लेख
02-Apr-2024
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राजीव गांधी कभी नही चाहते थे कि वह कभी राजनीति में आए इसीलिए उन्होने पढाई पूरी करने के बाद पायलट के रूप अपना कैरियर चुना था। उन्होने प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर मां श्रीमति इंदिरा गांधी के पदस्थ रहने के बावजूद उनके रहते राजनीतिक कार्य में कभी कोई दखल नही किया था। यहां तक कि उनकी पत्नी मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी भी एक आदर्श बहु के रूप में श्रीमति इंदिरा गांधी परिवार की शोभा बढाती रही। राजीव गांधी चाहते थे कि वह अपने बलबूते कैरियर की उडान भरे और इक्कीस वीं सदी का भारत बनाने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाये। वह बिना राजनीतिक सहारे के इस ओर बढ ही रहे थे कि प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर विराजमान मां श्रीमति इंदिरा गांधी को 31 अक्टूबर सन 1984 में उन्ही के अगंरक्षको द्वारा की गई हत्या ने राजीव गांधी के जीवन की दिशा बदल दी। तत्कालीन राष्टृपति ज्ञानी जैलसिंह ने मौके की नजाकत और देश के हालात को देखते हुए राजीव गांधी को देश का प्रधानमन्त्री बनाने का अहम फैसला ले लिया था। उनके इस फैसले से कई रानीतिक भौच्चके भी हुए और कईयों को प्रधानमन्त्री का पद हाथ से फिसलता भी दिया पडा था। परन्तु राष्टृपति विरोधियों से जरा भी विचलित नही हुए और देश को संकट से उभारने और कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा सिद्ध करते राजीव गांधी को प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिला दी थी। उस समय राजीव गांधी के बारे में अधिकांश को यह उम्मीद नही थी कि प्रधानमन्त्री के रूप में राजीव गांधी एक नया इतिहास रचेगे और भारत को इक्कीस वीं सदी में ले जाने के लिए तकनीकी ज्ञान व विकास के क्षेत्र में मजबूत करने का काम करेगे। राजीव गांधी चाहते थे कि देश की सरकारी विकास योजनाओ का पैसा शतप्रतिशत रूप में गांव तक पहुंचे और उनका चहुंमुखी विकास हो। वह यह भी जानते थे कि योजनाओं का पैसा शतप्रतिशत रूप से गांव तक नही पहुंचता और मात्र 15 प्रतिशत राशि ही वास्तव में विकास पर खर्च हो पाती है जिसका मतलब है कि सरकारी योजनाओं की बदंरबाट से वे आहत थे। इस बदंरबाट अर्थात भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए वे जीवनपर्यन्त प्रयत्यनशील रहे। जिसमें आशातीत सुधार भी हुआ परन्तु राजीव गांधी का भारत को पूर्ण भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का सपना उनके असमय चले जाने के कारण अधुरा रह गया। संगठन पर मजबूत पकड करना उन्हे आता था। कांग्रेस के कैडर बिल्डिगं कार्यक्रम के माध्यम से उन्होने संगठन को धरातल स्तर पर मजबूत करने की कौशिश की। इस कार्यक्रम के प्रशिक्षको व कार्यकर्ताओं से वे कांग्रेस की वास्तविक तस्वीर जान लेते थे। याकि कांग्रेस का टिकट किसे मिलना चाहिए ,कौन जीत सकता है ,किसकी छवि अच्छी है यह सब उन्हे इसी कैडर बिल्डिगं के प्रशिक्षको से पता चल जाता था। साथ ही पार्टी विरोधी लोगो और कांग्रेस से गददारी करने वालो की जानकारी भी उन्हे सहज ही हो जाती थी। जब किसी नेता को या फिर कार्यकर्ता को पार्टी में शामिल करना होता तो उसकी खुफिया जाचं भी इन्ही कैडर बिल्डिंग के लोगो से कराई जाती थी। जिसके परिणाम हमशा अच्छे रहे। वे मामूली से मामूली कार्यकर्ता को भी तरजीह देते थे। यही उनके बडप्पन का राज था। मुझे भी जिला कैडर बिल्डिंग का जिला अध्यक्ष रहते हुए व उससे पूर्व जिला महामन्त्री पद पर रहते