15-Jun-2025


नई दिल्ली (ईएमएस)। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के प्री-प्राइमरी से लेकर पांचवीं तक के विद्यार्थियों को मातृभाषा में पढ़ाई को लेकर जारी आदेश के बाद सभी स्कूलों के प्रधानाचार्य असमंजस की स्थिति में है। बोर्ड ने अपने अधीनस्थ सभी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे छात्रों की मातृभाषा का नक्शा तैयार करें और जुलाई के पहले सप्ताह तक शिक्षण सामग्री व पाठ्यक्रम को इस तरह से पुनर्गठित करें कि छात्रों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जा सके। सीबीएसई के अधिकारियों के मुताबिक इस कदम से छात्रों की समझने की क्षमता बेहतर होगी और वे मूल अवधारणाओं को गहराई से सीख सकेंगे। साथ ही, बोर्ड ने शिक्षकों के लिए बहुभाषीय शिक्षण शास्त्र, कक्षा संचालन रणनीतियां और भाषा-संवेदनशील मूल्यांकन पद्धतियों पर आधारित प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित करने के भी निर्देश दिए हैं। हालांकि, स्कूल प्रधानाचार्य इसे लागू करने की समय सीमा को लेकर चिंतित हैं। अधिकांश प्रधानाचार्यों का कहना है कि इतने कम समय में भाषायी मानचित्रण करना, पाठ्यक्रम को दोबारा डिजाइन करना और शिक्षकों को प्रशिक्षित करना थोड़ा मुश्किल है। निजी स्कूल प्रधानाचार्यों के मुताबिक इतने कम समय में यह काम पूरा कर पाना लगभग असंभव है। खासकर, जहां छात्रों की मातृभाषा में काफी विविधता है। द्वारका स्थित आइटीएल पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्य सुधा आचार्य ने कहा कि स्कूल में नामांकित छात्रों की मातृभाषा के रूप में 20 से अधिक भाषाओं की पहचान की गई है। मैपिंग से यह भी पता चला कि हिंदी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। उन्होंने कहा कि हम पहले से ही बुनियादी स्तर पर शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में हिंदी और अंग्रेजी को शामिल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तीसरी से पांचवीं तक के लिए छात्रों की मातृभाषा में परीक्षा आयोजित करने की आवश्यकता नहीं है। नीति केवल छात्रों को अवधारणाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद करने के लिए मातृभाषा में पढ़ाने पर जोर देती है। सादिक नगर स्थित एक निजी स्कूल की प्रधानाचार्या ने बताया कि उनके स्कूल ने माता-पिता के साथ गूगल फार्म साझा कर भाषायी जानकारी एकत्र करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि हमारे स्कूल में विभिन्न राज्यों से आने वाले छात्र हैं, जिनकी मातृभाषा अलग-अलग है। स्कूलों में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर पढ़ाई मातृभाषा में कराई जाएगी तो परीक्षा किस भाषा में होगी। कई प्रधानाचार्यों ने सवाल उठाया कि क्या यह उचित होगा कि छात्रों को मातृभाषा में पढ़ाया जाए और परीक्षा अंग्रेजी में ली जाए, जैसा कि अधिकतर निजी स्कूलों में होता है। वहीं सरकारी स्कूलों में हिंदी या क्षेत्रीय भाषाएं पहले से ही प्रमुख भाषा के रूप में उपयोग में लाई जाती हैं, इसलिए वहां समस्या अपेक्षाकृत कम है। अजीत झा/ देवेन्द्र/नई दिल्ली/ईएमएस/15/जून/2025