राज्य
28-Mar-2024


सूरत (ईएमएस)| सूरत जिले के गौशाला-पांजरापोल के प्रबंधकों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। राज्य सरकार द्वारा गौमाता पोषण योजना के तहत घोषित आर्थिक सहायता का भुगतान अभी तक प्रशासनिक तंत्र द्वारा नहीं किये जाने के कारण आज गौशाला एवं पांजरापोल प्रबंधकों द्वारा जिला कलेक्टर कार्यालय पर नारेबाजी के साथ विरोध प्रदर्शन किया गया| इस संबंध में संगठन के नेताओं ने जिला कलक्टर को आवेदन देकर यथाशीघ्र आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने की मांग की है। बता दें कि इस साल राज्य सरकार ने गौ माता पोषण योजना के तहत प्रदेश भर में गौशालाओं और पांजरापोल का प्रबंधन करने वाली संस्थाओं के लिए बजट में 425 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है| एक साल पहले गौशालाओं और पांजरापोल के लिए भूमि स्वामित्व नियमों में बदलाव के बाद भारी हंगामा हुआ था। हांलाकि इस नियम को राज्य सरकार ने अब खत्म कर दिया है और भूमि स्वामित्व का कोई सबूत नहीं होने पर भी गौ माताओं की सेवा करने वाली संस्थाओं को वित्तीय सहायता देने का निर्णय किया गया है। प्रदेश के अन्य जिलों में भी इस संबंध में सहायता वितरित की जा रही है। लेकिन सूरत में इस संबंध में प्रशासनिक तंत्र द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई| आरोप यह भी लग रहे हैं कि राज्य सरकार के स्पष्ट आदेश के बावजूद जिला कलेक्टर का प्रशासनिक तंत्र अड़ियल रवैया अपना रहा है| जिसके परिणामस्वरूप आज श्री गुजरात राज्य गौशाला पांजरापोल संघ ने वर्ष 2023-24 के लिए गौ माता पोषण योजना के लिए सूरत जिले की संस्थाओं को वित्तीय सहायता के भुगतान के लिए जिला कलेक्टर को आवेदन पत्र दिया। संगठन के महासचिव छत्रसिंह खेर द्वारा बताया गया कि प्रदेश के अन्य जिलों में गौशालाओं की भूमि के स्वामित्व पर बिना किसी आपत्ति के मुख्यमंत्री गौमाता पोषण योजना की सहायता का भुगतान किया जा रहा है। जबकि केवल सूरत जिले में ही इस संबंध में सहायता भुगतान नहीं किया जा रहा है। इसके चलते गायों का पालन-पोषण करने वाली संस्थाओं की आर्थिक हालत खस्ता हो गई है| दो साल पहले राज्य सरकार ने प्रत्येक जिले में गौशालाओं और पांजरापोल का प्रबंधन करने वाली संस्थाओं के लिए मुख्यमंत्री गौ माता पोषण योजना की घोषणा की थी। जिसमें प्रत्येक संस्था को प्रति दिन प्रति गाय 30 रुपये की सब्सिडी का भुगतान किया जाता है। हालाँकि संस्थाएँ प्रति गाय प्रति दिन 60 से 70 रुपये खर्च करती हैं। जिसमें संस्थानों को सरकार की ओर से 50 फीसदी तक की बड़ी राहत मिलती है| दूसरी ओर इन संस्थानों में ज्यादातर परित्यक्त मवेशी होते हैं, इसलिए वे उनकी दवा पर भी काफी पैसा खर्च करते हैं। सूरत समेत राज्य के सभी जिलों में गौसेवा से जुड़े संगठन लंबे समय से राज्य सरकार से आर्थिक सहायता की मांग कर रहे थे| जिसके बाद राज्य सरकार द्वारा यह योजना शुरू की गई है। पिछले साल एक बड़ा विवाद हुआ था जब गौशाला संचालकों पर भूमि स्वामित्व के प्रमाण का नियम लागू किया गया था। राज्य भर के गौशाला प्रबंधकों द्वारा उठाए गए सवाल के बाद राज्य सरकार ने इस साल पहले ही इस नियम को रद्द करने की घोषणा कर दी थी। इसके बावजूद सूरत जिला प्रशासन ने इस नियम को ध्यान में रखते हुए अभी भी जिले के 22 से अधिक संस्थानों को वित्तीय सहायता नहीं दी है। चेतना/28 मार्च