लेख
05-Jan-2024
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मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम दायित्वों का निर्वहन कर त्रेतायुग में बैकुंठ प्रस्थान कर गये तो, उनके साथ संपूर्ण अयोध्या सरयू में विलीन हो गई, इसके बाद कुश ने अयोध्या की पुनः स्थापना की और श्री राम के जन्म स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया। श्री राम भारत के प्राण हैं। प्राणों पर कब्जा किये बिना भारत पर कब्जा नहीं किया जा सकता,ऐसी अनुभूति आक्रमणकारियों को भी हो गई, सो आक्रमणकारियों ने अस्तित्व मिटाने के उद्देश्य से श्री राम के मंदिर पर ही आक्रमण किया। आक्रमणकारी सालार मसूद ने श्री राम के मंदिर का विध्वंस किया लेकिन, श्रीहरि के अनन्य भक्त महाराजा विक्रमादित्य ने मंदिर का पुनः निर्माण करा दिया, इसी तरह बाबर के शासन काल में पुनः श्री राम के मंदिर का अस्तित्व मिटाने का प्रयास किया गया। 1526 से दुःख-दर्द को आत्मसात कर संघर्ष कर रहे लोगों का सपना अब साकार होने जा रहा है। राष्ट्र मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होने का मुहूर्त तय हो गया है, जिसकी प्रतीक्षा प्रत्येक सनातनी कर रहा है।श्री राम मंदिर की संघर्ष गाथा पर प्रकाश डाल रहे हैं बीपी गौतम... 1526 में हुआ था मस्जिद का निर्माण मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम की जन्म स्थली अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को श्री राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी, इस अवसर को भव्य और दिव्य बनाने की व्यापक स्तर पर तैयारियां की जा रहीं हैं। उद्घाटन के साथ ही श्री राम के मंदिर को राष्ट्र मंदिर के रूप में स्थापित करने की योजना दिखाई दे रही है। श्री राम में आस्था-श्रद्धा रखने वालों के लिये मंदिर का निर्माण होना किसी सपने के साकार होने जैसा है, क्योंकि मंदिर निर्माण के लिये बड़ा ही लंबा संघर्ष हुआ है। पीछे मुड़ कर देखा जाये तो, मंदिर निर्माण के लिये असंख्य लोगअपना संपूर्ण जीवन होम कर चुके हैं। उच्चतम न्यायालय जाकर प्रकरण का समाधान हुआ था, इस ताजा प्रकरण की जानकारी संभवतः सभी को है लेकिन, संघर्ष का शुभारंभ 1526 में शुरू हुआ था।बाबर के भारत आने के दो वर्ष बाद ही सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई, इस मस्जिद का निर्माण श्री राम के जन्म स्थान पर कराया गया था। बाबर के सम्मान में मीर बाकी ने मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा। मुगल शासन प्रचंड दौर में था, इसलिये हिंदू चाह कर भी विरोध नहीं कर पाये पर,अंग्रेजों के आते ही मुगल शासन कमजोर होने लगा, जिसके बाद हिंदुओं ने भी मस्जिद का विरोध और श्री रामलला के जन्मस्थल को वापस पाने की लड़ाई शुरू कर दी। 1858 में दर्ज हुई थी पहली एफआईआर मीरबाकी ने 1526 में मस्जिद का निर्माण कराया था, इसके 330 साल बाद 1858 में संबंधित स्थान पर हवन, पूजन करने पर एक एफआईआर दर्ज हुई। 1 दिसंबर 1858 को अवध के थानेदार शीतल दुबे ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि परिसर में चबूतरा बना है, यही वो प्रथम लिखित प्रमाण है,जिसमें परिसर के अंदर श्री राम के प्रतीक होने के प्रमाण हैं। विवाद के बाद कंटीले तार से स्थान का बंटवारा करते हुये विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग-अलग पूजा करने और नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई, इसके बाद 1885 मेंश्री रामजन्मभूमिका विवाद न्यायालय में पहुंचा। निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने उस समय के फैजाबाद के न्यायालय में स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा दायर किया था। रघुवर दास ने बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की मांग की थी, इस पर जज ने फैसला सुनाया कि वहां हिंदुओं को पूजा-अर्चना करने का अधिकार है लेकिन, वे जिलाधिकारी के आदेश के विरुद्ध मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते। हिंदू महासभा ने दायर किया था पहला मुकदमा गुलाम भारत में श्री राम जन्मभूमि को वापस पाने का संघर्ष निरंतर चलता रहा लेकिन, भारत के स्वतंत्र होने दो साल बाद 22 दिसंबर 1949 को ढांचे के अंदर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी1950 को फैजाबाद के सिविल जज के न्यायालय में पहला मुकदमा दायर किया। गोपाल सिंह विशारद ने ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की। लगभग 11 महीने बाद 5 दिसंबर 1950 को महंत रामचंद्र परमहंस ने भी सिविल जज के न्यायालय में मुकदमा दायर किया, जिसमें दूसरे पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग की गई। 