्या बोलते... इन धुरंधर पत्रकारों को। पन उधर मामा ने भी लंबी उडन्ची लेको ढील पे ढील दी न सिंधिया उड़ते रहे उड्डयन मंत्रालय में। ... और इधर पत्रकार भई लोग कां पे मान रियै वे भी नये नये चेहरे बिठाने में लग गए, ...कोई अध्यक्ष को लेकर आ गया तो कोई ने दादा दादा करते गृहमंत्री का दांव लगाया। ...पन मामा तो अपनी मस्ती में मगन, दिये जा रहे टाइगर अभी जिंदा है वाले टोले पे टोले। मगर भिया सही से बतला दूं तो ये पत्रकार भई लोग तो लगा को ही बैठे थे... मामा ग्यो की रटम्म रट। मतबल ये कि उधर मामा दिल्ली जाए तो झट फेसले से ही अपनी कापी की गई... मामा तो ग्यो... की थ्योरी पेस्ट कर, नई खबर चला दे। या उधर दिल्ली से कोई इधर आएं तो फिर... मामा तो ग्यो... की ब्रेकिंग ले आए। पन मामा भी इस बार खेलने के पैले ही... हत्थी का पैर नि हटे बोल के कुरसी पर बैठे थे तो नि ही हटे... नि तो ये भई लोग तैयार ही बैठे थे.... कि मैंने पैलै ही कह दिया था... या हमने पैलै ही छाप दिया था... केहने को पर मामा ने किसी को कोई मौका नि दिया ऐसा बोल पाने का.... मान गये भिया मामा आपको सबको वंचित कर दिया। भिया वैसे मामा के साथ कोई पेली बार तो ऐसा चल नि रिया था, कमलनाथ के आने के पेलै की भी तीनों पारियो में पत्रकार भई लोग इस धुन पे खूब नागिन डांस करते रहे थे.... मामा ने तो दिल पे ले रखी थी इस्को... न दिमाग से खेल करते मन ही मन कैते होगे कि तुम कित्ता ही बोलों मैं तो नि जऊंगा... मजा तो भिया तब आता जब दिल्ली से मुख्यमंत्री सम्मेलन जैसे आयोजन के लिए मामा को बुलावा आता न इधर राग... मामा तो ग्यो.. शुरू हो जाता, मतलब कोई तुक तुलना ही नि बैठ रि थी। ऐसा चल रिया था कि... कैलाश विजयवर्गीय सिंधिया से मिले तो मामा ग्यो... सिंधिया तोमर से मिले तो मामा ग्यो... तोमर वी डी शर्मा से मिले तो मामा ग्यो ...वीडी शर्मा पेलाद पटेल से मिले तो मामा ग्यो... पटेल सिंधिया से मिले तो मामा ग्यो... सिंधिया विजयवर्गीय से मिले तो मामा ग्यो... मतलब डिटेल में इत्ती सी बात, की कोई कहीं भी किसी से मिले पत्रकारों की पुंगी ... मामा तो ग्यो... बजाने लग जाती । पन मामा हे कि वहीं के वहीं, न जाने कौनसी मोहिनी ले को बैठे थे खालिस इन्दौरी में बोलूं तो ....पता नि किस किस में कौन कौन सी डिजाइन डाल दी थी... । ऐसे ही डिजाइन डालते डालते मामा ने तीन साल तो निकाल दिए पन दिल पे तो उन्ने भी ले ली थी इसलिए आखिरी महीनों में धुआंधार बैटिंग करने उतरे, न लाड़ली लक्ष्मी को एक साइट करको लाड़ली बहना के साथ चढ़ गये मचान पे बोले तो मंच पे, रिमोट माइक हाथ में लेको मंच पे ही इधर उधर घूमते बिल्कुल रैम्प वॉक स्टाइल में .... उनसे ही नारे लगवाने शुरू कर दिए ...पत्रकार भई लोग चुप अखबारों में फुल फुल पेज, न वेबसाइट पर पाॅप-अप धड़ल्ले से चलने लगे, यूट्यूब चैनल वालों को भी भरपूर दिया मामा ने, पन ये भई लोग तो जैसे ठान के ही बैठे थे... मान ही नि रिए थे मौके की फिराक में लगे और फिर मिला मौका, जब अमित शाह धड़धड़ाते हुए भोपाल आ गए चुनाव रणनीति बनाने। वो क्या आए भाई लोग फिर शुरू... मामा तो ग्यो... उन्ने भी खूब मजे लिए मियां, बैठकों में मामा को भाव नि दिया न मंच से मामा का नाम लिया.... बस पत्रकार भई लोगों के लिए तो इतना ही काफी.... मामा तो ग्यो बजाने के लिए... फिर शुरू पांच छः सात वो ही पुराने धुरंधर नामों के साथ,... कि मामा तो ग्यो... ये आएंगे, अमित शाह चुनाव पैले कर सकते घोषणा....परन्तु उन सबको उन्ने उतार दिया चुनाव मैदान में। और मामा का नाम कहीं नि तो फिर चल पड़ी, कि देख लो पैलै ही बितला रहे थे, कि मामा तो ग्यो । परन्तु दिल्ली वाले भी कम खुदा थोड़ी ही है, आखिर आखिर में मामा को भी बुधनी से उतार ही दिया अब क्या.... तो अब तो यह ही कि भिया ... मान गये मामा को, कि सबको वंचित कर दिया। अब तो चुनाव भी हो गये,... वोट भी डल गये,... एक्जिट पोल भी आ गयै,... और कल परिणाम भी आ जाऐगे,... मामा की सरकार बनती कि नि बनती क्लियर हो जाएगा, पर एक बात तो कैनी ही पड़ेगी... की मामा मान गये आपको आपने ...बड़े बड़े, छोटे छोटे, मझले उजले, बांके तेडे, आड़े सीधे, बल्लम बारीक, उस्ताद गुरु, वरिष्ठ अनिष्ट कनिष्ठ, सम्मानित गैर सम्मानित... सभी पत्रकारों को वंचित कर दिया, ये केहने से.... कि देख लो भिया मैंने तो पैले ही केह दिया था.. कि.... मामा तो ग्यो..... आखिरी तक डटे रहे तो डटे रहे... हत्थी का पैर नि हटे जैसे।