क्षेत्रीय
30-May-2025
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ग्वालियर (ईएमएस)। 1921 में गांधी जी ने चोरी चोरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया । देश के युवा वर्ग में यह बात जम गई कि बिना खून खराबे के आजादी हासिल कर सकना नामुमकिन है। उसके बाद क्रांतिकारी घटनाओं ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया। वर्ष 1929 में कॉमरेड शर्मा भी स्वाधीनता के लिए लड़ी जा रही जंगी लड़ाई में कूद पड़े कामरेड शर्मा जगह-जगह लोगों को सरकार तथा ग्वालियर रियासत के खिलाफ संघर्ष के लिए तैयार करने लगे। इनके इस कार्य में कॉमरेड गोटू सहाय, कॉम रामचंद्र सरवटे , कॉमरेड गिरधारी सिंह और गोवा के निवासी स्टीफन जोसेफ ने भी भाग लिया। इन सभी लोगों का संबंध बंगाल की संस्था अनुशीलन समिति से था। स्टीफन के सहयोग से गोवा से हथियार खरीद कर लाते थे, उस समय गोवा फ्रांस के अधिकार में था यहां विदेशी हथियार पिस्टल आदि बहुत अच्छे और सस्ते मिलते थे। सभी साथियों ने मिलकर तय किया ओर योजना बनी कि स्टीफन को गोवा भेजा जाए और वहां से हथियार मगाये जाये । इस प्रकार से दो-तीन बार हथियार कारतूस आए अगली बार गोवा से स्टीफन पिस्तौल लेकर आ रहे थे । मुंबई डेक पर कस्टम वाले सख्ती से देख भाल करते थे। किसी तरह सी आई डी स्टीफन के पीछे लग गई और स्टीफन को गिरफ्तार कर लिया गया, उनके पास से कुछ कागजात और कॉमरेड राम चंद्र सरवटे के नाम कई पत्र बरामद हुए। इन्हीं पत्रों के आधार पर श्री सर्वटे तथा श्री गिरधारी सिंह को दिल्ली से कॉमरेड बाल कृष्ण शर्मा तथा उनके भाई बाल मुकुंद शर्मा को ग्वालियर में पकड़ लिया । यह 1932 का समय था सभी को मुंबई ले जाया गया। मुंबई ले जाते वक्त उनके हाथ पैरों में हथकड़ियां व बेडिया डाल दी गई थी ,मुंबई में ढाई माह तक मुकदमा चला । यह मुकदमा ग्वालियर,गोवा षड्यंत्र केस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मुकदमे का नाटक खत्म हुआ तो 1933 मे बालकृष्ण शर्मा, रामचंद्र सरवटे, गिरधारी सिंह तथा गोवा के स्टीफन को तीन-तीन साल की लंबी सजा हुई। कॉम् बालकृष्ण शर्मा को बेलगांव जेल में 3 साल तक रखा गया ओर 1936 में जेल से रिहा होने के बाद ग्वालियर वापस आए मगर ग्वालियर में पुलिस ने और रियासत के सामंती अधिकारियों ने इन्हें तरह-तरह से परेशान करना शुरू कर दिया इससे बचने के लिए कॉम शर्मा और श्री सरवटे ने आयुर्वेदिक का अध्ययन करना शुरू कर दिया एवं आयुर्वेदाचार्य की परीक्षा पास करने के पश्चात कॉम बाल कृष्ण शर्मा ने दानाओली लशकर ग्वालियर में श्रीकृष्ण आयुर्वैदिक फार्मेसी की स्थापना की एवं संस्थापक के रूप में कार्य किया लेकिन रियासत के अधिकारी इनके पीछे हाथ धोकर पड़े हुए थे। एक नया आदेश जारी करवा कर इन्हें ग्वालियर से जिलावदर कर दिया गया एवं ग्वालियर में प्रवेश निषेध घोषित कर दिया गया। जिलाबदर रहने की स्थिति में श्री शर्मा ने आगरा में रहकर अपने साथियों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखी। कॉमरेड राम चंद्र सरवटे गिरधारी सिंह तथा कॉमरेड बालकृष्ण शर्मा ने मिलकर 1939 में सर्वप्रथम ग्वालियर में मजदूर सभा की स्थापना की, इस अवसर पर ग्वालियर के हज़ीरा