लेख
30-Apr-2024
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(1 मई ( कल) निर्मला देशपांडे जी को पुण्यतिथि विशेष) सन 1947, लंबे संघर्ष के बाद ब्रिटिश हुकूमत का खात्मा हुआ। भारतियों को आजादी हासिल हुई। अंग्रेज़ तो चले गए पर पीछे छोड़ गए एक ऐसा भारतीय समाज जो रूढ़िवादिता,अशिक्षा, गरीबी, जाति व्यवस्था के संकट से जूझ रहा था और जिससे निजाद पाने के लिए अभी एक और लंबी लड़ाई लड़नी थी। उस दौर मे कई चिंतक और बुद्धिवादी लोग न्याय और समता आधारित समाज के निर्माण के लिए सतत संघर्ष कर रहे थे। इन्ही लोगों मे से एक थी गांधी विचारक और बिनोवा भावे की मानस पुत्री डॉक्टर निर्मला देशपांडे। दीदी के नाम से विख्यात निर्मला देशपांडे गांधीवादी विचारधारा एवं आदर्शो की कट्टर समर्थक होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी थी। 19 अक्टूबर 1929 को नागपुर मे विमला और पुरुषोतम यशवंत देशपांडे के घर जन्मी निर्मला जी का बचपन साहित्यिक परिवेश मे बीता। पिता साहित्य अकादमी पुरुस्कार से सम्मानित मराठी साहित्य के जाने माने साहित्यकार थे। निर्मला देशपांडे नागपुर से ही राजनीति विज्ञान मे एम ए के पढ़ाई के बाद वहीं के मारीस कॉलेज मे प्रोफेसर बन गई। दलितों, वंचितों और उत्पीड़ितों के साथ हो रहे भेदभाव से दीदी अक्सर व्याकुल हो जाती और अंततः एक दिन सुख सुविधाओं को त्याग कर आजीवन अविवाहित रहने के संकल्प के साथ वह बिनोवा भावे के पवनार आश्रम मे आ गई। 1952 मे दीदी बिनोवा भावे के भूमिदान आंदोलन से जुड़ी और तकरीबन 40 हजार किलोमिटर की पैदल यात्रा मे शामिल हुई। इस यात्रा मे भूमिहीनों की दुर्दशा ने निर्मला जी को व्यस्थागत उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित किया। भूमिदान आंदोलन के तहत गांधी जी के विचारों मे विश्वास रखने वाले लोगों द्वारा दान की गई लाखों एकड़ जमीन भूमिहीनों और गरीबों मे वितरित की गई। महात्मा गांधी द्वारा अस्पृस्यता उन्मूलन के लिए 1932 मे स्थापित हरिजन सेवक संघ से दीदी बतौर अध्यक्ष जुड़ी और लंबे समय तक उन्होने वहाँ अपनी सेवा दी। बिनोवा भावे ने अपने गुरु महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार और प्रसार के लिए शांति सेना का गठन किया जिसकी कमांडर निर्मला जी को नियुक्त किया गया। बेबाक बोलने वाली और माओवादियों को अपना दोस्त बताने वाली निर्मला देशपांडे एक समर्पित गांधीवादी थी ,शायद इसीलिए उनके लिए नक्सलियों को समझना और उनके प्रति सहानुभूति रखना मुश्किल नही था। यह जानते हुए भी कि नक्सलियों के विरोध का तरीका गांधी विचारधारा से परे था बावजूद इसके निर्मला जी ने नक्सलियों पर बल प्रयोग का विरोध किया। प्रसिद्ध गांधीवादी डॉक्टर एस एन सुब्बा राव के शब्दों मे ....निर्मला देशपांडे का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उन्होने अपने विचारों एवं कार्यों से गांधी और बिनोवा को जोड़ने का कार्य किया। गांधी विचार के मूल तत्व संवाद को इनहोने ‘’गोली नही बोली चाहिए ‘’ का रूप देकर विपरीत माहौल मे भी शांति सद्भाव कायम किया। समय समय पर उत्पीड़ितों अल्पसंख्यकों के बेहतर भविष्य निर्माण के लिए कई सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा प्रयास जारी रहा पर निर्मला देशपांडे एक ऐसी कार्यकर्ता थी जिनहोने अपना सम्पूर्ण जीवन आदिवासियों, उत्पीड़ितों ,महिला ससक्तिकरण और सांप्रदायिक सोहाद्र के लिए समर्पित कर दिया। 1984 मे विभिन्न गांधीवादी संस्थानो और कार्यकर्ताओं को साथ जोड़कर बिनोवा भावे के मार्गदर्शन मे दीदी ने अखिल भारत रचनात्मक समाज की स्थापना की जिसका मूल उद्येश्य सामाजिक एवं सांप्रदायिक शांति और भाईचारे और एकता को बढ़ावा देना था। अखिल भारतीय रचनात्मक समाज दीदी द्वारा शुरू किया गया एक वैचारिक आंदोलन है। साथ ही नित्य नूतन पत्रिका के प्रकाशन की भी शुरुआत हुई जो वैश्विक शांति और न्याय के अहिंसक विचारों को फैलाने के लिए प्रतिबद्ध है। डॉक्टर निर्मला देशपांडे, एक चेहरा जो अंतर्राष्ट्रीय मामलों मे अपनी कूटनीति के लिए जाना जाता था। 