3 मार्च 1951 को गोपाल सिंह विशारद प्रकरण में न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की चेतावनी दी। महंत रामचंद्र परमहंस की मांग भी स्वीकार कर ली गई। निर्मोही अखाड़े और वक्फ बोर्ड ने दायर किये मुकदमे रामानंद संप्रदाय की ओर से निर्मोही अखाड़े के छः व्यक्तियों ने अपना दावा करते हुये 17 दिसंबर 1959 को मुकदमा दायर किया और रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर उन्हें पूजा-अर्चना करने की अनुमति देने की मांग की। 18 दिसंबर 1961 को उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी एक मुकदमा दायर किया, जिसमें कहा गया कि यह जगह मुसलमानों की है और ढांचे को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को दे दिया जाये, साथ ही ढांचे के अंदर से मूर्तियां हटा दी जायें। ताला खुला, ढांचा गिरा और फिर हुये भयानक दंगे विश्व हिंदू परिषद ने राम, कृष्ण और शिव के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को षड्यंत्र करार देते हुये 1982 में अभियान चलाने की घोषणा कर दी। 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन करने का निर्णय लिया, इस सबके बीच फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पांडेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पांडेय के प्रार्थना पत्र पर 1 फरवरी 1986 को ताला खोलने का आदेश दे दिया, इस आदेश के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में दायर की गई अपील खारिज हो गई। उधर जनवरी 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के दौरान मंदिर निर्माण के लिये गांव-गांव शिला पूजन कराने का भी निर्णय हुआ। 9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। विवादके बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की अनुमति दे दी, जिसके बाद बिहार के कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया। उस दौर के आक्रामक नेता और शानदार वक्ता लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा लेकर निकल पड़े, इस यात्रा ने श्री राम जन्मभूमि आंदोलन को चरम पर पहुंचा दिया। लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी होने के बाद केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुये और फिर भाजपा के समर्थन से बनी जनता दल की सरकार गिर गई, जिसके बाद कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर अल्पकाल के लिये प्रधानमंत्री बन गये। लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी, इसके बाद 6 दिसंबर 1992 को बड़ी घटना घटित हुई।अयोध्या में हजारों कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया और अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी, उस समय की पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार ने उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार सहित अन्य कई राज्यों की भाजपा सरकारों को भी बर्खास्त कर दिया। उत्तर प्रदेश सहित देशभर मेंसांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें असंख्य लोगों की जान चली गईं। थाने में ढांचा ध्वस्त करने का भाजपा के कई बड़े नेताओं सहित हजारों लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ।बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने के दो दिन बाद 8 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कर्फ्यू लगा था। वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में प्रार्थना पत्र दिया कि भगवान भूखे हैं, राम भोग की अनुमति दी जाये। 1 जनवरी 1993 को न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी। 