लेख
17-Jun-2024
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भारत में ईवीएम की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है। लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद, लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग की भूमिका, भारत सरकार द्वारा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में की गई मनमानी, भारतीय जनता पार्टी का 2014 के बाद ईवीएम का प्रेम, केंद्र में बहुमत की सरकार होने से न्यायपालिका का कमजोर होना, न्यायपालिका द्वारा चुनाव आयोग की संवैधानिक शक्तियों के आगे अपने आप को वास्तविकता से अलग-थलग कर लेने से यह विवाद बढ़ता ही जा रहा था। चुनाव आयोग और ईवीएम की निष्पक्षता को लेकर पिछले 5 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में यह लड़ाई लड़ी जा रही है। यह लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। दुनिया के आईटी,सोशल मीडिया इंडस्ट्री तथा दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी एलन मस्क ने ईवीएम मशीन की चिंगारी में आग लगाने का काम कर दिया है। एलन मस्क ने पोस्ट में लिखते हुए कहा, ईवीएम को खत्म कर देना चाहिए। इसे इंसानों और एआई के माध्यम से आसानी से हैक किया जा सकता है। एलन मस्क के बयान के बाद राहुल गांधी का भी बयान आया। उन्होंने ईवीएम मशीन को ब्लैक बॉक्स की तरह बता दिया। चुनाव आयोग जिस तरह से ईवीएम मशीन और उसके सॉफ्टवेयर से संबंधित जानकारी को छुपा रहा है। जांच करने की इजाजत चुनाव आयोग किसी को नहीं देता है। चुनाव प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं रह गई है। चुनाव आयोग की भी कोई जवाब देही नहीं है। चुनाव आयोग जो कहे, वही सही मान लिया जाता है। सूचना अधिकार कानून के तहत भी चुनाव आयोग मांगी हुई जानकारी नहीं देता है। चुनाव के कई महीने पहले से विपक्षी दल चुनाव आयोग से मिलने का समय मांग रहे थे। चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों को मिलने का और बैठक करने का समय भी नहीं दिया। इससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता भी प्रभावित हुई है। 2024 के लोकसभा चुनाव में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन, सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों द्वारा किया गया। उस मामले में चुनाव आयोग ने चुप्पी साथ रखी थी। सत्ता पक्ष की शिकायत पर त्वरित कार्रवाई की। चुनाव लड़ने के लिए सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर मिले। इसकी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की थी। चुनाव के दौरान सरकार और जाँच एजेंसियां विपक्षी दलों को घेरने का काम करती रहीं। विपक्षी दलों को चुनाव प्रचार करने से रोकने या बाधित करने के लिए तरह-तरह के प्रयास विभिन्न स्तरों पर किए गए। मतदान के बाद जिस तरह से फॉर्म 27 की जानकारी छुपाने का काम किया है। मतदान का आंकड़ा छुपाया गया। कहीं मतदान से ज्यादा, कहीं मतदान से कम मतगणना हुईं। ईवीएम मशीन में डाले गए वोट का मतगणना से मिलान नहीं हुआ। मतदाता पर्चियां को गिनने से चुनाव आयोग निरंतर इनकार करता रहा। जिसके कारण चुनाव आयोग, ईवीएम मशीन, वीवीपेट की पर्चियां सभी शक के दायरे में हैं। मतगणना के दौरान सत्ता पक्ष के दबाव में काम करने के भी कई आरोप सामने आए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में आम जनता, राजनीतिक दलों के नेताओं, दुनिया भर के राजनेताओं और कारोबारियों ने भारत मे हुए चुनाव की स्थिति का आकलन किया है। भारत में नियम और कानून का पालन हो रहा है या नहीं। इसे वैश्विक दुनिया बड़ी गंभीरता के साथ देखती है। एलन मस्क के बयान से अब ज्यादा दिनों तक ईवीएम मशीन से मतदान कराना चुनाव आयोग के लिए संभव नहीं होगा। चुनाव में पारिदर्शिता लानी ही होगी। मुंबई में शिवसेना शिंदे गुट के सांसद की 48 वोटो से जो जीत हुई है। निर्वाचन अधिकारी वंदना सूर्यवंशी और जीते हुए सांसद के रिश्तेदार द्वारा मतगणना स्थल पर मोबाइल फोन का उपयोग करने के सबूत मिलने के बाद यह मामला भी तूल पकड़ने लगा हैं। 10 बरस के बाद विपक्ष पहले की तुलना में मजबूत हुआ है। विपक्ष भी अब न्यायपालिका में अपने हितों की लड़ाई लड़ना सीख गया है। न्यायपालिका के ऊपर भी अपने अस्तित्व को बचाए रखने का दबाव है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वकीलों ने चुनाव आयोग और ईवीएम मशीन की गड़बड़ियों को लेकर न्यायपालिका के अंदर अपना पक्ष बड़ी मजबूती के साथ रख रहे हैं। इन सारी स्थितियों को देखते हुए संभावना बनने लगी है। जल्द ही भारत में ईवीएम मशीन के स्थान पर वैलेट पेपर से चुनाव कराने का रास्ता साफ हो सकता है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है, 2009 से 2014 तक ईवीएम हटाने की मांग भारतीय जनता पार्टी के लोह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी तथा भाजपा के सभी लोग कर रहे थे। ईवीएम मशीन के खिलाफ बड़ी-बड़ी किताबें भी लिखी गई। 2014 में केंद्र की सत्ता मिल जाने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी ईवीएम से चुनाव कराने का समर्थन कर रही है। 2009 से 2014 के बीच में भाजपा की नेताओं ने ईवीएम मशीन पर भारी रिसर्च की थी। केंद्र की सत्ता में आने के बाद उसी रिसर्च का फायदा उन्हें ईवीएम की मशीनों से वर्तमान में मिल रहा है? इसलिए वह सत्ता में रहते हुए ईवीएम के समर्थन पर अपना पूरा जोर लगा रहे हैं। यह अलग बात है, जिस दिन भारतीय जनता पार्टी की सत्ता केंद्र में नहीं होगी, तो यही पार्टी सबसे ज्यादा विरोध ईवीएम का करेगी। बहरहाल दुनिया में ईवीएम मशीन को कहीं पर भी सुरक्षित नहीं माना जाता है। दुनिया के सभी विकसित और विकासशील देशों में बैलेट पेपर से चुनाव बंद हैं। एलन मस्क के बयान से ईवीएम मशीन से चुनाव कराना भविष्य में आसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जल्द शुरू होगी। इस बार सुप्रीम कोर्ट का फैसला ईवीएम मशीन के बारे में अति महत्वपूर्ण होगा। ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है। ईएमएस / 17 जून 24