1994 मे कश्मीर मे शांति मिशन और 1996 मे भारत पाकिस्तान वार्ता आयोजित कराने मे निर्मला जी की अहम भूमिका रही। पंजाब और कश्मीर मे हिंसा की चरम स्थिति मे शांति मार्च के लिए निकल जाने वाली निर्मला जी ने चीनी दमन के खिलाफ तिब्बत मे मुक्ति साधना का समर्थन कर तिब्बतियों के लिए भी अपनी आवाज बुलंद की। गांधी ग्लोबल फॅमिली के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद्मश्री एस पी वर्मा जी ने दीदी से जुड़े एक संस्मरण साझा करते हुए कहा कि 1990 मे आतंकवाद के दौर मे दीदी जम्मू कश्मीर पहुंची ,एक लाख लोगों को राशन बांटकर पीड़ितों की मदद की। कितने ही काम उन्होने बिना रुपये के शुरू किया। राजनीति मे 1997 से 2007 तक निर्मला जी ने बतौर राज्य सभा सदस्या अपनी सेवा दी। सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही निर्मला जी एक प्रबुद्ध लेखिका भी थी। उनके द्वारा रचित बिनोवा भावे की जीवनी ,साहित्य को निर्मला जी द्वारा दी गई अमूल्य देन है। भूदान यात्रा के दौरान विनोवा भावे के प्रवचनों को लिपिबद्ध कर 40 खंडों में उन्होंने भूदान गंगा की रचना की। 2006 मे उन्हे राजीव गांधी सद्भावना पुरुष्कार और पदम विभूषण से सम्मानित किया गया। 2007 मे निर्मला जी को राष्ट्रपति पद के लिए नामित भी किया गया था। निर्मला देशपांडे एकलौती ऐसी शक्सियत थी जिन्हे भारत और पाकिस्तान दोनों देशों मे प्यार और सम्मान मिला। 2009 मे पाकिस्तान सरकार द्वारा आजादी की पूर्व संध्या पर उन्हे पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सितारा ए इम्तियाज़ से नवाजा गया। इंडिया पाकिस्तान सोल्जर इनिसिएटिव फॉर पीस जिसकी स्थापना स्वयं निर्मला जी ने की थी के रिटायर्ड मेजर जनरल एम ए नाईक अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए निर्मला जी के प्रयासों को याद करते हुए कहते है कि युद्ध मे बड़ी तकलीफ होती है। दीदी निर्मला जी ने सही सोचा की क्यों न प्रशिक्षित सैनिक व युद्धरत सैनिक ही शांति की बात सोंचे। दीदी की प्रेरणा से हमने पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों और उनके बच्चों से बातचीत की और वहाँ भी हमे अमन की चाहत ही देखने को मिली। 79 वर्ष की आयु मे 1 मई 2008 को दिल्ली स्थित अपने निवास पर निर्मला देशपांडे का नींद मे ही देहांत हो गया। निश्चित तौर पर दीदी का निधन देश के लिए एक बड़ी क्षति थी। चूंकि उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने मे समर्पित रहा इसलिए उनकी अस्थियाँ भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत मे बहने वाली सिंधु नदी मे प्रवाहित की गई। निर्मला देशपांडे ने एक बेहतर, शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज की कल्पना की थी और इसी कोशिश मे उन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया। उनकी विचारधारा और दर्शन से हमे विश्व शांति, एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है। यह संभव नही कि हम सब एक ही तरह से सोंचे मगर हमारी बुनियाद सत्य और अहिंसा की रहे और इसी आधार पर विचार की सत्ता स्थापित करने के लिए हम सभी सतत प्रयत्नशील रहे ।इस वर्ष अखिल भारत रचनात्मक समाज की संस्थापिका पूज्य दीदी निर्मला देशपांडे की सोलहवीं पुण्यतिथि की तीन दिवसीय अधिवेशन का अयोजन माउंट आबू राजस्थान में किया जा रहा है। इस अवसर पर देश भर से आए प्रतिनिधियों द्वारा सम्पूर्ण विश्व में अशांति और अहिंसा के ऊपर चिंतन मनन कर उसके निवारण के उपाय पर परिचर्चा किया जाएगा। अखिल भारत रचनात्मक समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष विभूति कुमार मिश्रा ने ये जानकारी देते हुए बताया कि उनकी पूरी कोशिश रहेगी कि पूज्य दीदी निर्मला देशपांडे जी के सिद्धांतों पर चलते हुए विश्व में सामाजिक सौहार्द, सद्भावना, शांति , अहिंसा और प्रेम के लिए शशक्ति पूर्वक कार्य किया जा सके। जय जगत। ईएमएस / 30 अप्रैल 24