7 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। उच्चतम न्यायालय ने सुलझाया प्रकरण उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने अप्रैल 2002 में विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिये सुनवाई शुरू हुई। 5 मार्च 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई करने का निर्देश दिया। 22 अगस्त 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा होने की पुष्टि की गई।30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तीनों पक्षों श्रीरामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबरबांटने का आदेश दिया, इसके बाद प्रकरण उच्चतम न्यायालय पहुंचा, जहाँ 21 मार्च 2017 को मध्यस्थता से सुलझाने का प्रयास किया गया।6 अगस्त 2019 को उच्चतम न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की। 16 अक्तूबर 2019 को सुनवाई पूरी हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया।9 नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी, वहींनिर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को निरस्त कर दिया गया, साथ ही न्यायालय ने निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिये केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाये और ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को सम्मिलित करे एवं उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिये 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराये। 1988 में बन गया था मंदिर का डिजायन श्री मंदिर का डिजाइन 1988 में अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार के द्वारा तैयार की गई थी। सोमपुरा परिवार के लोग पिछले 15 पीढ़ियों से मंदिरों की डिजाइन बना रहे हैं, वे अब तक 100 से अधिक मंदिरों की डिजाइन बना चुके हैं, इसी डिजायन को कुछ संशोधन करके स्वीकार कर लिया गया, जिस पर अब निर्माण पूर्ण होने वाला है। श्री राम मंदिर 235 फीट चौड़ा, 360 फीट लंबा और 161 फीट ऊंचा होगा। यह मंदिर नागर शैली में बनाया जा रहा है। नागर शैली भारतीय मंदिर निर्माण की वास्तुकला के प्रकारों में से एक है। मंदिर परिसर में प्रार्थना कक्ष, राम कथा कुंज, वैदिक पाठशाला, संत निवास, यति निवास, संग्रहालय और कैफेटेरिया को डिजाइन किया है। मंदिर 2.7 एकड़ भूमि में बन रहाहै, जिसमें 54,700 वर्गफुट भूमि सम्मिलित है।मंदिर का पूरा परिसर लगभग 70 एकड़ भूमि में तैयार हो रहा है। श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की देख-रेख में लार्सन एंड टूब्रो कंपनी कर रही है, इस मंदिर का निर्माण राजस्थान के बंसी पर्वत के बलुआ पत्थरों से हो रहा है।मंदिर में लगने वाले सभी दरवाजे और खिड़कियां सागौन की लकड़ी से बनाये जा रहे हैं, इसकी आयु लगभग 100 साल मानी जाती है, जिन्हें महाराष्ट्र के चंद्रपुर से मंगवाया गया है। पुरानी प्रतिमा के साथ गर्भ गृह में लगेगी नई प्रतिमा श्री राम लला की मुख्य प्रतिमा नई बन रही है, जिसका चयन हो गया है पर, अभी उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है पर, इसके अलावा मंदिर में भगवान की दो मूर्तियां रखी जायेंगी। एक मूर्ति 1949 में मिली थी और दशकों तक तंबू में रही है, उसे भी मंदिर में स्थापित किया जायेगा, साथ ही नेपाल से शालिग्राम की दो शिलायें अयोध्या लाई गई हैं। शिलायें नेपाल के मुस्तांग जिले में बह रही काली गण्डकी नदी के तट से लाई गई हैं, जो छह करोड़ साल पुरानी हैं, इन शिलाओं का वजन 26 टन और 14 टन है।शालिग्राम को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। 22 जनवरी को रखी गई थी आधारशिला उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लियेश्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्री राम मंदिर की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों से आधारशिला रखी गई और अब 22 जनवरी 2024 को मंदिर में भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी, इसके बाद मंदिर भक्तों के लिये खोल दिया जायेगा। विश्व भर से लोग देखने आयेंगे राष्ट्र मंदिर भगवान श्रीराम का मंदिर राष्ट्र मंदिर ही है, इसलिये यहाँ विश्व भर से भक्त पहुंचेंगे, जिनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुये हर दृष्टि से विकास किया जा रहा है।उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में 32 हजार करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का शुभारंभ किया है, जिनसे अयोध्या को एक सुंदरतम नगरी बनाया जायेगा। अयोध्या में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बन गया है।रेलवे स्टेशन को अत्याधुनिक बनाया जा रहा है। अयोध्या से हर दिशा को फोर लेन और सिक्स लेन मार्गों का निर्माण किया जा रहा है। अयोध्या में हनुमान गढ़ी, रामकोट, श्री नागेश्वरनाथ मंदिर, कनक भवन, तुलसी स्मारक भवन, त्रेता के ठाकुर, जैन मंदिर, मणि पर्वत, छोटी देवकाली मंदिर, राम की पैड़ी, सरयू नदी, क्वीन हो मेमोरियल पार्क, गुरुद्वारा, सूरज कुंड, गुलाब बाड़ी, बहू-बेगम का मकबरा, कंपनी गार्डन और गुप्तार घाट भी प्राचीन स्थलहैं, इनको भी उचित सम्मान दिया जा रहा है। कुश ने बनवाया था श्री राम का पहला मंदिर श्रीराम को भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। प्राचीन महाकाव्य वाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि प्रभु श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में अयोध्या में हुआ था। अयोध्या में जिस स्थान पर उनका जन्म हुआ था, उस स्थान पर ही श्री राम का मंदिर है, इस स्थान पर पहली बार मंदिर का निर्माण कुश ने कराया था।पौराणिक कथाओं और धर्म ग्रंथों के अनुसार श्रीराम प्रजा सहित बैकुंठ धाम चले गये तो,संपूर्ण अयोध्या नगरसरयू में समाहित हो गया, इसके बाद कौशांबी के महाराज कुश ने अयोध्या को पुनः बसाया। कालिदास के ग्रंथ रघुवंश और लोमश रामायण के अनुसार कुश ने ही सर्वप्रथम पत्थरों के खंभों वाले मंदिर का निर्माण करवाया, वहीं जैन परंपरा में माना जाता है कि अयोध्या को पुनः ऋषभदेव ने बसाया था। बाबर से पहले भी ध्वस्त किया गया था मंदिर भविष्य पुराण के अनुसार उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व में दूसरी बार ध्वस्त हो चुकी अयोध्या का पुनः निर्माण करवाया था। उन्होंने अयोध्या में सरयू नदी के लक्ष्मण घाट को आधार बनाकर 360 मंदिरों का निर्माण करवाया था, वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे, इसीलिए उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। माना जाता है कि बाबर से पहले 1033 में मुस्लिम आक्रमणकारी सालार मसूद ने श्री राम के मंदिर को ध्वस्त कर दिया था, जिसके गहड़वाल वंश के राजाओं द्वारा मंदिर का तीसरी बार निर्माण कराया गया था, इस मंदिर के प्रमाण सिख साहित्य में भी मिलते हैं।सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव आक्रमणकारी बाबर के भारत आने से पहले ही भगवान श्री राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिये अयोध्या पहुंचे थे, वे 1510 से 1511 के बीच अयोध्या आये थे। ----------------------------------- 15 जनवरी 2024 मकर संक्रांति पर खरमास खत्म हो रहे हैं। रामलला के विग्रह अर्थात,श्रीराम के बालरूप की प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित किया जायेगा। 16 जनवरी 2024 रामलला के विग्रह के अधिवास का अनुष्ठान का शुभारंभ हो जायेगा। 17 जनवरी 2024 रामलला की प्रतिमा को नगर भ्रमण के लिये निकाला जायेगा। 18 जनवरी 2024 प्राण-प्रतिष्ठा की विधि आरंभ होगी। मंडप प्रवेश पूजन, वास्तु पूजन, वरुण पूजन, गणेश पूजन और मार्तिका पूजन होगा। 19 जनवरी 2024 श्री राम मंदिर में यज्ञ अग्नि कुंड की स्थापना की जायेगी। विशेष द्वारा अग्निप्रज्वलित की जायेगी। 20 जनवरी 2024 श्री राम मंदिर के गर्भगृह को विभिन्न पवित्र नदियों के जल से भरे 81 कलश से पवित्र किया जायेगा एवं वास्तु शांति अनुष्ठान होगा। 21 जनवरी 2024 यज्ञ विधि में विशेष पूजन और हवन के बीच श्री राम लला का 125 कलशों से दिव्य स्नान होगा। 22 जनवरी 2024 मध्यकाल के मृगशिरा नक्षत्र में श्री रामलला की महापूजा के साथ प्राण प्रतिष्ठा होगी।12 बजकर 29 मिनट 8 सेकेंड से12 बजकर 30 मिनट 32 सेकेंड तक मुहूर्त रहेगा, इन 84 सेकेंड के बीच में ही प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी, इस दिन कुर्म द्वादशी है, इस तिथि को भगवान विष्णु का कच्छप अवतार हुआ था, इसलिये 22 जनवरी का दिन बेहद शुभ माना जा रहा है। ईएमएस / 05 जनवरी 24