प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने अपने गृह सवाल में फिर उस आठ दशक पुराने सवाल को हवा दे दी है, जो आजादी के बाद प्रधानमंत्री के चयन से जुड़ा है, प्रधानमंत्री ने सीधे-सीधे तो गांधी जी पर कोई आरोप नही लगाए, किंतु यह अवश्य कहा कि यदि नेहरू की जगह सरदार होते तो देश का न तो तीन हिस्सों में विभाजन होता और न देश मेगं आतंकवाद का दंश होता और न ही दशकों से चला आ रहा अधीकृत कश्मीर (पीओके) का मसला होता। अर्थात् अपरोक्ष रूप् से मोदी जी का यह कहना है कि ये सब चिरंतन विवाद नेहरू जी की राजनीति की ही ऊपज है, जिन्हें सात दशक बाद भी देश झेलने को मजबूर है। मोदी का गांधी नगर की सभा में स्पष्ट कहना था कि- ‘‘सरदार पटेल चाहते थे कि सेना तब तक न रूके, जब तक पीओके अपने कब्जे में न लेलें, पर सरदार की बात नही मानी गई। यदि 1947 में सरदार की बात मान ली गई होती तो भारत को इतनी लम्बी अवधि वाला आतंक का दर्द न झेलना पड़ता’’। मोदी का यह भी कहना था कि- ‘‘सरदार पटेल पूरा कश्मीर लेने तक न युद्ध विराम चाहते थे और न संयुक्त राष्ट्र संघ में जाना’’ किंतु सरदार की बात नही मानी गई और इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में भी ले जाया गया, यह नेहरू की हटधर्मी थी। यद्यपि मोदी जी ने अपने भाषण में नेहरू पर सीधे-सीधे आरोप लगाने से बचने की कौशिश की, किंतु उनकी वाणी और उनकी भाव मुद्रा ने सब कुछ स्पष्ट कर दिया और ईशारों-ईशारों में यह भी कह दिया कि आज देश में आंतकवाद, परिवारवाद तथा अन्य जो चिरंतन अपवादी मुद्दें है, वे सब नेहरू की देन है क्योंकि नेहरू खानदान से चालीस साल से भी अधिक देश पर राज किया और भी यह यह खानदान इसी दिशा में अग्रसर है। यद्यपि मोदी जी ने अपने लम्बें भाषण में गांधी जी पर कोई सीधे-सीधे आरोप नही लगाया, किंतु आजादी के बाद देश का प्रथम प्रधानमंत्री के चयन के मामले में मोदी जी ने कटाक्ष अवश्य किया और कहा कि यदि नेहरू की जगह सरदार पटेल के हाथों में सत्ता सौंपी गई होती तो आज देश में इतने लम्बे समय से चली आ रही आतंकवाद व पाकिस्तान जैसी समस्याऐं नही होती, क्योंकि देश का तीन हिस्सों में विभाजन भी पंडित नेहरू की ही देन है। सरदार पटेल अखण्ड भारत के प्रथम पक्षधर थे और उनकी सलाह यदि उस समय मानी गई होती तो आज देश कई चिरंतन समस्याओं से मुक्त होता। मोदी जी अपने जन्म से चार साल पहले देश में घटित राजनीतिक घटनाओं को लेकर काफी व्यथित है और आज जो देश में हर स्तर पर प्रमुख समस्याऐं है, उन्हें उन्हीं चिरंतन समस्याओं की देन बता रहे है। पर, अब राजनीतिक क्षेत्रों में यह सवाल उठाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री जी ने अपनी यह चिरंतन पीड़ा अपने गृह प्रदेश में ही जाकर उजागर क्यों की? औरवे पिछले ग्यारह साल से इस पीड़ा पीड़ित क्यों है? संभव है प्रधानमंत्री जी अपने इस पीड़ा पर उपजे सवाल का जवाब दो दिन बाद अपनी भोपाल यात्रा के दौरान दें? ऐसी उम्मीद अवश्य है। ईएमएस / 29 मई 25