लेख
20-Apr-2024
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ से लेकर भाजपा तक का संगठन, हमेशा व्यतिवाद से दूर रहा है। 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेई के कटाउट चुनाव प्रचार के दौरान लगाए गए थे, उस समय संघ ने नाराजगी व्यक्त की थी। संघ परिवार ने कभी भी व्यक्ति को महत्व नहीं दिया। जनसंघ और भाजपा में भी कभी किसी व्यक्ति को महत्व नहीं मिला। 2014 के बाद से स्थिति बड़ी तेजी के साथ बदल गई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम वोट मांगे गए। प्रचार अभियान में केवल प्रधानमंत्री मोदी ही रहते हैं। उनके साथ भाजपा का कोई नेता भी नहीं रहता है। 2024 का लोकसभा चुनाव अब मोदी की गारंटी पर लड़ा जा रहा है। चुनाव प्रचार अभियान में केवल और केवल मोदी हैं। अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह एवं वरिष्ठ भाजपा नेता इस चुनाव प्रचार अभियान से गायब हैं। भारत के सभी 543 लोकसभा क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और उनकी गारंटी पर जनता से वोट मांगे जा रहे हैं। भाजपा का घोषणा पत्र, भाजपा और संघ की विचारधारा को नेपथ्य में डाल दिया गया है। इस कारण भारतीय जनता पार्टी और संघ के नेताओं में यह बात उभर कर सामने आ रही है कि संघ और भाजपा ने क्या अपनी नीतियां बदल दी हैं? भाजपा के लोग ही अब कहने लगे हैं, कि 1970 के दशक में जो स्थिति कांग्रेस पार्टी की बनी थी, वही स्थिति अब भाजपा की बन गई है। तत्कालीन कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया के नारे को बुलंद किया था। ठीक वही स्थिति अब भारतीय जनता पार्टी की 2019 के बाद से बन गई है। 2014 का चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने अच्छे दिन के नाम पर लड़ा था। उस समय सामूहिक नेतृत्व के अंतर्गत सभी भाजपा नेताओं के फोटो चुनाव प्रचार में लगाए गए थे। 2019 का लोकसभा चुनाव पुलवामा, बालाकोट और राष्ट्रवाद की अपील पर लड़ा गया था। उस समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार का मुख्य हिस्सा बन गए थे। 2024 का लोकसभा चुनाव अब यह मोदी की गारंटी के नाम पर लड़ा जा रहा है। सभी 543 लोकसभा की सीट का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है। पार्टी के प्रत्याशी और प्रादेशिक नेताओं का भी कोई महत्व नहीं रहा। भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में इस बार नौकरी, महंगाई, आर्थिक विषमता, हिंदुत्व, राष्ट्रवाद इत्यादि का मुद्दा गोंड़ हो गया है। पूरी पार्टी एक ही व्यक्ति पर केंद्रित हो गई है। भारतीय जनता पार्टी एक व्यक्ति के नाम से चलेगी, इसे कभी सोचा भी नहीं गया था। भाजपा के कोर वोटर इससे हैरान और परेशान हैं। भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय किए हैं। इसमें संघ और संगठन की भूमिका नग्नय रही है। अन्य दलों से आए हुए नेताओं को भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया है। भाजपा और संघ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूएसपी है। चुनाव प्रचार अभियान में मोदी गारंटी के नाम पर प्रचार किया जा रहा है। भाजपा ने साम-दाम-दंड-भेद, पार्टी की जीत के लिए, विचारधारा को आले में रखकर भूल गए हैं। भाजपा में अब मोदी आधारित राजनीति की जा रही है। जिसके कारण भाजपा के अंदर ही अंदर निष्ठावान कार्यकर्ता, पार्टी के बदलते हुए स्वरूप को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। इसका असर प्रथम चरण के चुनाव में दिखा है। कर्नाटक में मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा गया था। जहां भाजपा की करारी पराजय हुई। हिमाचल प्रदेश में भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। जब पार्टी चुनाव हारती है, तो ठीकरा संगठन के ऊपर फोड़ा जाता है। पार्टी यदि चुनाव जीत जाती है, तो उसका श्रेय नरेंद्र मोदी को दे दिया जाता है। लोकसभा के चुनाव मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर जनादेश मांगा जा रहा है। चुनाव प्रचार के इस अभियान में पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता गायब हैं। कल जब मोदी के विकल्प की जरूरत पार्टी को होगी, तो पार्टी के अंदर कौन है, जिसके नाम पर या जिसको आगे करके भाजपा संगठन चुनाव लड़ सके। पार्टी के अंदर खाने में इसकी चर्चा होने लगी है। व्यक्ति केंद्रित राजनीति के नए दौर से भाजपा गुजर रही है। हमेशा से भाजपा और संघ इसका विरोध करता रहा है। भविष्य की आशंकाओं को लेकर भाजपा संगठन और संघ में तीव्र अंतर विरोध देखने को मिल रहा है। इसकी परणति किस रूप में होगी, अभी कहना मुश्किल है। संघ और संगठन में जिस तरह से व्यक्तिवाद हावी हो गया है, उसके कारण संघ परिवार की चिंता भी बढ़ गई है। जो गलती कांग्रेस ने कई दशकों के बाद की थी। जिसके कारण 1990 के बाद से कांग्रेस का संगठन ही छिन्न-भिन्न हो गया। उसी रास्ते पर अब भारतीय जनता पार्टी भी चल पड़ी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का नियंत्रण भी भाजपा संगठन में वैसा नहीं रहा, जो 2014 के पहले हुआ करता था। ईएमएस / 20 अप्रैल 24