मैदान में एक बड़ी सभा की जिसमें शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी साथी वटुकेश्वर दत्त ने भाग लिया। इसी तरह की एक सभा दौलतगंज लश्कर में भी की गई जिसमें शहीद चंद्रशेखर आजाद के सहयोगी भगवान दास महोर और सदाशिव मलकापुरकर ने भाग लिया। कॉमरेड बालकृष्ण शर्मा को पहले गिरफ्तारी के बाद जयेंद्रगंज थाने में रखा गया। इसके विरोध के कारण हवालात कम्पू विग्रेड थाना भेज दिया गया। वहा खाने के लिए दो आने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की ,यह हड़ताल इतनी जबरदस्त रही की एक मुसलमान कैदी ने खाने के लिए चने मांग लिए जब उसको मालूम हुआ कि वह गलती पर है तो उसने सारे चने फेंक दिए ,तीसरे दिन काफी गरमा गर्मी हो गई जिसकी वजह से हवालात भी तोड़ दी गई और सारे कैदियों को सेंट्रल जेल ग्वालियर भेज दिया गया। कैदियों को वेत से पीटने की सजा दी जाती थी। कॉम शर्मा ने इसका विरोध किया की अमानवीय सजा बंद की जानी चाहिए इस मांग के लिए शर्मा जी को एकांकी कोठी की सजा दी गई। जेल में कॉम शर्मा का जीवन सात्विक जीवन था मिर्च खाते नहीं थे और दोनों वक्त नहाते थे धार्मिक ग्रंथो के अध्ययन में लगे रहते थे उन्होंने वहां तमाम उपनिषद मागे और उनका अध्ययन किया। कॉम बालकृष्ण शर्मा ने सन् 1921 से जो संघर्ष शुरू हुआ वह निरंतर चलता ही रहा । ग्वालियर जिले की भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1942 के प्रमुख संस्थापक सदस्य कॉमरेड शर्मा ने मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त करने तथा देश में समाजवाद की स्थापना के लिए संघर्षरत रहते हुए सन 1962 में ग्वालियर में बेतहाशा बढ़ती महंगाई के कारण जिंसों खाने पीने की रोजमर्रा सामग्री के दाम आसमान छू रहे थे गरीबों और मजदूर किसानो को राशन का गेहूं मिलता था। जिसके लिए गरीब जनता को आधी आधी रात को जागकर राशन लेने के लिए लंबी-लंबी लाइन में लगना पड़ता था ताकि उन्हें अपने हिस्से का राशन मिल सके। इस संबंध में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आंदोलन चलाने की रूपरेखा तैयार की गई उसके अनुरूप कॉम बाल कृष्ण शर्मा द्वारा ग्वालियर जिलाधीश कार्यालय के आगे गोरखी प्रांगण में 7 दिन की भूख हडताल पर बेठना पड़ा। शर्मा जी की हालत काफी बिगड़ गई और आठवें दिन गरीब मजदूरों की मांगों को मानते हुए शासन को झुकना पड़ा। इसी प्रकार घनश्याम दास बिरला के ग्वालियर स्थित जे सी मिल बिरला नगर ग्वालियर मिल के मजदूरों की जायज मांगों को ना मानते हुए अपने मनमाने ढंग से उन पर जुल्म करने के विरोध में कॉमरेड बाल कृष्ण शर्मा ने विधायक रहते हुए मिल गेट के सामने अपनी हड़ताल शुरू की , तत्पश्चात मिल प्रबंधन को मजदूर की मांगों को पूरा करने के लिए झुकना पड़ा, इस प्रकार कॉम बालकृष्ण शर्मा ने अपना अनशन तोड़ा । सन 1972 में ग्वालियर जिला की गिर्द विधानसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में भारी मतों से विजई हुए। कामरेड बालकृष्ण शर्मा का पूरा जीवन बाल्यअवस्था से अंतिम समय तक मेहनतकश जनता के हितों की रक्षा और मजदूर किसानों की समाजवादी सरकार की स्थापना के लिए लगातार जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे।