-बुलडोजर केस में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी नई दिल्ली (ईएमएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजानिक स्थल पर बने मंदिर, मस्जिद या किसी दूसरे धार्मिक स्थल को हटाने को लेकर सख्त टिप्पणी की है। बुलडोजर केस में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं। हमारे निर्देश सभी के लिए हैं, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय के हों। बेशक, सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण के लिए कहा है कि अगर यह सार्वजनिक सड़क या फुटपाथ या जल निकासी या रेलवे लाइन क्षेत्र पर है, तब स्पष्ट कर दिया है। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है, तब वह सार्वजनिक बाधा नहीं बन सकती। सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि चाहे मंदिर हो, दरगाह हो या अन्य कोई दूसरा धार्मिक स्थल। जहां जनता की सुरक्षा की बात हो और सार्वजानिक स्थल पर हो तब उस हटाना ही होगा। जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है। सुनवाई के दौरान जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि अगर उल्लंघन करने वाले दो स्ट्रक्चर हैं और सिर्फ एक के खिलाफ ही कार्रवाई की जाती है, तब सवाल उठना लाजिमी है। जस्टिस गवई ने कहा, हम ये साफ कर देते हैं कि सिर्फ इसकारण तोड़फोड़ नहीं की जा सकती, क्योंकि कोई व्यक्ति आरोपी या दोषी है। साथ ही, इससे ध्यान देना होगा कि तोड़फोड़ के आदेश पारित होने से पहले भी एक सीमित समय होना चाहिए। साल में 4 से 5 लाख डिमोलिशन की कर्रवाई होती हैं। पिछले कुछ सालों का आंकड़ा है। सुनवाई के दौरान जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि भले ही निर्माण अधिकृत ना हो, लेकिन एक्शन के बाद महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं लगता है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि फिलहाल देश भर में तोड़फोड़ पर अंतरिम रोक जारी रहेगी। सॉलीसिटर जनरल ने कहा कि इसमें से मात्र 2 प्रतिशत के बारे में हम अखबारों में पढ़ते हैं, इस लेकर विवाद होता है। जस्टिस गवई ने कहा बुलडोजर जस्टिस! उन्होंने कहा कि हम निचली अदालतों को निर्देश देंगे कि अवैध निर्माण के मामले में आदेश पारित करते समय सावधान रहें। एसजी मेहता ने सुनवाई के बीच कहा कि हिंदू-मुस्लिम की बात क्यों आती है। वे हमेशा अदालत में आ सकते हैं, इसमें भेदभाव कहां हैं। जस्टिस विश्वनाथ ने कहा कि इसके लिए कुछ समाधान खोजना होगा, जैसे न्यायिक निरीक्षण किया जाए। कुछ घटनाओं को छोड़कर कोर्ट इसके लिए एक सामान्य कानून बनाए जाने पर विचार करे। जमीयत के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोर्ट अतीत की बातों के बजाय भविष्य में इस लेकर नियम बनाने पर विचार करे। आशीष दुबे / 01 अक्टूबर 2024