लेख
16-May-2024
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दहेज उत्पीड़न के मामले में एक फैसला सुनाया है। फैसले में हाईकोर्ट ने कहा है कि विवाह के समय जो दहेज मिला है, वह वर पक्ष द्वारा लड़की को स्त्री-धन के रूप में दिया गया है। शादी में वर और वधू पक्ष से जो उपहार मिले हैं, उस सबकी सूची बनाएं। दूल्हा-दुल्हन दोनों के हस्ताक्षर करायें। दोनों परिवारों के प्रमुख सदस्य उस सूची पर हस्ताक्षर करें। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, कि दहेज और उपहार में अंतर है। वर और वधु को मिलने वाले उपहार को दहेज नहीं माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा, कि दहेज कानून की धारा 3 में दहेज लेना और देना दोनों ही दंडनीय अपराध है। उपधारा (2) में शादी में मिले उपहार की सूची बनाने की व्यवस्था है। दहेज के किसी भी मामले में विवाद होने पर सत्यापन किया जा सके। हाईकोर्ट ने यह भी कहा, कि सूची होने से इस तरह के विवादों से निपटने में सभी पक्षों को मदद मिलेगी। झूठे मामले, पुलिस और अदालत तक नहीं जाएंगे। विवाद का विषय कोई और होता है। दहेज का मामला बनाकर एक पक्ष को प्रताड़ित करने के मामले सामने आ रहे हैं। जब तक दहेज उन्मूलन कानून प्रचलन में नहीं आया था तब तक इस तरह के मामले सामने नहीं आते थे। पति-पत्नी के रिश्ते तलाक होने की नौबत तक नहीं पहुंचते थे। पति-पत्नी के बीच विवाद होता था। समाज और परिवार के लोग मिलकर उसे सुलझा देते थे। लेकिन अब पति-पत्नी के रिश्ते, वह रिश्ते नहीं रहे, जिन्हें अंतरंग रिश्ता कहा जा सके। अधिकांश मामले में गिव एंड टेक की तरह पति-पत्नी के रिश्ते बन गए हैं। जो चाहा वह नहीं मिला, तो विवाद की स्थिति पैदा होती है। विवाद होने पर तलाक और दहेज उत्पीड़न के मामले बन जाते हैं। पति-पत्नी को तो इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ता है। इसके साथ परिवार के अन्य सदस्य भी लपेट लिए जाते हैं। भारत में तलाक और दहेज उत्पीड़न के मामले बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। पति-पत्नी के रिश्ते भी अब लेन-देन पर आधारित हो गए हैं। भारत में चार-पांच दशक पहले हिंदू समाज में तलाक का कोई मामला देखने में नहीं आता था। हिंदू समाज में तलाक को बहुत बुरा माना जाता था। शादी के बाद पति-पत्नी एक दूसरे को जीवन भर एडजस्ट करते थे। सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था में सबसे क्लोज और मजबूत रिलेशन पति-पत्नी का ही माना जाता है, लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल गए हैं। पति-पत्नी के रिश्ते में बंधने के बाद भी दोनों के बीच कोई आत्मीयता नहीं होती है। दोनों की आपस में किसी बात को लेकर कोई सामजस्य नहीं बन पाता है। तो एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध होने के बाद भी मानसिक रूप से जुड़ाव नहीं हो पाता है। दोनों रिश्ते को तोड़ने के लिए तैयार रहते हैं। भारत में जब से संयुक्त परिवार की परंपरा टूटना शुरू हुई है। परिवार के सदस्य अपना कैरियर और व्यापार के लिए संयुक्त परिवार से अलग होकर स्वयं का व्यापार या करियर बनाने लगे हैं। अब तो निजी जीवन में कोई भी एक-दूसरे का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। जिसके कारण पति-पत्नी के रिश्ते टूटने की समस्या बढ़ती चली जा रही है। पारिवारिक रिश्ते भी अब आर्थिक रूप से एक दूसरे को जोड़कर रखते हैं। रिश्तों का आधार ही आर्थिक और स्वच्छंदता का हो गया है। पुरुष और महिलाओं की शिक्षा और बराबरी की होड़ में कोई किसी के साथ समझौता करके रहना नहीं चाहता है। स्वतंत्र अस्तित्व के कारण पति-पत्नी के रिश्ते भी अब बहुत कमजोर हो गए हैं। जब दोनों के रिश्ते टूटते हैं, तो उसमें आर्थिक आधार और निजी स्वतंत्रता ही सबसे बड़ा कारण होता है। निजी हितों के लिए, ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए दहेज एवं तलाक कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है। पति-पत्नी के तलाक का असर पूरे परिवार और बच्चों पर पड़ रहा है। लोग शादी करने से डरने लगे हैं। जिसके कारण अवैध संबंधों की भी बाढ़ आ रही है। ऐसी स्थिति में सावधानी बरतना बहुत जरूरी हो गया है। सही मायने में पार्टनरशिप एक्ट की तरह शादी के लिए भी एक एक्ट बनना चाहिए। जिसमें दोनों ही पक्ष अपनी शर्तों के साथ पति-पत्नी के रिश्ते को स्वीकार करें। शर्तों का पालन नहीं करने पर यदि तलाक की नौबत आती है तो ऐसी स्थिति में छोड़-छुट्टी की शर्तें भी शादी के पहले ही तय होनी चाहिए। ताकि पति-पत्नी के रिश्ते और परिवार के रिश्ते सुरक्षित रहें। रिश्ते में कोई दुश्मनी का भाव नहीं आए। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला इस तरह के विवादों में ज्यादा पारदर्शिता लाने, पति-पत्नी के बीच झगडे कम हों, कानून का दुरुपयोग ना हो, रिश्ते भी रिश्ते की तरह हमेशा बने रहें। इस दिशा में एक शुरुआती कदम माना जा सकता है। ईएमएस / 16 मई 24