नई दिल्ली(ईएमएस)। देश की सभी अदालतों में जजों की कमी है। ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट इसका अपवाद नहीं है। यहां जजों की कुल स्वीकृत संख्या 60 है, जबकि महज 36 जजों से ही काम चलाना पड़ रहा है। जजों की कमी को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इस मामले में उचित दिशा-निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने अहम टिप्पणी की है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा की ओर से ठोस दलील पेश की गई। इसके बाद याची ने अपनी याचिका वापस ले ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने जजों की रिक्तियों से संबंधित एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पब्लिक सर्विस में नॉर्मल रिक्रूटमेंट की तरह नहीं है। जजों की रिक्तियों और नियुक्तियों का मामला संवैधानिक है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीके उपाध्याय की पीठ सीनियर वकील अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार कर रही थी। अमित साहनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में जजों की कमी के मसले पर कोर्ट से निर्देश देन की मांग कर रहे थे। उन्होंने अपनी याचिका में बताया कि वर्तमान में हाईकोर्ट 60 स्वीकृत पदों के मुकाबले 36 जजों की संख्या के साथ काम कर रहा है। वीरेंद्र/ईएमएस/15मई 2025 -----------------------------------