ज़रा हटके
13-Jun-2025
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मेलबर्न (ईएमएस)। स्टैफिलोकोकस ऑरियस बैक्टीरिया, जिसे ‘गोल्डन स्टैफ’ भी कहा जाता है, हर साल यह बैक्टीरिया करीब 10 लाख लोगों की मौत का कारण बनता है। इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए मेलबर्न के पीटर डोहर्टी इंस्टीट्यूट फॉर इंफेक्शन एंड इम्युनिटी के वैज्ञानिकों ने एक बेहद अहम तकनीक विकसित की है, जिसका नाम है ‘रियल टाइम जीनोम सीक्वेंसिंग’। यह तकनीक मरीज के शरीर में मौजूद बैक्टीरिया के डीएनए को जीवित अवस्था में ट्रैक करने में सक्षम है, जिससे डॉक्टर यह जान सकते हैं कि कौन-सी दवाएं कारगर होंगी और कौन-सी बेअसर। अब तक जो पारंपरिक टेस्ट होते थे, वे यह तो बताते थे कि शरीर में कौन-सा बैक्टीरिया है, लेकिन वे यह नहीं बता पाते थे कि वह कितना खतरनाक है या किस दवा से वह बच सकता है। नई तकनीक इन कमियों को दूर करती है। इससे डॉक्टर संक्रमण के म्यूटेशन को तुरंत पकड़ सकते हैं और इलाज को उसी के अनुसार बदल सकते हैं। हाल ही में इस तकनीक को मेलबर्न के सात अस्पतालों में करीब 100 मरीजों पर आजमाया गया। जिन मरीजों को स्टैफिलोकोकस ऑरियस का संक्रमण था, उनमें से एक-तिहाई में बैक्टीरिया ने इलाज के दौरान ही म्यूटेशन कर लिया, जिससे दवाएं बेअसर हो गईं। एक मरीज में तो संक्रमण दो महीने तक दबा रहा, लेकिन दवा बंद करते ही बैक्टीरिया 80 गुना ज्यादा ताकतवर होकर लौटा। हालांकि, रियल टाइम जीनोम सीक्वेंसिंग की मदद से समय रहते इलाज बदला गया और मरीज को बचा लिया गया। इस नई सफलता के बाद विक्टोरियन अस्पताल जल्द ही दुनिया की पहली क्लिनिकल जीनोमिक सेवा शुरू करने जा रहे हैं, जहां इस तकनीक का इस्तेमाल गंभीर और दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों के इलाज में किया जाएगा। यह खोज केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस जैसी वैश्विक समस्या के खिलाफ एक निर्णायक हथियार भी बन सकती है। सुदामा/ईएमएस 13 जून 2025