लेख
14-May-2025
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पहलगांव में घटित आतंकी घटना के बाद भारत की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई से एक बार फिर से पाकिस्तान हताश और निराश दिखाई दिया। इसी हताशा के चलते पाकिस्तान ने अमेरिका के समक्ष मिन्नत करके भारत की जबरदस्त कार्यवाही को युद्ध विराम में परिवर्तित करने में सफलता प्राप्त की। लेकिन इससे पाकिस्तान पर मंडरा रहे संकट का पूरा समाधान नहीं निकल सका है। भारत की ओर से स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते। आतंक और वार्ता एक साथ नहीं हो सकती। इसका आशय स्पष्ट है कि भारत किसी के दबाव में नहीं है। आतंक को समाप्त करने के लिए उसका अभियान जारी रहेगा। हालांकि अब युद्ध विराम हो गया है, लेकिन चारों तरफ से बुरी तरह से घिर चुके पाकिस्तान के सामने अब नई चुनौती पैदा हो गई है। यह नई चुनौती भारत ने नहीं, बल्कि उनके अपनों ने ही पैदा की है। पाकिस्तान की शहवाज शरीफ की सरकार को राजनीतिक विरोधियों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है, वहीं आम जनता भी सरकार के युद्ध विराम के फैसले से नाखुश है। आम जनता अपनी ही सरकार और सेना पर कई प्रकार के सवाल खड़े करने लगी है। कहा जाता है कि जब धुआं उठा है तो आग भी अपना रूप दिखा सकती है। वैसे पाकिस्तान के बारे में यह सत्य है कि उसने अपने ही देश में बारूद के ढेर स्थापित कर दिए हैं। यह बारूद के ढेर आतंकी सरगनाओं द्वारा चल रहे प्रशिक्षण शिविर हैं। जहां आतंकी पैदा किए जाते हैं। आज जहां पूरे विश्व में आतंक के विरोध में वातावरण है, वहीं पाकिस्तान आतंकियों को पालने और पोषने वाले देश के रूप में पहचान बना चुका है। यह कई बार प्रमाणित भी हो चुका है। आज भी पाकिस्तान के अंदर अंतरराष्ट्रीय आतंकी तौर पर घोषित आतंकी छिप कर बैठे हैं। भारत ने आपरेशन सिन्दूर के तहत जिस तरह से आतंकी शिविरों पर आक्रमण किया था, उससे एक बार फिर यह सिद्ध हो चुका है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों को पैदा करने के उद्योग चल रहे हैं। पाकिस्तान को आतंक के विरोध में कार्यवाही करने के लिए कई बार चेतावनी दी गई, लेकिन पाकिस्तान सरकार आतंकियों के विरोध में कोई ठोस अभियान नहीं चलाती। इसका कारण यह भी है कि पाकिस्तान की राजनीति को आतंकी ही संचालित करते हैं। आतंकियों द्वारा कई बार सरकार को बनाने के लिए राजनीतिक दलों का समर्थन भी दिया जाता है। जब पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार थी, तब यही कहा जाता है कि इमरान को सेना और आतंकियों का समर्थन मिला था। आज इमरान की पार्टी विपक्ष में है। इसलिए उनकी पार्टी के कार्यकर्ता सरकार के विरोध में वातावरण बनाने में लगे हुए हैं। पाकिस्तान के अंदर राजनीतिक विद्वेष इतना है कि जो भी राजनीतिक दल सत्ता में आता है, वह अपने पूर्ववर्ती सत्ता प्रमुख को ठिकाने लगाने को ही अपना प्रमुख कार्य मानता है। अभी शहवाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं, उन्होंने अपने से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर कई आरोप लगाकर जेल भेजने का काम किया। पाकिस्तान में ऐसा पहली नहीं हुआ। ऐसा पहले भी हो चुका है। इसलिए यही कहा जा सकता है कि यह पाकिस्तान की नियति बन चुका है। जिसके कारण पाकिस्तान के राजनीतिक दलों में बहुत गंभीर मतभेद हैं। आज पाकिस्तान में भले ही पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता शहवाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं, लेकिन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो भी सरकार में शामिल हैं। कभी एक दूसरे के धुर विरोधी रहे यह दोनों दल बेमेल गठबंधन करके पाकिस्तान में सरकार चला रहे हैं। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि इन दोनों दलों का एक ही उद्देश्य था, इमरान खान को सत्ता में आने से रोकना। सबसे ज्यादा सीट प्राप्त करने के बाद भी इमरान को विपक्ष की भूमिका से संतुष्ट होना पड़ा। अब इमरान खान के समर्थक युद्ध विराम के बाद सरकार के विरोध में अभियान छेड़े हुए हैं। इसी प्रकार ब्लूचिस्तान की भूमिका के बारे में सब जानते हैं। बीएलए के सैनिकों ने पाकिस्तान की सेना पर कई बार आक्रमण करके यह जता दिया है कि वे अब पाकिस्तान के साथ नहीं रह सकते। भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही जग के बीच ब्लूचिस्तान ने भी पाकिस्तान की सेना को निशाना बना कर कई आक्रमण किए। इससे पूर्व ब्लूचिस्तान के लड़ाकों ने जफर एक्सप्रेस को हाई जैक करके पाकिस्तान की सरकार के समक्ष चुनौती पूर्ण हालात पैदा कर दिए थे। ब्लूचिस्तान लम्बे समय से पाकिस्तान से आजादी की मांग कर रहा है। दूसरी ओर पाकिस्तान के अंदर सिंध और पंजाब में भी कई बार सरकार के विरोध में स्वर मुखरित हो चुके हैं। कहा जाता है कि इन दोनों राज्यों के साथ सरकार ने उपेक्षित व्यवहार किया है। जिसके कारण पाकिस्तान की सरकार को जनता के विरोध का सामना करना पड़ा है। यह सारी स्थिति पाकिस्तान को गृह युद्ध की ओर भी ले जा सकती हैं। ईएमएस / 14 मई 25