भोपाल(ईएमएस)। मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ने अवधपुरी के विद्याप्रमाणगुरुकुलम् में भावनायोग के छै दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में प्रशिक्षणार्थियों को सम्वोधित करते हुये कहा कि, आज का युग आपाधापी का युग है,अंदर से हर व्यक्ति अशांत नजर आ रहा है मुख पर मुस्कान है अंदर से दुःखी नजर आ रहा है। प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया समापन के इस अवसर पर मुनि श्री ने भावना योग के चार मूल चरणों (प्रार्थना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और सामायिक) के वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष को साधकों तक पहुंचाने की शक्ति और सामायिक की वैज्ञानिकता पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा“सामायिक साधना केवल धार्मिक क्रिया नहीं, यह समत्व और साधुता की साधना है,जीवन की जड़ता को तोड़ने का और शांति की अनुभूति पाने का सबसे सहज उपाय है। सामायिक” उन्होंने आधुनिक विज्ञान की भाषा में समझाते हुये कहा कि पैरासिंपैथेटिक मोड यानी शांति की अवस्था तक पहुंचने का श्रेष्ठ मार्गभावना योग है। जो मन को बहलाता नहीं,बदलता है,मनको बहलाने से नहीं, बदलने से मिलती है शांति। मन बहलाने वाला भोगी होता है,और मन बदलने वाला योगी। उन्होंनेऊर्जा प्रवाह को साधना की वैज्ञानिकता बताते हुए इसे “Active Visualization Meditation” की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि“जैसा हम सोचते हैं, जैसा हम महसूस करते हैं, वैसा ही हमारा शरीर और मस्तिष्क प्रतिक्रिया देता है,यह न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ाता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को सशक्त करता है। ”उन्होंने अपनी निजी चिकित्सा की सफलता का उदाहरण देते हुए कहा कि सामान्यत: सूखी हुई नस दोबारा सक्रिय नहीं होती, पर भावना योग के ऊर्जा प्रवाह से यह संभव हुआ, शिविर में भावना योग के प्रति गहन समर्पण देखने को मिला। प्रामाणिक समूह के डॉक्टर सुभाष जखारिया, राजेश जैन पूना, कीर्ति बहन दिल्ली, तथा हेमा, एकता, सीमा, विवेक जैन सिंगापुर जैसे समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम ने अच्छा कार्य किया। उन्होंने सभी साधकों से आह्वान किया किअब केवल जुड़ना नहीं, जोड़ना है ,और जोड़ने के लिए जुटना है,एक प्रशिक्षक को कम से कम दस प्रशिक्षक तैयार करना है यही भावनायोग के विश्वव्यापी प्रसार की कुंजी है। “कार्य करो, और उसकी सराहना की अपेक्षा मत रखो। साधक वह है, जो बिना मान-अपेक्षा के समर्पित भाव से जुटा रहता है। अविनाश जैन विद्यावाणी / 12 जून, 2025