नई दिल्ली (ईएमएस)। दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है, लेकिन गाजियाबाद में 1600 वर्ग मीटर के एक प्लॉट का विवाद परियोजना में अब भी रोड़ा बना हुआ है। यह विवाद 1998 से चला आ रहा है, जब उत्तर प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने भूमि अधिग्रहण किया था। जमीन मालिक मुआवजे को कम बताते हुए अदालत पहुंचे हैं। फिलहाल मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में है। जिसकी सुनवाई 16 अप्रैल को होनी है। वैसे तो दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे का काम लगभग पूरा हो चुका है, लेकिन अभी भी दिल्ली गाजियाबाद बॉर्डर के पास एक 1600 वर्ग मीटर का प्लॉट इस प्रोजेक्ट में बड़ा रोड़ा है। पहले इस प्लॉट को हाउसिंग बोर्ड ने अधिग्रहण का प्रयास किया था, लेकिन मामला कोर्ट में चला गया तो हाउसिंग बोर्ड ने इसे एनएचएआई को सौंप दिया। अब इस प्लॉट का मामला सुप्रीम कोर्ट से लौटकर वापस हाईकोर्ट पहुंच गया है। दरअसल इस कहानी की शुरूआत साल 1998 में हुई थी। उस समय उत्तर प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने मंडोला हाउसिंग स्कीम लांच किया था। इसके लिए हाउसिंग बोर्ड दिल्ली बॉर्डर से सटे गाजियाबाद के इस एरिया का अधिग्रहण किया था। उस समय हाउसिंग बोर्ड की ओर से जो मुआवजा दिया गया, उसे कम बताते हुए 1600 वर्ग मीटर के इस प्लॉट के मालिक वीरसेन ने लेने से मना कर दिया। इसके बाद वह हाईकोर्ट चले गए। जहां से उनकी जमीन के अधिग्रहण पर रोक लगा दी गई। अदालती प्रक्रिया लंबी खींचने की वजह से हाउसिंग बोर्ड तो यह जमीन नहीं ले पाया, लेकिन इसी दौरान एनएचएआई ने दिल्ली देहरादून एक्सप्रेसवे के लिए जमीन का सर्वे शुरू किया। इस दौरान हासिंग बोर्ड ने जमीन एनएचएआई को अलॉट कर दिया। इसमें वीरसेन का प्लॉट भी शामिल था। वीरसेन के मुकदमे की वजह से ही हाउसिंग बोर्ड ने साल 2010 में उनकी जमीन की पैमाइश की। बाद में वीरसेन की तो मौत हो गई, लेकिन यह मुकदमा उनके वंशजों ने जारी रखा है। मुकदमे के पैरवी कर रहे वीरसेन के पोते लक्ष्यवीर के मुताबिक वह साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट गए थे, जहां से मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया है। मामले की सुनवाई 16 अप्रैल को होनी है। अजीत झा/ देवेन्द्र/ नई दिल्ली /ईएमएस/30/मार्च /2025