तत्कालीन राष्टृीय कांगेस के संयुक्त सचिव देबा प्रसाद राय के माध्यम से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष एवं देश के प्रधानमन्त्री राजीव गांधी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होने न सिर्फ हमें चाय पिलाई बल्कि हमसे एक एक कर जमीनी हकीकत भी जानी। राजीव गांधी ने हमें काम्प्लीमेन्ट दिया था कि हम उनके कान और आंख है। इसी तरह एक बार अखिल भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी सगंठन द्वारा चलाये गए चरित्र निमार्ण शिविर के प्रमाण पत्रों पर बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी के हस्ताक्षर होने थे जिसके लिए चरित्र निमार्ण शिविर संयोजक पंडित ताराचन्द वत्स जो कि मेरे मामा जी थे, ने मुझे कांग्रेस अध्यक्ष के हस्ताक्षर कराने नई दिल्ली भेजा। मै उस समय के अखिल भारतीय कांगेस स्वतन्त्रता सेनानी अध्यक्ष शीलभ्रद्र याजी के पास नई दिल्नी जतंर मतंर पर गया और उनसे कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी के हस्ताक्षर कराने का निवेदन किया। वे पहले तो थोडा नाराज हुए कि एक बच्चे यानि मुझे इतनी बडी जिम्मेदारी क्यों दी गई। लेकिन फिर अपना स्नेह दिया और प्रधानमन्त्री कार्यालय फोन कर प्रधानमन्त्री राजीव गांधी से मिलने का समय मांगा। प्रधानमन्त्री कार्यालय से बताया गया कि प्रधानमन्त्री जी दक्षिण भारत की यात्रा पर है और देर रात में लौटेगे। शीलभद्रयाजी द्वारा यह अनुरोध करने पर कि जैसे ही प्रधानमन्त्री जी आए तो उन्हे बता दिया जाए। इस पर रात में ही प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के लौटने पर प्रधानमन्त्री कार्यालय से गाडी भेजकर हमे बुलाया गया। जैसे ही हम प्रधानमन्त्री निवास पहुंचे तो शीलभद्र याजी को देखते ही राजीव गांधी ने उनका स्वागत किया और उनके पैर छूते हुए बोले दादा जी कैसे याद किया। इस पर उन्होने अपने आने का मकसद बताया तो राजीव गांधी ने न सिर्फ खुशी खुशी प्रमाण पत्रों पर अपने हस्ताक्षर किये बल्कि मुझसे क्षेत्र की जानकारी भी प्राप्त की। लेकिन राजीव गांधी की दुःखद मृत्यु के बाद आम कार्यकर्ता से बडे नेताओ का संवाद टूट सा गया है। यही कांग्रेस की कमजोरी का कारण है। कहने में गुरेज नही कि कांग्रेस में दूसरी पक्ति के नेता चुनाव के समय कांग्रेस हाईकमान को अन्धेरे में रखकर टिकटो को बेचने तक का धन्धा करते है और ऐसे अवसरवादियों और दलबदलुओं को अपने नीजि स्वार्थ के लिए टिकट दिलवा देते है जिनका पार्टी से कोई मतलब या वास्ता नही होता। अच्छा हो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस युवराज राहुल गांधी राजीव गांधी की तरह सीधे धरातल से जुडे कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित करे। आम कार्यकताओं से हकीकत जाने और उनसे सीधा संवाद भी स्थापित करे ताकि आम कार्यकर्ता का मनोबल बना रह सके। राजीव गांधी ने देश में संचार क्रान्ति को चरम पर पहुंचाया और देश को सूचना प्रोधोगिकी के क्षेत्र में नई दिशा दी। तभी तो आज हर हाथ में माबाईल और हर धर में टेलीविजन नजर आता है। जो राजीव गांधी की देन है। कम्प्यूटर क्रान्ति के माध्यम से उन्होने देश को दुनिया के करीब लाने का जो काम किया है। राजीव गांधी, जिनका रानीतिक अनुभव बहुत कम होते हुए भी उन्होने देश के निमार्ण में एक नया अध्याय लिखा और भारतीय प्रोधोगिकी और जनसंचार के क्षेत्र में भारत को बुलन्दियों पर पहुंचाने में महारथ हासिल की थी। (लेखक राजनीतिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है) ईएमएस/ 02 अप्रैल 24