क्षेत्रीय
13-Jun-2025
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भोपाल (ईएमएस) । कालांजलि संस्थान द्वारा रवीन्द्र भवन में गत दिवस 26 वां कालोत्सवम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान में प्रशिक्षणरत विद्यार्थियों द्वारा भरत नाटयम की प्रस्तुति दी। यह आयोजन भारत की समृद्ध शास्त्रीय और लोक कलाओं का एक जीवंत संगम था, जिसमें 90 से अधिक कलाकारों ने भाग लेकर दर्शकों को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किए गए मुख्य अतिथि डॉ. बिनय शदंगी राजाराम, संस्थापक सप्तवर्णी कला साहित्यसृजन शोधपीठ, भोपाल और विशिष्ट अतिथि के रूप में विख्यात फिल्म निर्माता व कला संरक्षक सुनील शुक्ला ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस अवसर पर कलांजलि के संस्थापक एवं निदेशक प्रदीप कृष्णन ने कहा कि बच्चों को पारंपरिक कलाओं से कम उम्र में जोडऩे से न केवल वे एक कला सीखते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों से भी जुड़ते हैं। उन्होंने कहा कि ये कलाएं केवल प्रस्तुति भर नहीं होतीं, बल्कि जीवन जीने का माध्यम बन जाती हैं। कार्यक्रम की शुरुआत 29 भरतनाट्यम विद्यार्थियों के रंगप्रवेश (प्रथम मंच प्रस्तुति) से हुई। मंच पर माँ-बेटी की जोड़ी का एक साथ पदार्पण दर्शकों के लिए विशेष और भावनात्मक क्षण था। दीप प्रज्वलन के पश्चात 8 मोहिनीअट्टम नर्तकियों द्वारा प्रस्तुत गणपति वंदना ने आध्यात्मिक वातावरण को जन्म दिया। इसके बाद रंगप्रवेश कर रही छात्राओं ने पुष्पांजलि और आलारिपु की प्रस्तुतियाँ देकर शास्त्रीय अनुशासन और साधना का प्रदर्शन किया। इस अवसर की विशेष प्रस्तुति रही दशावतार, जिसे गुरु प्रदीप कृष्णन ने कोरियोग्राफ किया था। 16 नर्तकों द्वारा जयदेव की काव्य रचना पर आधारित भगवान विष्णु के दस अवतारों का मंचन नृत्य, संगीत और साहित्य का सजीव उदाहरण था। इसके उपरांत 15 भरतनाट्यम विद्यार्थियों ने जतिस्वरम और शब्दम प्रस्तुत किया, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति का भाव उभरकर आया। एक अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तुति रही नवदुर्गा स्तोत्रम्, जिसमें नवदुर्गा के नौ रूपों का भावपूर्ण मंचन किया गया। इस प्रस्तुति को गुरु प्रदीप कृष्णन के पुत्र कु. प्रणव प्रदीप ने कोरियोग्राफ किया था। संगीत खंड में तीन विद्यार्थियों ने रारवेनु और पाहिमाम कीर्तनम प्रस्तुत कर शास्त्रीय संगीत की गहराई को दर्शाया, जबकि कु. पर्वतीश प्रदीप ने स्वाति तिरुनाल को समर्पित एकल गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। लोक कलाओं की श्रृंखला में अजय एन के निर्देशन में उत्तराखंड का पारंपरिक कुमाऊं लोकनृत्य प्रस्तुत किया गया, जिसमें 20 छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। इस नृत्य ने क्षेत्रीय सांस्कृतिक विरासत को मंच पर जीवंत किया। कार्यक्रम का भव्य समापन वसुधैव कुटुंबकम नामक प्रस्तुति से हुआ, जिसमें राजस्थानी कालबेलिया लोकनृत्य को विभिन्न शैलियों के साथ मिलाकर प्रस्तुत किया गया। इस नृत्य को श्रीमती अनुपमा एम. कुमार ने कोरियोग्राफ किया। अंत में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले पाँच विद्यार्थियों को विशेष उपलब्धि पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साथ ही, कलांजलि लेडीज़ विंग और सभी कलाकारों का सम्मान समारोह आयोजित कर संस्था ने अपनी सांस्कृतिक प्रतिबद्धता को पुन: स्थापित किया। ईएमएस/13जून2025