नई दिल्ली (ईएमएस)। हर्बल पार्कों को ‘देखभाल’ और ‘जड़ी-बूटी’ की जरूरत है। यमुनापार में इस तरह के चुनिंदा पार्क हैं। लेकिन उनमें औषधीय पौधे ही नहीं है। पार्क उजड़े पड़े हैं। ऐसे में उनके नाम के आगे हर्बल लगाना बेमानी साबित हो रहा है। नियमित देखभाल न होने से इन पार्कों की बुरी हालत हो गई है। नगर निगम के उद्यान विभाग के अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार हैं। हर्बल पार्क के नाम से स्पष्ट है कि इनमें औषधीय पौधे लगाए जाते हैं। ताकि इनमें सैर करने वाले और खेलने के लिए आ रहे बच्चे आयुर्वेद से जुड़ें और औषधीय पौधों को पहचानें। यमुना विहार बी-एक में 16 वर्ष पहले हर्बल पार्क विकसित किया गया था। तीन हजार गज में फैले इस पार्क को पार्षद प्रमोद गुप्ता ने वर्ष 2017 में पुनर्विकसित कराकर इसमें नीम, आंवला, गिलोय, पथरचट्टा, चिरायता, लेमन ग्रास, आम आदि के करीब 100 से अधिक पौधे लगवाए गए थे। एनजीटी के आदेशानुसार पार्कों से पानी की मोटर बंद करवा दी गई थी। फिर इन पौधों को पानी देने की उचित व्यवस्था नहीं बन पाई और नगर निगम ने कई सालों तक कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की। शाहदरा उत्तरी जोन के अधीन इस पार्क की देखरेख के लिए जिम्मेदारी उद्यान विभाग के सेक्शन ऑफिसर किशन पाल सिंह ने बताया कि पहले पानी की व्यवस्था नहीं थी, यह बात सही है। लेकिन अब ट्यूबवेल ठीक करा दिया गया है। जल्द ही इसमें औषधीय पौधे लगाकर पार्क को इसका स्वरूप लौटाया जाएगा। जीटीबी एन्क्लेव पाकेट-ई स्थित हर्बल पार्क वर्ष 2016 में दिल्ली पार्क एंड गार्डन सोसायटी के सहयोग से क्षेत्रीय आरडब्ल्यूए के प्रयास से विकसित किया गया था। जिसका उद्घाटन तत्कालीन पार्षद स्वाति गुप्ता ने किया था। यहां इलायची, तुलसी, नीम, जामुन, गिलोय, आंवला, पत्थरचट्टा, आम, नींबू, सहजन, आदि के 150 औषधीय पौधे लगाए गए थे। साथ में दीवारों पर पौधों के नाम भी लिखे गए थे। अजीत झा/ देवेन्द्र/नई दिल्ली/ईएमएस/13/जून/2025