लेख
13-Feb-2024
...


(वेलेण्‍टाइन डे पर विशेष) दीप्त लौ के आलिंगन से चरम आनंद को प्राप्त कीट-पतंग का उत्कर्ष प्रेम को परिभाषित करता है। अग्नि को प्रायः विनाश का पर्याय माना जाता है लेकिन इसके अभाव में जीवन नीरस है। इसलिए जीवन से जुड़े प्रत्येक आनंद के इस स्रोत को शास्त्रों में विशेष स्थान दिया गया है। उपनिषद में सात प्रकार की अग्नि की महिमा में कहा गया है - काली कराली च मनोजवा च सुलोहिता या च सुधूम्रवर्णा स्फुलिंगिनी विश्वरुचि च देवि लेलायमाना इति सप्त जिव्हा। अर्थात जो काली, अति उग्र ,मन की शांति, अत्यंत चंचल, सुंदर लाली लिए हुए, सुंदर धुएं सी रंग वाली, चिनगारियों वाली,सब ओर से प्रकाशित देदीप्यमान इस प्रकार सात तरह की ज्वाला हवि को ग्रहण करने वाली लपलपाती जिव्हायें हैं। इसमें वर्णित मनोजवा वह अग्नि है जिससे प्रेम विह्वल होकर हमें मृत्यु के आलिंगन में असीम सुख का अनुभव होता है। प्रेम रहस्यपूर्ण घटना है। यह एक द्वार है जिसके एक तरफ पीड़ा दूसरी तरफ आनंद, एक तरफ नर्क तो दूसरी तरफ स्वर्ग है। एक तरफ जन्म-मृत्यु का संसार चक्र है तो दूसरी तरफ मोक्ष है। यदि प्रेम में आवेश(आतुरता) है तब प्रेम नर्क बन जाएगा। यदि प्रेम में आसक्ति(प्रेमांधता, अनुरक्ति) है तब प्रेम एक कैद बन जाएगा लेकिन, यदि प्रेम आवेशहीन है तब वह स्वर्ग बन जाएगा। संसार से युद्ध तभी विदा होगा जब प्रेम संसार में फिर से आएगा। यह कहना श्रेष्‍यकर होगा कि प्रेम ईश्वर है, बनिस्‍पत सत्य ईश्वर है। क्योंकि सामंजस्य, सौन्दर्य, जीवन ऊर्जा और आनंद प्रेम के भाग हैं लेकिन सत्य का भाग नहीं हैं। सत्य को केवल जानना होता है जबकि प्रेम का ज्ञान और अनुभू‍ति दोनों आवश्‍यक है। प्रेम का विकास और पूर्णता ईश्वर मिलन के साथ सृष्टि के उन्नयन की ओर उन्मुख करता हैं। प्रेम के बिना मंदिर केवल साधारण घर के समान है जबकि प्रेम के साथ साधारण घर भी एक मंदिर में रूपांतरित हो जाता है। प्रेमविहीन होकर हम रिक्त हाव-भाव की मात्र संभावना रह जाते हैं क्‍योंकि, प्रेम से अहंकार खत्‍म होता है परन्तु आत्मा जाग जाती है। मनुष्य की तीन परतें है - पहला शरीर या शारीरिक विज्ञान, दूसरा मन अथवा मानसिकता और तीसरी उसकी आत्मा अथवा शाश्वत स्वयं। प्रेम इन तीनों तलों पर हो सकता है परन्तु इनके गुणधर्मों में अंतर होगा। शारीरिक तल पर वह केवल यंत्रयोग या काम है इसे हम प्रेम कह सकते हैं , दूसरा कवि शिल्‍पी चित्रकार नर्तक गायक आदि जो शरीर के पार प्रेमानुभूति के लिए संवेदनशील हैं। वे मन के सौन्दर्य, ह्रदय की संवेदनशीलता की अनुभूति कर सकते हैं इसलिए वे स्वयं उस तल पर जीते हुए अपने ह्रदय में दूसरे के ह्रदय के मनोभावों को समझ सकते हैं। दुर्भाग्यवश किसी राष्ट्र या संस्था ने कभी नहीं चाहा कि लोगों में बलशाली प्रेमात्मा हो। कयोंकि एक आध्यात्मिक ऊर्जा वाला व्यक्ति अनिवार्य रूप से विद्रोही होता है। यदि परस्पर निर्भर, अधिकार जमाते हुए परस्‍पर आगे बढ़ने का अवसर नहीं देते तो हम शत्रु हैं। एक-दूसरे को अपनी आत्मा या अपना स्वयं खोजने में यदि हम कोई मदद नहीं कर रहे है तो वह प्रेम नहीं हो सकता। हमारी परम्पराओं ने प्रेम को अलग अलग नामों में बांट देने पर जोर दिया है। लोग प्रेम के कोमल तलों पर जाने से डरतें हैं। क्योंकि भावनाएं पत्थर नहीं वे पुष्‍प के समान कोमल होतीं हैं। माना जाता है कि कवि और कलाकार का प्रेम फूल की भांति सुगंधित, जीवंत, वातावरण में थिरकता, बरसात और ग्रीष्‍म में अपना सौन्दर्य बिखेरते है परन्तु संध्या तक आते-आते वह विदा हो जाता है। बिरले लोग ही इस प्रकार से निरंतर बदलते हुए जीवन को प्रतिपल जीतें हैं। संभवतः हम पहले या दूसरे प्रकार के प्रेम से अवगत हों, जिसमें यह भय हो कि यदि हम अपनी आत्मा के तल तक पहुंचेंगे तो हमारे प्रेम का क्या होगा? निश्चित ही वह विलीन हो जायेगा परंतु, पराजय की बजाय हम एक अभूतपूर्व प्रेम का अनुभव करेंगे। ईएमएस / 13 फरवरी 24