- भारत के लिए बहुपक्षीय संस्थान हमेशा तटस्थ नहीं रहे नई दिल्ली (ईएमएस)। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 2.4 अरब डॉलर का ऋण दिया गया जिसको लेकर भारत में चिंता एवं निराशा जताई जा रही है। यह राशि पाकिस्तान को ऐसे समय में मिली जब भारत के साथ उसकी सैन्य झड़प हो रही थी। बाद में आईएमएफ ने एक पूरक टिप्पणी में यह माना कि इस रकम का बेजा इस्तेमाल होने या ऐसा प्रतीत होने पर उसकी छवि को झटका लग सकता है। हालांकि, आईएमएफ की तरफ से यह भी कहा गया कि ‘हाल के घटनाक्रम स्थिति की समीक्षा को प्रभावित नहीं करते हैं। आईएमएफ के कदम से कई सवाल खड़े हुए हैं। पहला सवाल तो यह है कि तटस्थ रहने के लिए प्रतिबद्ध कोई बहुपक्षीय संस्था अपने दो सदस्य देशों के बीच युद्ध के दौरान ऐसा कदम क्यों उठाएगा? इससे भी महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि भारत भविष्य में ऐसे कदमों की पुनरावृत्ति कैसे रोक सकता है? एक असहज करने वाली वास्तविकता यह है कि बहुपक्षीय संस्थान हमेशा तटस्थ नहीं रहे हैं। शीत युद्ध के दौरान ये बहुपक्षीय संस्थान प्रायः दबदबा रखने वाले खासकर पश्चिमी देशों के हितों को अधिक तवज्जो दे रहे थे। बहुपक्षीय प्रणाली में सबसे बड़े दाता देश अमेरिका ने अक्सर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर वित्तीय सहायता की दिशा अपने मित्र एवं सहयोगी देशों की तरफ मोड़ दी जबकि प्रतिद्वंद्वी देशों को इससे महरूम रखा। शीत युद्ध के बाद भी यह रुझान बरकरार रहा। वर्ष 1994 में आईएमएफ ने मेक्सिको को 18 अरब डॉलर ऋण दिए जिनका इस्तेमाल अमेरिकी निवेशकों की रक्षा के लिए किया गया। वर्ष 2013 में आईएमएफ ने ग्रीस को आर्थिक संकट से उबारने में सक्रिय भूमिका निभाई। आईएमएफ को यूरोपीय ताकतों का भी पूरा समर्थन था। ये देश अपने पड़ोस में आर्थिक हालात बिगड़ता नहीं देखना चाहते थे। सतीश मोरे/31मई ---