लेख
28-Mar-2024
...


योग गुरु बाबा रामदेव व उनका व्यवसायिक उद्यम पतंजलि आयुर्वेद पिछले दिनों एक बार फिर उस समय सुर्ख़ियों में आया जबकि रामदेव व पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक व सी ई ओ आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में चल रहे पतंजलि आयुर्वेद के गुमराह करने वाले एक दवा विज्ञापन मामले में सर्वोच्च न्यायालय में बिना शर्त अपनी ग़लती की माफ़ी मांगी।ग़ौरतलब है कि पतंजलि वेलनेस ने एक विज्ञापन देश के टी वी चैनल्स व विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित किया था जिसके माध्यम से एलोपैथी पर ग़लतफ़हमियां फैलाने का आरोप लगाया गया था। इसी विज्ञापन को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने 17 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका की सुनवाई में आईएमए ने दिसंबर 2023 और जनवरी 2024 में देश के अनेक अख़बारों में जारी किए गए गुमराह करने वाले विज्ञापनों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया। साथ ही 22 नवंबर 2023 को पतंजलि के CEO बालकृष्ण व बाबा रामदेव की उस पत्रकार वार्ता के बारे में भी बताया गया जिसमें पतंजलि ने मधुमेह और अस्थमा को पूरी तरह से ठीक करने का दावा किया था। इसी मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पतंजलि को सभी भ्रामक दावों वाले विज्ञापनों को तुरंत बंद करने का आदेश देते हुये यह भी कहा था कि अदालत ऐसे किसी भी उल्लंघन को बहुत गंभीरता से लेगा और हर एक प्रोडक्ट के झूठे दावे पर 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना लगा सकता है। इसी मामले में अवमानना नोटिस का जवाब नहीं देने पर बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण दोनों को 2 अप्रैल को अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश भी दिया गया था। परन्तु पतंजलि आयुर्वेद ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर बिना शर्त माफ़ी मांग ली। अदालत को दिये गये एक हलफ़नामे में आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि उन्हें कंपनी के अपमानजनक वाक्यों वाले विज्ञापन पर खेद है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोर्ट में हाज़िर होने के आदेश के बाद पतंजलि आयुर्वेद द्वारा झूठे दावों वाले विज्ञापन के मामले में यह हलफ़नामा दायर किया गया । इस हलफ़नामे में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने न सिर्फ़ बिना शर्त माफ़ी मांगी बल्कि न्यायालय में दी गई अंडरटेकिंग में यह भी कहा कि यह ग़लती दोबारा नहीं होगी। हलफ़नामे पर दिये गये इसी माफ़ीनामे में इसतरह के विज्ञापन को पुनः प्रसारित न करने का भी वचन दिया गया है। योग विद्या को माध्यम बनाकर दिन दूनी रात चौगुनी की दर से अपना व्यवसाय चमकाने वाले रामदेव का विवादों से पुराना नाता रहा है। पतंजलि आयुर्वेद में हालांकि मुख्य चेहरा रामदेव का ही है परन्तु रामदेव ने पतंजलि आयुर्वेद का चेयरमैन व सी ई ओ अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी नेपाली मूल के बाल किशन को बनाया है। यही वजह है कि पतंजलि आयुर्वेद में जहां रामदेव का कोई हिस्सा नहीं है वहीं इसके 94 % हिस्से के मालिक अकेले बाल किशन हैं। 51 वर्षीय बालकिशन की गिनती इस समय देश के 68 वें सबसे रईस व्यक्ति के रुप में होती है। उनका नाम फ़ोर्ब्स पत्रिका में अरबपतियों की सूची में भी शामिल है। फ़ोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक़ बाल किशन की अनुमानित नेट वर्थ 3.8 बिलियन डॉलर है। राम देव व बाल किशन ने 2022 में अपना व्यवसायिक टर्न ओवर 40 हज़ार करोड़ का बताया था साथ ही यह भी कहा था कि उनका लक्ष्य 5 वर्ष में इसे दुगना करने का है। रामदेव द्वारा आयुर्वेद अथवा इससे सम्बंधित उत्पादों को बनाना बेचना व इनके उचित विज्ञापन देना तक तो ठीक है परन्तु प्रायः वे अपने उत्पाद को सही ठहरने के लिये अक्सर दूसरी औषधीय प्रणालियों पर भी हमलावर हो जाते हैं। उन्हें विश्व विख्यात व सर्व स्वीकार्य एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली से बड़ी चिढ़ है। लोगों का कहना है कि रामदेव अपने उत्पाद बेचने के लिये एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली की आलोचना करते हैं। कोरोना काल में जिस भारतीय वैक्सीन को लेकर भारत सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है उसकी आलोचना में भी रामदेव ने कोई कसर बाक़ी नहीं रखी। अभी भी कई जगह सार्वजनिक मंचों से वे यह कहते नज़र आते हैं कि वैक्सीन लगवाने के बाद तमाम लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यानी एक ओर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पूरी भारत सरकार ने देश के लोगों को कोरोना वैक्सीन लगवाने हेतु प्रोत्साहित किया जबकि ठीक इसके विपरीत रामदेव लोगों को वैक्सीन लगवाने के प्रति हतोत्साहित करते रहे। सवाल यह है कि उनमें इतना साहस आता कहाँ से है ? दरअसल रामदेव ने योग व इसके टी वी प्रचार के माध्यम से पहले तो स्वयं को प्रसिद्धि दिलाई। उसके बाद जब योग के बहाने राष्ट्रीय स्तर पर उनके समर्थकों की संख्या बढ़ने लगी तो नेता उनकी ओर स्वयं आकर्षित होने लगे। क्योंकि स्वभाविक है नेताओं को वह व्यक्ति बहुत भाता है जिसमें भीड़ को आकर्षित करने की क्षमता हो। इसी का लाभ उठाकर रामदेव ने अपने पतञ्जलि परिसर में नरेंद्र मोदी से लेकर बड़े से बड़े नेताओं मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों को किसी न किसी आयोजन के बहाने आमंत्रित किया। यहाँ तक कि कोरोनकाल में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के हाथों कोरोना की अपनी दवाई कोरोनिल का भी उद्घाटन करा दिया जिसे लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दवा की विश्वसनीयता को खुली चुनौती दी। रामदेव अनेक मुख्यमंत्रियों व केंद्रीय नेताओं से सम्बन्ध बनाकर विभिन्न राज्यों में अपने उद्योग के विस्तार हेतु ज़मीनें भी ले चुके हैं। वह रामदेव ही थे जिन्होंने पहले तो 2012 में ट्वीट किया कि अगर कालाधन वापस आ गया तो पेट्रोल 30 रुपये प्रति लीटर मिलेगा परन्तु जब तेल की क़ीमतें 100 रूपये से ऊपर चली गयीं तो बड़ी ही चतुराई से उन्होंने वो ट्वीट डिलीट कर कर डाला। बाबा रामदेव 2014 से पहले लोगों से पूछा करते थे कि “ आप लोगों को कौन सी सरकार चाहिए? 40 रुपए पेट्रोल वाली सरकार या 300 रुपए वाली सरकार? नरेंद्र मोदी की सरकार बनाओ, 40-45 रुपए लीटर पेट्रोल और 30-35 रुपए लीटर डीज़ल मिलेगा। यही नहीं गैस की क़ीमत भी 400 रुपए कर देंगे। रामदेव 20 करोड़ युवाओं को रोज़गार दिलाने का वादा भी करते फिरते थे। इसी सम्बन्ध में करनाल में जब एक पत्रकार ने रामदेव से पेट्रोल की क़ीमतों संबंधी उनके पुराने बयान के बारे में पूछा तो रामदेव उसपर आग बबूला हो गए। रामदेव ने पहले तो उसे चुप हो जाने को कहा।फिर कहा कि -हाँ मैंने कहा था। क्या पूंछ उखाड़ लेगा मेरी ? तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर देने का कोई ठेका ले रखा है मैंने? कर ले क्या कर लेगा। चुप हो जा। आगे कुछ पूछेगा तो ठीक नहीं।” इसी तरह कुछ समय पूर्व बाबा रामदेव ने ओबीसी समुदाय पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुये कहा कि मेरा मूल गोत्र है ब्राह्मण गोत्र, और मैं अग्निहोत्री ब्राह्मण हूं। ओबीसी वाले ऐसी तैसी करायें। परन्तु जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो बाबा रामदेव साफ़ मुकर गये और कहा कि मैंने कभी ओबीसी पर कोई बयान नहीं दिया बल्कि मैंने तो ओवैसी कहा था क्योंकि उनके पूर्वज हमेशा राष्ट्रविरोधी रहे हैं। अपनी ही कही बात से साफ़ मुकरने और इसतरह घुमाने की कला कम ही लोगों को आती है। कहना ग़लत नहीं होगा कि बाबा रामदेव केवल चतुर ही नहीं बल्कि शातिर भी हैं। (यह ले‎खिका के अपने ‎विचार हैं) .../ 28 मार्च 2024