लेख
31-May-2025
...


- चीन की यूनाइटेड नेशन को चुनौती चीन वैश्विक राजनीति में बड़ी ताकत के साथ तेजी कदम बढ़ा रहा है। चीन अब सिर्फ एक आर्थिक शक्ति नहीं, वरन वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ बनता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण है, चीन के नेतृत्व इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर मेडिएशन की स्थापना की गई है। चीन के नेतृत्व में हांगकांग में शुरू यह नया बहुपक्षीय मंच है। इस संगठन का उद्देश्य वैश्विक अथवा दो देशों के बीच के विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना इसका मुख्य उद्देश्य है, इसके राजनीतिक आर्थिक निहितार्थ को लेकर गंभीर और दूरगामी परिणाम होना तय है। संयुक्त राष्ट्र जैसे स्थापित वैश्विक संस्थानों की निष्क्रियता, पक्षपात और राजनीतिक दवाब को देखते हुए चीन ने एक समानांतर वैश्विक संस्था खड़ा करने की कोशिश की है। यह संस्था ऐसे समय में सामने आई है। जब रुस एवं यूक्रेन के बीच लंबे समय से चल रहे युद्ध, इजरायल-गाज़ा का संकट, ताइवान तनाव और दक्षिण चीन सागर विवाद जैसे मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र की भूमिका सवालों के घेरे में है। सारी दुनिया आर्थिक मंदी के मुहाने पर खड़ी है। विश्व के अधिकांश देश कर्ज एवं महंगाई से जूझ रहे है। सारी दुनिया तकनीकि के विकास को लेकर जिस तेजी से बदल रही है। ऐसे समय पर चीन का वैश्विक स्तर पर ताकतवर होना भारत के लिये बड़ी चुनौती है। अमेरिका और रूस इस समय सबसे कमजोर है। संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान क्रियाकलाप से दुनिया के देशों में उसकी विश्वसनीयता और कार्य प्रणाली को लेकर अविश्वास पैदा हुआ है। ऐसे समय में चीन ने हांगकांग को मध्यस्थता का केंद्र बिन्दु बनाकर वैश्विक नेतृत्व की दुनिया के देशों के बीच नई दावेदारी पेश कर दी है। इस संगठन में 85 देशों की भागीदारी है। 33 देशों की फाउंडर सदस्यता है। वर्तमान संदर्भ में चीन की कूटनीतिक राजनीतिक एवं आर्थिक सफलता को दर्शाती है। इस संगठन की खास बात यह है, इनमें से कई देश वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ के) देश हैं। दुनिया भर के विकासशील या पिछड़े राष्ट्र पश्चिमी प्रभाव से मुक्त होकर नये साझेदारौं की तलाश मे हैं। नया संगठन इस तलाश की पुष्टि कर रहा है। भारत, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे लोकतांत्रिक देशों को इसमें शामिल नहीं है। विकसित राष्ट्र खुद शामिल नहीं हुए हैं? विकशित एवं विकासशील राष्ट्रों की अनुपस्थिति से स्पष्ट है, अब दुनिया दो धड़ों में बंटने जा रही है। दुनिया में चीन का प्रभाव बड़ी तेजी के साथ बढा है, यह भी इससे प्रमाणित होता है। चीन अब बड़ी आर्थिक एवं सामरिक शक्ति के रूप में वैश्विक स्तर पर उभर रहा है। हांगकांग में इस संस्था का मुख्यालय बनना भी प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण है। यह वही हांगकांग है, जो कभी लोकतंत्र की प्रयोगशाला था। अब चीन की राजनीतिक पकड़ और प्रभाव में है। हॉन्गकांग में न्यू वर्ल्ड ऑर्डर की नींव रखना चीन का साफ संदेश है। नई व्यवस्था लोकतंत्र के साथ-साथ वित्तीय एवं सामरिक नियंत्रण की रणनीति पर आधारित होगी। भारत के लिए यह एक बडी चेतावनी है। भारत इस तरह के संगठनो से दूरी बनाएगा, तो भारत वैश्विक विचार विमर्श, करोबार से बाहर होता चला जाएगा। चीन ने अंतरराष्ट्रीय संस्था तैयार कर इसमें 85 देशों का समर्थन हासिल करके सारी दुनिया के देशों और महा शक्तियों को चुनौती दी है। संयुक्त राष्ट्र को भी चीन ने एक तरह से चुनौती दी है। संयुक्त राष्ट्र संघ यदि कमजोर होता है ऐसी स्थिति में भारत के लिए आने वाले समय में मुश्किलें और भी बढ़ना तय है। अब भारत को तय करना है, क्या वह पुरानी व्यवस्था के साथ जुड़ा रहकर वैश्विक संस्थाओं और स्वयं की रक्षा करेगा, या नई वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए अपने आप को बदलेगा। भागीदारी, वैश्विक स्तर पर और पड़ोसी देशों के साथ भारत किस तरह से आगे बढ़ेगा यह भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। चीन भारत का पड़ोसी है। भारत की बहुत बड़ी सीमा चीन के साथ लगी हुई है। पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार की सीमाएं भारत से जुड़ी हुई है। उपरोक्त सभी देश चीन के प्रभाव में है उपरोक्त देशों के साथ चीन के आर्थिक और सामरिक संबंध पिछले एक दशक में बड़े मजबूत हुए हैं। ऐसी स्थिति में भारत पर सबसे ज्यादा दबाव में होगा। चीन की आर्थिक और सामरिक शक्ति भारत के मुकाबले कई गुना ज्यादा है। इसलिए भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। वैश्विक स्तर पर जो बदलाव हो रहे हैं, उसको देखते हुए भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने हितों की रक्षा करने के लिए ज्यादा सजग रहना होगा। यदि कोई लापरवाही हुई तो इसके भारी दुष्परिणाम भारत को भुगतना पड़ सकते हैं। भारत में जिस तरह के आतंरिक मतभेद जाति, धर्म एवं राजनीति में देखने को मिल रहे हैं। इससे भारत के लिये आतंिरक एवं वैश्विक चुनौतियां बढ़ रही है। ईएमएस / 31 मई 25